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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 21
    सूक्त - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त

    भू॒तं ब्रू॑मो भूत॒पतिं॑ भू॒ताना॑मु॒त यो व॒शी। भू॒तानि॒ सर्वा॑ सं॒गत्य॒ ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भू॒तम् । ब्रू॒म॒: । भू॒त॒ऽपति॑म् । भू॒ताना॑म् । उ॒त । य: । व॒शी । भू॒तानि॑ । सर्वा॑ । स॒म्ऽगत्य॑ । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भूतं ब्रूमो भूतपतिं भूतानामुत यो वशी। भूतानि सर्वा संगत्य ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भूतम् । ब्रूम: । भूतऽपतिम् । भूतानाम् । उत । य: । वशी । भूतानि । सर्वा । सम्ऽगत्य । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 21

    भावार्थ -
    (भूतं) सत्तावान्, सामर्थ्यवान् पुरुष (भूतपतिम्) सामर्थ्यवान् पुरुषों के स्वामी (उत) और (यः) जो (भूतानां वशी) भूत समस्त प्राणियों का वश करनेहारा है उनकी (ब्रूमः) हम स्तुति करते हैं। (सर्वा भूतानि संगत्य) समस्त प्राणी मिल कर (ते) वें (नः अंहसः मुञ्चन्तु) हमें पाप कर्म से बचावें। सत्तावाले शक्तिशाली पुरुष और समस्त प्रजा के जन संगठन करके प्रजा की ऐसी व्यवस्था करें कि प्रजावासी पापाचरण न करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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