अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 14
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
मा त्वा॑भि॒ सखा॑ नो विदन् ॥
स्वर सहित पद पाठमा । त्वा । अ॑भि॒ । सखा॑ । न: । विदन् ॥१३०.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
मा त्वाभि सखा नो विदन् ॥
स्वर रहित पद पाठमा । त्वा । अभि । सखा । न: । विदन् ॥१३०.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 14
विषय - भूमि और स्त्री।
भावार्थ -
(शृङ्गे) सींग नरसिंगा (उत्पन्ने) बजने पर अर्थात् युद्ध की घोषणा हो जाने पर हे राजन् (त्वा) तुझ को (नः) हमारा (सखा अपि) मित्र राजा भी (मा विदत्) प्राप्त न करे, वह तुझको न जाने कि तु कहां सुरक्षित है।
टिप्पणी -
‘मात्वाभि’ ‘विदन्’ इति श० पा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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