अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 1
को अ॑र्य बहु॒लिमा॒ इषू॑नि ॥
स्वर सहित पद पाठक: । अ॒र्य॒ । बहु॒लिमा॒ । इषू॑नि: ॥१३०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
को अर्य बहुलिमा इषूनि ॥
स्वर रहित पद पाठक: । अर्य । बहुलिमा । इषूनि: ॥१३०.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 1
विषय - भूमि और स्त्री।
भावार्थ -
(कः) कौन (इमा) इन (दुग्धानि) गौओं के दूधों के समान दोहकर प्राप्त हुए ऐश्वर्यों को (अप अवहत्) ले जाने में समर्थ है ? अथवा गृहस्थ स्वयं जिस प्रकार समस्त गौओं के दूधों को ले जाता है उसी प्रकार (कः) प्रजापति, राजा ही समस्त प्रजाओं और भूमियों से दुहे रत्न आदि ऐश्वर्यों को (अप अवहत्) ढोकर लेजाता है।
टिप्पणी -
‘को अर्य बहुलिमा इषूनि’ इति शं०पा०। ‘इषुनि, इष्णुनि’ इति पादौ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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