अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 15
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
व॒शायाः॑ पु॒त्रमा य॑न्ति ॥
स्वर सहित पद पाठवशाया॑: । पु॒त्रम् । आ । य॑न्ति ॥१३०.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
वशायाः पुत्रमा यन्ति ॥
स्वर रहित पद पाठवशाया: । पुत्रम् । आ । यन्ति ॥१३०.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 15
विषय - भूमि और स्त्री।
भावार्थ -
(वशायाः) वश करने हारी पृथ्वी या राष्ट्र के (पुत्रम्) समस्त पुरुषों को कष्टों से त्राण करने में समर्थ पुरुष की शरण (आ यान्ति) सब प्राप्त होते हैं। वशा का पुत्र राजा है। देखो वशाप्रकरण॥
टिप्पणी -
‘मायन्ती’ ‘मायति’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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