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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 130

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 11
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    एन॑श्चिपङ्क्ति॒का ह॒विः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    एन॑श्चिपङ्क्त‍ि॒का । ह॒वि: ॥१३०.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एनश्चिपङ्क्तिका हविः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एनश्चिपङ्क्त‍िका । हवि: ॥१३०.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 11

    भावार्थ -
    हे (देव) देव ! राजन् ! (सूर्यम्) सूर्य के समान तेजस्वी (त्वा प्रति) तुझे ही (एनी) श्वेत (हरिक्णिका) अति शीघ्रगति वाली घोढ़ी या पूर्वोक्त सेना और (हरिः) वेगवान् या वीर अश्व प्राप्त हो। अथवा—(हरिक्निका एनी) मनोहर निर्दोष निर्मल कन्या और (हरिः) उत्तम अश्व तुझे प्राप्त हों।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing

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