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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ऋषभः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - ऋषभ सूक्त

    अ॒पां यो अग्ने॑ प्रति॒मा ब॒भूव॑ प्र॒भूः सर्व॑स्मै पृथि॒वीव॑ दे॒वी। पि॒ता व॒त्सानां॒ पति॑र॒घ्न्यानां॑ साह॒स्रे पोषे॒ अपि॑ नः कृणोतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पाम् । य: । अग्ने॑ । प्र॒ति॒ऽमा । ब॒भूव॑ । प्र॒ऽभू: । सर्व॑स्मै । पृ॒थि॒वीऽइ॑व । दे॒वी । पि॒ता । व॒त्साना॑म् । पति॑: । अ॒घ्न्याना॑म् । सा॒ह॒स्रे । पोषे॑ । अपि॑ । न॒: । कृ॒णो॒तु॒ ॥४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपां यो अग्ने प्रतिमा बभूव प्रभूः सर्वस्मै पृथिवीव देवी। पिता वत्सानां पतिरघ्न्यानां साहस्रे पोषे अपि नः कृणोतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपाम् । य: । अग्ने । प्रतिऽमा । बभूव । प्रऽभू: । सर्वस्मै । पृथिवीऽइव । देवी । पिता । वत्सानाम् । पति: । अघ्न्यानाम् । साहस्रे । पोषे । अपि । न: । कृणोतु ॥४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (यः) जो (अग्रे) पूर्वकाल में (अपां) जगत् के कारणभूत आपः= सूक्ष्म प्रकृति के परमाणुओं पर भी (प्रतिमा) ‘प्रतिमान’ मापने और उन में भी व्यापने वाला (बभूव) रहा, और (सर्वस्मै प्रभूः) सब संसार का उत्पादक और अधिष्ठाता, (देवी पृथिवी इव) देवी पृथिवी के समान सबका आश्रय था और है। और जो (वत्सानाम्) प्रकृति के आगे उत्पन्न होने वाले पञ्चभूत आदि विकृति रूपों के या प्राणियों के आवास हेतु लोकों या मुक्त जीवों का (पिता) जनक और पालक है, और (अघ्न्यानाम् पतिः) कभी नाश न होने वाली पञ्चभूतों की सूक्ष्म तन्मात्राओं का भी पालक है वह परमात्मा (नः) हमें (साहस्त्रे पोषे) सहस्रों प्रकार के पोषण कार्यों में (अपि कृणोतु) समर्थ करे अर्थात् जिस प्रकार वह सहस्रों विश्वों को पुष्ट करता और पालता है उसी प्रकार वह हमें भी समर्थ करे। ‘वत्सानां पिता, अघ्न्यानां पतिः’ इत्यादि विशेषणों से साधारण सांड भी उपमान रूप से ज्ञात होता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। ऋषभो देवता। १-५, ७, ९, २२ त्रिष्टुभः। ८ भुरिक। ६, १०,२४ जगत्यौ। ११-१७, १९, २०, २३ अनुष्टुभः। १२ उपरिष्टाद् बृहती। २१ आस्तारपंक्तिः। चतुर्विंशर्चं सूक्तम्॥

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