Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अग्निर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    3

    समा॑स्त्वाऽग्न ऋ॒तवो॑ वर्द्धयन्तु संवत्स॒राऽऋष॑यो॒ यानि॑ स॒त्या। सं दि॒व्येन॑ दीदिहि रोच॒नेन॒ विश्वा॒ऽ आ भा॑हि प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    समाः॑। त्वा॒। अ॒ग्ने॒। ऋ॒तवः॑। व॒र्द्घ॒य॒न्तु। सं॒व॒त्स॒राः। ऋष॑यः। यानि॑। स॒त्या। सम्। दि॒व्येन॑। दी॒दि॒हि॒। रो॒च॒नेन॑। विश्वाः॑। आ। भा॒हि॒। प्र॒दिश॒ इति॑ प्र॒ऽदिशः॑। चत॑स्रः ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सास्त्वाग्नऽऋतवो वर्धयन्तु सँवत्सराऽऋषयो यानि सत्या । सन्दिव्येन दीदिहि रोचनेन विश्वाऽआभाहि प्रदिशश्चतस्रः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    समाः। त्वा। अग्ने। ऋतवः। वर्द्घयन्तु। संवत्सराः। ऋषयः। यानि। सत्या। सम्। दिव्येन। दीदिहि। रोचनेन। विश्वाः। आ। भाहि। प्रदिश इति प्रऽदिशः। चतस्रः॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे (अग्ने) विद्वान, (समाः) वर्ष आणि (ऋतवः) शरद आदी ऋतू तसेच (संवत्सराः) प्रभव आदी संवत्सर आणि (ऋषयः) मंत्रद्रष्ट विद्वान, हे सर्व व या व्यतिरिक्त (यानि) जे जे (सत्या) सत्य कर्म आहेत, ते (त्वा) आपणांस (वर्द्धयन्त) वृद्धिंगत करोत (आपली वर्षानुवर्षे उन्नती-प्रगती होत राहो) ज्याप्रमाणे अग्नी शुद्ध (रोचनेन) प्रकाशद्वारे (विश्‍वा) सर्व (प्रदिशः) उत्तम गुणयुक्त (उपदिशा) आशि (चतसः) चार दिशा उजळून टाकतो, त्याप्रमाणे हे विद्वान, आपण विद्येचा (सं, दीदिहि) प्रकाश प्रसृत करा अशी कामना करा आणि न्याययुक्त धर्माचा (आ, भाहि) उज्वल उजेड सगळीकडे पसरू द्या. ॥1॥

    भावार्थ - भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. आप्त व्यक्तींनी सदा सर्वकाळ सत्य विद्येचा आणि उत्तमकर्म करण्याचा उपदेश सर्वांना करावा. सर्व शरीरधारी प्राण्यांचे आरोग्य, पोषण, विद्या, सुशीलत्व यांची वृद्धी करावी, जसा सूर्य आपल्या समोरील सर्व पदार्थांना प्रकाशित करतो, तद्वत आप्तजनांनी सर्व लोकांना सुशिक्षण सुविधा देऊन सदैव आनन्दित करावे. ॥1॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top