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  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 24
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    रा॒ये नु यं ज॒ज्ञतू॒ रोद॑सी॒मे रा॒ये दे॒वी धि॒षणा॑ धाति दे॒वम्।अध॑ वा॒युं नि॒युतः॑ सश्चत॒ स्वाऽ उ॒त श्वे॒तं वसु॑धितिं निरे॒के॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रा॒ये। नु। यम्। ज॒ज्ञतुः॑। रोद॑सी॒ इति॒ रोद॑सी। इ॒मे इती॒मे। रा॒ये। दे॒वी। धि॒षणा॑। धा॒ति॒। दे॒वम्। अध॑। वा॒युम्। नि॒युत॒ इति॑ नि॒ऽयुतः॑। स॒श्च॒त॒। स्वाः। उ॒त। श्वे॒तम्। वसु॑धिति॒मिति॒ वसु॑ऽधितिम्। नि॒रे॒के ॥२४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    राये नु यञ्जज्ञतू रोदसीमे राये देवी धिषणा धाति देवम् । अध वायुन्नियुतः सश्चत स्वाऽउत श्वेतँवसुधितिन्निरेके ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    राये। नु। यम्। जज्ञतुः। रोदसी इति रोदसी। इमे इतीमे। राये। देवी। धिषणा। धाति। देवम्। अध। वायुम्। नियुत इति निऽयुतः। सश्चत। स्वाः। उत। श्वेतम्। वसुधितिमिति वसुऽधितिम्। निरेके॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 24
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (इमे) हे (रोदसी) आकाश आणि भूमी दोन्ही (राये) धनप्राप्तीसाठी (यम्) ज्या स्त्रीला (जज्ञतः) उत्पन्न करतात (भरपूर उद्यमशीला व कर्मवीरा, स्वकर्तृत्वाने धन अर्जित करणारी एखादीच स्त्री असते) ती (देवी) उत्तम गुणवती आणि (धिषणा) अतिबुद्धिमती स्त्री (देवम्) आपल्यासाठी अनुकूल अशा दिव्य पतीचा (राये) अधिकाधिक धनप्राप्तीसाठी (नु) शीघ्र (धाति) स्वीकार करते. (अध) या व्यतिरिक्त (ते दोघे पति-पत्नी) (निरेके) एखाद्या निःशंक निर्भय स्थानात (स्वाः) आपल्यासाठी (नियुतः) निश्‍चयाने मिश्रण वा संगती करणारे किंवा पृथक करणारे लोक (श्‍वेतम्) एखाद्या वृद्ध (अनुभवी व्यक्तीला आपला नेता म्हणून स्वीकारतात) (उत) आणि (वसुधितिम्) पृथ्वी आदी आठ वस्तूंना धरण करणार्‍या (वायुम्) वायूला (सश्‍चत) प्राप्त करतात (ते दोघे त्यांचा वृद्ध नायक सर्वजण वायूंविषयी अधिक ज्ञान मिळवतात आणि त्यापासून समाजाला लाभ देतात) हे मनुष्यांनो, तुम्ही त्या वायूचे ज्ञान मिळवा ॥24॥

    भावार्थ - missing

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