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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 166 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 166/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मैत्रावरुणोऽगस्त्यः देवता - मरुतः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    यू॒यं न॑ उग्रा मरुतः सुचे॒तुनारि॑ष्टग्रामाः सुम॒तिं पि॑पर्तन। यत्रा॑ वो दि॒द्युद्रद॑ति॒ क्रिवि॑र्दती रि॒णाति॑ प॒श्वः सुधि॑तेव ब॒र्हणा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यू॒यम् । नः॒ । उ॒ग्राः॒ । म॒रु॒तः॒ । सु॒ऽचे॒तुना॑ । अरि॑ष्टऽग्रामाः । सु॒ऽम॒तिम् । पि॒प॒र्त॒न॒ । यत्र॑ । वः॒ । दि॒द्युत् । रद॑ति । क्रिविः॑ऽदती । रि॒णाति॑ । प॒श्वः । सुधि॑ताऽइव । ब॒र्हणा॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यूयं न उग्रा मरुतः सुचेतुनारिष्टग्रामाः सुमतिं पिपर्तन। यत्रा वो दिद्युद्रदति क्रिविर्दती रिणाति पश्वः सुधितेव बर्हणा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यूयम्। नः। उग्राः। मरुतः। सुऽचेतुना। अरिष्टऽग्रामाः। सुऽमतिम्। पिपर्तन। यत्र। वः। दिद्युत्। रदति। क्रिविःऽदती। रिणाति। पश्वः। सुधिताऽइव। बर्हणा ॥ १.१६६.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 166; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे उग्रा मरुतो विद्वांसो यूयमरिष्टग्रामाः सन्तो नः सुमतिं सुचेतुना पिपर्त्तन। यत्र क्रिविर्दती वो विद्युद्रदति तत्र सुधितेव बर्हणा सा पश्वो रिणाति ॥ ६ ॥

    पदार्थः

    (यूयम्) (नः) अस्माकम् (उग्राः) तीव्रगुणकर्मस्वभावाः (मरुतः) मरुद्वत्सुचेष्टाः (सुचेतुना) सुष्ठु विज्ञानेन (अरिष्टग्रामाः) अहिंसका ग्रामा येभ्यस्ते (सुमतिम्) प्रशस्तां प्रज्ञाम् (पिपर्तन) पूरयन्तु (यत्र) अत्र ऋचितु० इत्यनेन दीर्घः। (वः) युष्माकम् (दिद्युत्) देदीप्यमाना विद्युत् (रदति) विलिखति (क्रिविर्दती) क्रिविर्हिंसनमेव दन्ता यस्याः सा (रिणाति) गच्छति (पश्वः) पशून् (सुधितेव) सुष्ठु धृतेव (बर्हणा) वर्द्धते या सा ॥ ६ ॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। शिल्पव्यवहारसंसाधिता विद्युदश्वादिपशुवत्कार्यसाधिका भवति। तस्याः क्रियावेत्तारो विद्वांसोऽन्यानपि तद्विद्याकुशलान् संपादयन्तु ॥ ६ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (उग्राः) तीव्रगुणकर्मस्वभावयुक्त (मरुतः) पवनों के समान शीघ्रता करनेवाले विद्वानो ! (यूयम्) तुम (अरिष्टग्रामाः) जिनसे ग्राम के ग्राम अहिंसक होते अर्थात् पशु आदि जीवों को जिन्होंने ताड़ना देना छोड़ दिया ऐसे होते हुए (नः) हमारी (सुमतिम्) प्रशस्त उत्तम बुद्धि को (सुचेतुना) सुन्दर विज्ञान से (पिपर्त्तन) पूरी करो। (यत्र) जहाँ (क्रिविर्दती) हिंसा करने रूप दाँत हैं जिसके वह (वः) तुम्हारे सम्बन्ध से (दिद्युत्) अत्यन्त प्रकाशमान बिजुली (रदति) पदार्थों को छिन्न-भिन्न करती है वहाँ (सुधितेव) अच्छे प्रकार धारण की हुई वस्तु के समान (बर्हणा) बढ़ती हुई (पश्वः) पशुओं को अर्थात् पशुभावों को (रिणाति) प्राप्त होती जैसे पशु, घोड़े, बैल आदि रथादिकों को जोड़े हुए उनको चलाते हैं वैसे उन रथों को अति वेग से चलाती है ॥ ६ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। शिल्पव्यवहार से सिद्ध की बिजुलीरूप आग घोड़े आदि पशुओं के समान कार्य सिद्ध करनेवाली होती है, उसकी क्रिया को जाननेवाले विद्वान् अन्य जनों को भी उस विद्युद्विद्या से कुशल करें ॥ ६ ॥

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    विषय

    सुमति का पूरण

    पदार्थ

    १. हे (मरुतः) = प्राणसाधना करनेवाले ज्ञानी पुरुषो! (यूयम्) = आप (उग्राः) = तेजस्वी हैं (अरिष्टग्रामाः) = अहिंसित इन्द्रियसमूहवाले हैं। आप (सुचेतुना) = उत्तम ज्ञान के द्वारा (नः) = हमारे लिए (सुमतिम्) = कल्याणी मति को (पिपर्तन) = हममें पूरित करनेवाले होओ। तेजस्वी, प्राणसाधना करनेवाले आचार्यों से हमें उत्तम ज्ञान प्राप्त हो । (यत्र) = जहाँ (वः) = तुम्हारी क्रविर्दती हिंसक दाँतोंवाली (दिद्युत्) = ज्ञानरूपी विद्युत् (रदति) = अज्ञानान्धकार का विलेखन करती है, वहाँ पश्व:पाशविक वासनाओं को रिणाति नष्ट कर देती है (इव) = जैसे कि (सुधिता) = उत्तमता से प्रेरित की गई (बर्हणा हेति) = नाशकशक्ति किसी पशु को नष्ट करती है। आचार्य को जहाँ विद्यार्थी को सुमति प्राप्त करानी है, वहाँ उसे ज्ञान देकर उसकी पाशविक भावना को भी नष्ट करना है।

    भावार्थ

    भावार्थ- आचार्य प्राणसाधना के द्वारा तेजस्वी व अहिंसित इन्द्रियोंवाले बनकर विद्यार्थियों में सुमति व ज्ञान को परिपूर्ण करें। इस ज्ञानवज्र के द्वारा उनकी पाशविक वृत्तियों को नष्ट करें।

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    विषय

    प्रजाजनों का रक्षण ।

    भावार्थ

    हे ( मरुतः ) विद्वान् वीर पुरुषो ! ( उग्राः ) प्रचण्ड, तीव्र गुण-कर्म स्वभाव वाले ( यूयं ) आप लोग ( सुचेतुना ) उत्तम ज्ञान से ( अरिष्टग्रामाः ) अपने जन संघों, ग्रामों और प्राणसमूहों को नष्ट न होने देते हुए, उनकी रक्षा करते हुए ( नः सुमतिं ) हमारी शुभ बुद्धि, ज्ञान और बल को ( पिपर्त्तन ) सदा पूर्ण करो । ( यत्र ) जहां ( वः ) तुम वीरों की ( क्रिविर्दिती ) हिंसाकरी दांतों वाली ( विद्युत् ) चमचमाती विद्युत् शक्ति ( रदति ) भूमि और आकाश को फाड़ देती है और ( सुधिता इव ) खूब लगी हुई या चलाई हुई तेज धार की ( बर्हणा ) शस्त्र धारा के समान विद्युत् भी ( पश्वः रिणाति ) संग्राम में अश्वादि पशुओं और अधीन होकर लड़ने वाले सैनिकों को नाश कर डालती है । अथवा—( सुधिता इव बर्हणाः पश्वः रिणाति ) उत्तम रीति से धारण की गयी बड़ी विद्युत् अनेक पशुओं के समान यन्त्रों को चलाती है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मैत्रावरुणोऽगस्त्य ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः– १, २, ८ जगती । ३, ५, ६, १२, १३ निचृज्जगती । ४ विराट् जगती । ७, ९, १० भुरिक् त्रिष्टुप् । ११ विराट् त्रिष्टुप् । १४ त्रिष्टुप् । १५ पङ्क्तिः ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. शिल्पव्यवहाराने सिद्ध केलेला विद्युत अग्नी घोडा इत्यादी पशूप्रमाणे कार्य सिद्ध करणारा आहे. ती क्रिया जाणणाऱ्या विद्वानांनी इतर लोकांनाही विद्युत विद्येमध्ये निपुण करावे. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Maruts, powers young, dynamic and passionately enthusiastic, bright blazing and well- harnessed is your power of energy, held and controlled like a tempered sword, cutting, lighting, digging and driving. With this electric energy and your noble intelligence, assure and augment our understanding and development without damaging the country-life.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Learned persons should excel in the use of electricity.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O fierce Maruts (mighty and learned persons ) ! being benevolent to people of the villages, you fill in their mind good intellect and good knowledge. Your electric weapon armed with its gory teeth (Sam) kills the wicked enemies, it protects the creatures well grasped and ever goes on growing in power.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The electricity applied with the scientific and technological knowledge accomplishes many works like horses and other animals. It is the duty of those learned persons who know its action to make also others well-versed in its use.

    Foot Notes

    (विद्युत्) देदीप्यमाना विद्युत् = Shining electricity. (क्रिविर्दती क्रिविहिंसनमेव दन्त्ता यस्य = With of violent type. (बर्हणा) या वर्धते सा = Growing in power.

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