Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 191 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 191/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - अबोषधिसूर्याः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    ए॒त उ॒ त्ये प्रत्य॑दृश्रन्प्रदो॒षं तस्क॑रा इव। अदृ॑ष्टा॒ विश्व॑दृष्टा॒: प्रति॑बुद्धा अभूतन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ते । ऊँ॒ इति॑ । त्ये । प्रति॑ । अ॒दृ॒श्र॒न् । प्र॒ऽदो॒षम् । तस्क॑राःऽइव । अदृ॑ष्टाः । विश्व॑ऽदृश्टाः । प्रति॑ऽबुद्धाः । अ॒भू॒त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एत उ त्ये प्रत्यदृश्रन्प्रदोषं तस्करा इव। अदृष्टा विश्वदृष्टा: प्रतिबुद्धा अभूतन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एते। ऊँ इति। त्ये। प्रति। अदृश्रन्। प्रऽदोषम्। तस्कराःऽइव। अदृष्टाः। विश्वऽदृष्टाः। प्रतिऽबुद्धाः। अभूतन ॥ १.१९१.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 191; मन्त्र » 5
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    त्य एते उ प्रदोषं तस्कराइव प्रत्यदृश्रन्। हे अदृष्टा विश्वदृष्टा यूयं प्रतिबुद्धा अभूतन ॥ ५ ॥

    पदार्थः

    (एते) विषधरा विषा वा (उ) वितर्के (त्ये) (प्रति) (अदृश्रन्) दृश्यन्ते (प्रदोषम्) रात्र्यारम्भे (तस्कराइव) यथा चोराः (अदृष्टाः) ये न दृश्यन्ते (विश्वदृष्टाः) विश्वैः सर्वैर्दृष्टाः (प्रतिबुद्धाः) प्रतीतेन ज्ञानेन युक्ताः (अभूतन) भवन्ति ॥ ५ ॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा चोरेषु दस्यवो दृष्टा इतर अदृष्टाः सन्ति। तथा जना विविधान् प्रसिद्धाऽप्रसिद्धान् विषधारिणो विषान् वा जानन्तु ॥ ५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    (त्ये) वे (एते) (उ) ही पूर्वोक्त विषधर वा विष (प्रदोषम्) रात्रि के आरम्भ में (तस्कराइव) जैसे चोर वैसे (प्रत्यदृश्रन्) प्रतीति से दिखाई देते हैं। हे (अदृष्टाः) दृष्टिपथ न आनेवालो वा (विश्वदृष्टाः) सबके देखे हुए विषधारियो ! तुम (प्रतिबुद्धाः) प्रतीत ज्ञान से अर्थात् ठीक समय से युक्त (अभूतन) होओ ॥ ५ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे चोरों में डाँकू देखे और न देखे होते हैं, वैसे मनुष्य नाना प्रकार के प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध विषधारियों वा विषों को जानें ॥ ५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अदृष्ट परन्तु विश्वदृष्ट

    पदार्थ

    १. (एत) = और (उ) = निश्चय से (त्ये) = वे विषधर कृमि उसी प्रकार (प्रत्यदृश्रन्) = दिखते हैं, (इव) = जैसे (प्रदोषम्) = रात्रि के प्रारम्भ में (तस्कराः) = चोर । चोरों का कार्य अन्धकार में अधिक होता है, इसी प्रकार विषधर कृमि भी अन्धकार में अधिक काटनेवाले होते हैं । २. ये कृमि (अदृष्टाः) = लोगों से दिखते नहीं। लोग इन्हें नहीं देख रहे होते, परन्तु ये (विश्वदृष्टा:) = [विश्वं दृष्टं यैस्ते] सबको देख रहे होते हैं। इसलिए कहते हैं कि (प्रतिबुद्धाः अभूतन) = हे लोगो! खूब सावधान रहो।

    भावार्थ

    भावार्थ – ये विषैले कृमि प्रायः अन्धकार में काट जाते हैं, अतः ऐसे प्रसङ्गों में सावधान रहना चाहिए।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विषैले जीवों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ये सभी विषधारी जीव जो दिन को छुपे रहते हैं ( एते उ त्ये ) वे पूर्वोक्त सब ( प्रदोषं ) रात्रि के प्रारंभ समय में ( तस्कराः इव ) चोरों के समान ( प्रति अदृश्रन् ) प्रत्यक्ष रूप में दीखा करते हैं । ( अदृष्टाः ) जो जीव प्रायः नहीं भी दीखते, वे भी ( विश्वदृष्टाः ) सब की दृष्टि में आकर या स्वयं सब कुछ देखते हुए (प्रतिः) खूब अपने तईं सावधान,सचेत ( अभूतन ) होकर रहते हैं । अथवा रात्रि में न दीखने वाले जीव भी सबको नहीं दीखते, इसलिये हे पुरुषो ! आप सब सचेत होकर रहो। इति चतुर्दशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः॥ अबोषधिसूर्या देवताः॥ छन्द:– १ उष्णिक् । २ भुरिगुष्णिक्। ३, ७ स्वराडुष्णिक्। १३ विराडुष्णिक्। ४, ९, १४ विराडनुष्टुप्। ५, ८, १५ निचृदनुष्टुप् । ६ अनुष्टुप् । १०, ११ निचृत् ब्राह्मनुष्टुप् । १२ विराड् ब्राह्म्यनुष्टुप । १६ भुरिगनुष्टुप् ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे चोरांमध्ये काही डाकू, दृष्ट व काही अदृष्ट असतात तसे माणसांनी नाना प्रकारच्या प्रसिद्ध, अप्रसिद्ध विषधाऱ्यांना किंवा विषांना जाणावे. ॥ ५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    All these come out astir like thieves at night, unseen as they are and yet seen by all and known to all. Therefore, all ye men and women, beware of them.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Protection and serving cow progeny is essential for a learned person.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    They (venomous creatures) may be discovered in concealment in the darkness like the thieves. Hidden and invisible by others, they all could see others. Therefore, men should carefully know their nature and dwellings well, (in order to counteract their harmful effect).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The robbers mix with the thieves during the daytime, while others are not generally noticed or visible. In the same manner, persons should know species and nature exactly of all venomous creatures, their identity and their venom.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top