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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 46/ मन्त्र 12
    ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तत्त॒दिद॒श्विनो॒रवो॑ जरि॒ता प्रति॑ भूषति । मदे॒ सोम॑स्य॒ पिप्र॑तोः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत्ऽत॑त् । इत् । अ॒श्विनोः॑ । अवः॑ । ज॒रि॒ता । प्रति॑ । भू॒ष॒ति॒ । मदे॑ । सोम॑स्य । पिप्र॑तोः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तत्तदिदश्विनोरवो जरिता प्रति भूषति । मदे सोमस्य पिप्रतोः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत्तत् । इत् । अश्विनोः । अवः । जरिता । प्रति । भूषति । मदे । सोमस्य । पिप्रतोः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 46; मन्त्र » 12
    अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 35; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (तत्तत्) तत्तदुक्तं वक्ष्यमाणं वा सुखम् (इत्) एव (अश्विनोः) उक्तयोः सभासेनेशयोः सकाशात् (अवः) रक्षणादिकम् (जरिता) स्तोता विद्वान् (प्रति) (भूषति) अलङ्करोति (मदे) माद्यन्ति दृष्यन्त्यानन्दन्ति यस्मिन् व्यवहारे तस्मिन् (सोमस्य) उत्पन्नस्य जगतो मध्ये (पिप्रतोः) यौ पिपूर्त्तस्तयोः ॥१२॥

    अन्वयः

    पुनरेताभ्यां किं प्राप्तव्यमित्युपदिश्यते।

    पदार्थः

    यो जरिता मनुष्यः पिप्रतोरश्विनोः सकाशात्सोमस्य मदेऽवः प्रति भूषति स तत्तत्सुखमाप्नोति ॥१२॥

    भावार्थः

    नहि कैश्चिदपि विद्वच्छिक्षायुक्तया क्रियया विना सर्वाणि सुखानि प्राप्तुं शक्यन्ते तस्मादेतन्नित्यमध्येष्टव्यम् ॥१२॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर सभा और सेनापति अश्वियों से क्या पाना चाहिये इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    पदार्थ

    जो (जरिता) स्तुति करनेवाला विद्वान् मनुष्य (पिप्रतोः) पूरण करनेवाले (अश्विनोः) सभा और सेनापति से (सोमस्य) उत्पन्न हुए जगत् के बीच (मदे) आनन्द युक्त व्यवहार में (अवः) रक्षादि को (प्रतिभूषति) अलंकृत करता है (तत्तत्) उस-२ सुख को प्राप्त होता है ॥१२॥

    भावार्थ

    कोई भी विद्वानों से शिक्षा वा क्रिया को ग्रहण किये विना सब सुखों को प्राप्त नहीं हो सकता इससे उसका खोज नित्य करना चाहिये ॥१२॥

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    विषय

    अङ्ग - प्रत्यङ्ग का अलंकरण

    पदार्थ

    १. (जरिता) - स्तोता (मदे) - हर्ष के निमित्त (सोमस्य पिप्रतोः) - [पूरयतो] सोमशक्ति का पूरण करनेवाले (अश्विनोः) - प्राणापानों के (तत् तत् इत्) - निश्चय से उस - उस (अवः) - रक्षण को (प्रतिभूषति) - अङ्ग - प्रत्यङ्ग में सुभूषित करता है । 
    २. प्रभु का स्तवन करनेवाला प्राणसाधना करता है । यह प्राणसाधना शरीर में सोम का रक्षण का कारण बनती है । सोमरक्षण से एक अद्भत आनन्द का अनुभव होता है और अङ्ग - प्रत्यङ्ग शक्ति से सुभूषित हो उठता है । 
     

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणापान अङ्ग - प्रत्यङ्ग का रक्षण करते हैं, जिससे प्रत्येक अङ्ग शक्ति से अलंकृत हो उठता है और स्तोता को एक अद्भुत आनन्द का अनुभव होता है । 
     

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    विषय

    ताल और प्रतिक्षेपक द्वारा अग्नि उत्पन्न करने की विधि ।

    भावार्थ

    (जरिता) उपदेशक विद्वान् पुरुष, (मदे) आनन्द और सुख को प्राप्त करने के लिए (सोमस्य) परम प्रेरक शक्ति या बल या ऐश्वर्य को (पिप्रतोः) पालन, पूरण करनेवाले (अश्विनोः) सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि जल और उनके समान ज्ञानयुक्त शिल्पियों के (तत् तत् इत् अवः) उन उन, नाना प्रकार के विज्ञानों और क्रिया सामर्थ्यों को (प्रति भूषति) प्रत्येक पदार्थ में ही देखना चाहता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-१५ प्रस्कण्वः काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्द—१, १० विराड्गायत्री । ३, ११, ६, १२, १४ गायत्री । ५, ७, ९, १३, १५, २, ४, ८ निचृद्गायत्री ॥

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    विषय

    फिर सभापति और सेनापति को अश्वियों (अग्नि और जल) से क्या पाना चाहिये, इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    यः जरिता मनुष्यः पिप्रतोः अश्विनोः सकाशात् सोमस्य मदे अवः प्रति भूषति स तत्तत् सुखम् आप्नोति ॥१२॥

    पदार्थ

    (यः)=जो, (जरिता) स्तोता विद्वान्= स्तुति करनेवाला विद्वान्, (मनुष्यः)= मनुष्य, (पिप्रतोः) यौ पिपूर्त्तस्तयोः= पूर्ण करनेवाले जो, (अश्विनोः) उक्तयोः सभासेनेशयोः सकाशात्=कहे गये सभापति और सेनाध्यक्ष, (सकाशात्) =निकटता से, (सोमस्य) उत्पन्नस्य जगतो मध्ये=उत्पन्न हुए जगत् के बीच में से, (मदे) माद्यन्ति दृष्यन्त्यानन्दन्ति यस्मिन् व्यवहारे तस्मिन् =जिसके व्यवहार को देखकरआनन्दित होते हैं, (अवः) रक्षणादिकम्=ऐसे रक्षा आदि के, (प्रति)= प्रति, (भूषति) अलङ्करोति= सुशोभित करता है, (सः)=वह, (तत्तत्) तत्तदुक्तं वक्ष्यमाणं वा सुखम्=वैसा-वैसा कहा गया सुख, (आप्नोति)=प्राप्त करता है ॥१२॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    किसी भी विद्वान की शिक्षा और क्रिया को ग्रहण किये विना सब सुखों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं, इसलिये इस नियम को नित्य देखते रहना चाहिये ॥१२॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    (यः) जो (जरिता) स्तुति करनेवाला विद्वान् (मनुष्यः) मनुष्य, (पिप्रतोः) पूर्ण करनेवाले जो (अश्विनोः) कहे गये सभापति और सेनाध्यक्ष (सकाशात्) निकटता से (सोमस्य) उत्पन्न हुए जगत् के बीच में से, (मदे) जिसके व्यवहार को देखकरआनन्दित होते हैं, (अवः) ऐसे रक्षा आदि के (प्रति) प्रति (भूषति) सुशोभित करता है। (सः) वह (तत्तत्) वैसा-वैसा कहा गया सुख (आप्नोति)प्राप्त करता है ॥१२॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (तत्तत्) तत्तदुक्तं वक्ष्यमाणं वा सुखम् (इत्) एव (अश्विनोः) उक्तयोः सभासेनेशयोः सकाशात् (अवः) रक्षणादिकम् (जरिता) स्तोता विद्वान् (प्रति) (भूषति) अलङ्करोति (मदे) माद्यन्ति दृष्यन्त्यानन्दन्ति यस्मिन् व्यवहारे तस्मिन् (सोमस्य) उत्पन्नस्य जगतो मध्ये (पिप्रतोः) यौ पिपूर्त्तस्तयोः ॥१२॥ विषयः- पुनरेताभ्यां किं प्राप्तव्यमित्युपदिश्यते। अन्वयः- यो जरिता मनुष्यः पिप्रतोरश्विनोः सकाशात्सोमस्य मदेऽवः प्रति भूषति स तत्तत्सुखमाप्नोति ॥१२॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- नहि कैश्चिदपि विद्वच्छिक्षायुक्तया क्रियया विना सर्वाणि सुखानि प्राप्तुं शक्यन्ते तस्मादेतन्नित्यमध्येष्टव्यम् ॥१२॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    कोणीही विद्वानांकडून शिक्षण किंवा क्रिया ग्रहण केल्याशिवाय सर्व सुख प्राप्त करू शकत नाही. त्यामुळे त्याचा नित्य शोध घेतला पाहिजे. ॥ १२ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Made somasya pipratoh.$Every worshipful seeker of knowledge, wisdom and power explores and supplements the paths of protection and progress in the business of life’s joy created by the Ashvins (divinities of nature and humanity who are harbingers of light and inspiration).

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    Subject of the mantra

    Then, what the chairman of assembly and commander of army should get from the Aśvi (fire and water) has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    (yaḥ)=Which, (jaritā)=having praises as scholar, (manuṣyaḥ) =human, (pipratoḥ)=those who complete, (aśvinoḥ) =stated chairman of assembly and chief of army staff, (sakāśāt) =by proximity, (somasya)=from the midst of the world born, (made)=seeing whose behaviour we are happy, (avaḥ)=of such defense etc. (prati) =towards, (bhūṣati)=beautifies. (saḥ) =that, (tattat)=so said happiness, (āpnoti) =attains.

    English Translation (K.K.V.)

    The one who praises the scholar, the one who is said to be the chairman of assembly and the chief of the army, from among the world born from proximity, seeing whose behaviour we are happy, beautifies towards such protection etc. He gets so said happiness.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    Without accepting the teachings and actions of any scholar, one cannot attain all the happiness, therefore this rule should be observed daily.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The singer of the praise, acknowledges the protection that he gets in this world in his delightful dealings, from the President of the Assembly and the Commander of the Army who are nourishers and supporters.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    None can achieve absolute happiness without the actions performed according to the instructions of enlightened persons. Therefore these actions must be performed well.

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