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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 95 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 95/ मन्त्र 12
    ऋषिः - पुरूरवा ऐळः देवता - उर्वशी छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क॒दा सू॒नुः पि॒तरं॑ जा॒त इ॑च्छाच्च॒क्रन्नाश्रु॑ वर्तयद्विजा॒नन् । को दम्प॑ती॒ सम॑नसा॒ वि यू॑यो॒दध॒ यद॒ग्निः श्वशु॑रेषु॒ दीद॑यत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒दा । सू॒नुः । पि॒तर॑म् । जा॒तः । इ॒च्छा॒त् । च॒क्रन् । न । अश्रु॑ । व॒र्त॒य॒त् । वि॒ऽजा॒नन् । कः । दम्प॑ती॒ इति॒ दम्ऽप॑ती । सऽम॑नसा । वि । यू॒यो॒त् । अध॑ । यत् । अ॒ग्निः । श्वशु॑रेषु । दीद॑यत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कदा सूनुः पितरं जात इच्छाच्चक्रन्नाश्रु वर्तयद्विजानन् । को दम्पती समनसा वि यूयोदध यदग्निः श्वशुरेषु दीदयत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कदा । सूनुः । पितरम् । जातः । इच्छात् । चक्रन् । न । अश्रु । वर्तयत् । विऽजानन् । कः । दम्पती इति दम्ऽपती । सऽमनसा । वि । यूयोत् । अध । यत् । अग्निः । श्वशुरेषु । दीदयत् ॥ १०.९५.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 95; मन्त्र » 12
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (कदा) कब (जातः) उत्पन्न हुआ (सूनुः) पुत्र (पितरम्) पिता को (इच्छात्) चाहे-पहिचाने (चक्रन्) रोता हुआ पुत्र (विजानन्) पिता को जानता हुआ (अश्रु) आँसू (न वर्तयत्) न निकाले-न बहावे, पिता के पास आकर शान्त हो जावे (कः) कौन पुत्र (समनसा) मन के साथ या मनोयोग से (दम्पती) भार्यापति-स्व माता पिता को (वि यूयोत्) विवेचित करे-कर सके-कोई नहीं (अथ) अनन्तर (अग्निः) कामाग्नि (श्वशुरेषु) कुत्ते के समान हिंसित करनेवाले जारों, कामी, व्यभिचारियों के (दीदयत्) दीप्त होती है, तब केवल कामातुर व्यभिचारी अकस्मात् पिता हुआ पुत्र को स्नेह नहीं करता है, पुनः पुत्र उसे कैसे चाहे और जाने ॥१२॥

    भावार्थ

    पुत्र उस पिता को चाहता है, जो पुत्र की कामना से उसे उत्पन्न करता है, उसके पास रोता हुआ शान्त हो जाता है। केवल व्यभिचारी कामातुर से अकस्मात्-उत्पन्न हुए को वह स्नेह नहीं करता है, पुनः पुत्र उसे कैसे चाहे ? अतः पुत्र की इच्छा से गृहस्थ जीवन या गृहस्थाश्रम निभाना चाहिए ॥१२॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (कदा जातः सूनुः) कदा खलूत्पन्नः पुत्रः (पितरम्-इच्छात्) स्वपितरं जनकं काङ्क्षेत्-परिचिनुयात् (चक्रन् विजानन् अश्रु न वर्तयत्) क्रन्दमानः पितरं विजानन् खल्वश्रूणि न वर्तयेत्-न पातयेत् तत्पार्श्वे ह्यागत्य शान्तो भवेत् (कः-समनसा) कः पुत्रो मनसा सह मनोयोगेन वा (दम्पती वि यूयोत्) भार्यापती-स्वमातरं स्वपितरं च विश्लेषयेत्, न कोऽपि (अध) अनन्तरं (अग्निः) कामाग्निः (श्वसुरेषु दीदयत्) श्वा-इव हिंसकेषु व्यभिचारिषु दीप्यते तदा न केवलं कामातुरो व्यभिचारी सन् पिता पुत्रं स्निह्यति पुनः कथं पुत्रस्तं विजानीयात् ॥१२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    When would the progeny born, grown, knowing and coming without tears and actively doing love and favour the parents? And who would separate the couple wedded in mutual love when the passion for life shines among the brave? None.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    पुत्र त्या पित्याला प्रेम करतो जो पुत्राच्या कामनेने त्याला उत्पन्न करतो. पित्याजवळ रडत जाताच पुत्र शांत होतो. केवळ व्यभिचारी कामातुर बनून अकस्मात उत्पन्न झालेल्या पुत्राला पिता स्नेह करत नाही, तर पुत्र त्याला कसे प्रेम करील? त्यासाठी पुत्राची इच्छा करून गृहस्थजीवन किंवा गृहस्थाश्रम पार पाडला पाहिजे. ॥१२॥

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