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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 19
    ऋषिः - भिषगाथर्वणः देवता - औषधीस्तुतिः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    या ओष॑धी॒: सोम॑राज्ञी॒र्विष्ठि॑ताः पृथि॒वीमनु॑ । बृह॒स्पति॑प्रसूता अ॒स्यै सं द॑त्त वी॒र्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याः । ओष॑धीः । सोम॑ऽराज्ञीः । विऽस्थि॑ताः । पृ॒थि॒वीम् । अनु॑ । बृ॒ह॒स्पति॑ऽप्रसूताः । अ॒स्यै । सम् । द॒त्त॒ । वी॒र्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ओषधी: सोमराज्ञीर्विष्ठिताः पृथिवीमनु । बृहस्पतिप्रसूता अस्यै सं दत्त वीर्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याः । ओषधीः । सोमऽराज्ञीः । विऽस्थिताः । पृथिवीम् । अनु । बृहस्पतिऽप्रसूताः । अस्यै । सम् । दत्त । वीर्यम् ॥ १०.९७.१९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 19
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (याः) जो (ओषधीः) ओषधियाँ (सोमराज्ञीः) अमृत गुणवाली (पृथिवीम्-अनु) पृथिवी को आश्रय करके (विष्ठिताः) विविधरूप से स्थित हैं (बृहस्पतिः-प्रसूताः) वे महाविद्वान् वैद्य के द्वारा प्रेरित-प्रयुक्त की हुईं-दी हुईं (अस्यै) इस रुग्ण देह के लिए (वीर्यम्) रोगनाशक बल को (सं दत्त) संयुक्त करो ॥१९॥

    भावार्थ

    अमृत गुणवाली ओषधियाँ, जो पृथिवी पर मिलती हैं, वे सुयोग्य वैद्य के द्वारा रोगनाशक बल रोगी के देह में देती हैं ॥१९॥

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    विषय

    शक्ति का संपादन

    पदार्थ

    [१] (या:) = जो (ओषधी:) = ओषधियाँ (सोमराज्ञी:) = सोमलता नामक राजा वाली हैं, वे (पृथिवीं अनुविष्ठिताः) = इस पृथिवी पर, पृथ्वी से शक्ति व गुणों को प्राप्त करके विशेषरूप से स्थित हैं । पृथिवी के भेद से भी ओषधियों के गुणों में अन्तर आ ही जाता है । [२] हे ओषधियो ! आप (बृहस्पति प्रसूता:) = ज्ञानी वैद्य से प्रेरित की जाकर (अस्यै) = इस रुग्णशरीर के लिए (वीर्यं संदत्त) = शक्ति को देनेवाली होवो। ओषधियाँ शरीर में शक्ति को पैदा करके रोगों को नष्ट करनेवाली हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ओषधियाँ शरीर को शक्ति सम्पन्न बनाएँ ।

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    विषय

    ओषधि को प्राप्त करने और प्रयोग के समय विशेष सावधानी की आवश्यकता।

    भावार्थ

    (याः सोम-राज्ञीः ओषधयः) वे ओषधियां जिन में सोम ओषधि के गुण वा सोम-तत्त्व मुख्य हैं, जो (पृथिवीम् अनु विष्ठिताः) भूमि २ के गुण से विशेष २ रूप से स्थित हैं वे विद्वान् व्यक्ति से दी जाकर (अस्मै वीर्यं सं दत्त) इस मनुष्य को बल प्रदान करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (याः-ओषधीः-सोमराज्ञीः) या ओषधयो-अमृतगुणवत्यः (पृथिवीम्-अनु विष्ठिताः) पृथिवीमाश्रित्य-विविधरूपेण स्थिताः (बृहस्पति-प्रसूताः) महाविदुषा वैद्येन प्रेरिताः-प्रयुक्ताः (अस्यै) रुग्णायै तन्वै (वीर्यं सं दत्त) वीर्यं संयुक्तं कुरुत ॥१९॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    You herbs which shine and abound in soma element and overspread the earth, blest by Brhaspati and energised by the sun, pray bless this ailing body with life saving vitality.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी पृथ्वीवर अमृतगुणयुक्त औषधी सापडतात ती सुयोग्य वैद्याद्वारे रोग्याच्या देहात रोगनाशक बल उत्पन्न करतात. ॥१९॥

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