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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 22
    ऋषिः - भिषगाथर्वणः देवता - औषधीस्तुतिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    ओष॑धय॒: सं व॑दन्ते॒ सोमे॑न स॒ह राज्ञा॑ । यस्मै॑ कृ॒णोति॑ ब्राह्म॒णस्तं रा॑जन्पारयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओष॑धयः । सम् । व॒द॒न्ते॒ । सोमे॑न । स॒ह । राज्ञा॑ । यस्मै॑ । कृ॒णोति॑ । ब्रा॒ह्म॒णः । तम् । रा॒ज॒न् । पा॒र॒या॒म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओषधय: सं वदन्ते सोमेन सह राज्ञा । यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तं राजन्पारयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओषधयः । सम् । वदन्ते । सोमेन । सह । राज्ञा । यस्मै । कृणोति । ब्राह्मणः । तम् । राजन् । पारयामसि ॥ १०.९७.२२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 22
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ओषधयः) ओषधियाँ (सोमेन) सोमनामक ओषधिविशेष (राज्ञा सह) नीरोगकरण गुणों से राजमान के साथ (सं वदन्ते) संवाद करती हुई सी-एकाङ्ग होती हुई सी मानों कहती हैं (राजन्) हे नीरोगकरण गुणों से राजमान ! (ब्राह्मणः) विद्वान् वैद्य (यस्मै) जिस रोग के लिए (कृणोति) हमारा प्रयोग करता है, (तम्) उसे (पारयामसि) रोगसमुद्र से पार करती हैं ॥२२॥

    भावार्थ

    उत्तम गुणवाली रसायनरूप प्रधान ओषधी के साथ रोगनिवारक ओषधियाँ भी रोगी को रोगरूप दुःखसागर से पार करती हैं ॥२२॥

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    विषय

    ज्ञानी के परामर्श से ओषधि-प्रयोग

    पदार्थ

    [१] ओषधियों का राजा सोम है । १८ तथा १९ मन्त्र संख्या पर इन्हें 'सोमराज्ञी:' कहा गया है। ये (ओषधयः) = ओषधियाँ मानो (राज्ञा सोमेन सह) = इस अपने राजा सोम के साथ (संवदन्ते) = संवाद करती हुई कहती हैं कि (राजन्) = हे सोमलते ! (यस्मै) = जिसकी रोगी के लिए (ब्राह्मणः) = एक ज्ञानी वैद्य (कृणोति) = हमें करता है (तम्) = उस रोगी को (पारयामसि) = हम रोग से पार करनेवाली होती हैं । [२] औषध के ठीक प्रभाव के लिए आवश्यक है कि इनका प्रयोग एक ज्ञानी वैद्य द्वारा ही करवाया जाए। ज्ञान की कमी के होने पर इनका समुचित प्रयोग न होकर हानि की भी संभावना है ही ।

    भावार्थ

    भावार्थ - ओषधियों का प्रयोग ज्ञानी पुरुष के परामर्श से ही होना चाहिए ।

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    विषय

    उत्तम ओषधियों के ज्ञान और संग्रह में उद्योग करने का उपदेश।

    भावार्थ

    (ओषधयः सोमेन राज्ञा) ओषधियां राजा सोम अर्थात् मुख्य सोमलता के साथ (सं वदन्ते) संवाद करती हैं, उसके गुणों के समान गुण रखती हैं और मानों कहती हैं (यस्मै कृणोति ब्राह्मणः) वेदज्ञ विद्वान् जिस के लिये हमारा प्रयोग करता है हे (राजन्) राजन् ! हम (तं पारयामसि) उसको पूर्ण, तृप्त और संकट से पार कर देती हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ओषधयः सोमेन) ओषधिविशेषेण (राज्ञा) यस्मिन् नीरोगकरण-गुणाः राजन्ते तेन (सह) सं वदन्ते संवादं कुर्वन्तीव (ब्राह्मणः) विद्वान् भिषक् (यस्मै कृणोति) यस्मै रुग्णाय-अस्माकं प्रयोगं करोति (राजन्) हे नीरोगकरणगुणैर्राजमान ओषधिविशेष ! (तं पारयामसि) तं रोगसमुद्रात् पारयामः ॥२२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The herbs joined together with the ruling radiant soma say: O ruling lord of health and life, for whosoever the sagely physician makes use of us we save and pilot him over suffering and disease.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    उत्तम गुणयुक्त रसायनरूपी मुख्य औषधीबरोबर रोगनिवारक औषधीही रोग्याला रोगरूप दु:खसागरातून पार पाडते. ॥२२॥

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