ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 9
ऋषिः - भिषगाथर्वणः
देवता - औषधीस्तुतिः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
इष्कृ॑ति॒र्नाम॑ वो मा॒ताथो॑ यू॒यं स्थ॒ निष्कृ॑तीः । सी॒राः प॑त॒त्रिणी॑: स्थन॒ यदा॒मय॑ति॒ निष्कृ॑थ ॥
स्वर सहित पद पाठइष्कृ॑तिः । नाम॑ । वः॒ । मा॒ता । अथो॒ इति॑ । यू॒यम् । स्थ॒ । निःऽकृ॑तीः । सी॒राः । प॒त॒त्रिणीः॑ । स्थ॒न॒ । यत् । आ॒मय॑ति । निः । कृ॒थ॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इष्कृतिर्नाम वो माताथो यूयं स्थ निष्कृतीः । सीराः पतत्रिणी: स्थन यदामयति निष्कृथ ॥
स्वर रहित पद पाठइष्कृतिः । नाम । वः । माता । अथो इति । यूयम् । स्थ । निःऽकृतीः । सीराः । पतत्रिणीः । स्थन । यत् । आमयति । निः । कृथ ॥ १०.९७.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 9
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वः) ओषधियो ! तुम्हारी (माता) निर्मात्रीशक्ति (इष्कृतिः-नाम) रोग के निराकरण करनेवाली प्रासिद्ध है, सो वह भूमि है (अथ) और (यूयम्) तुम (निष्कृतीः-स्थ) रोग का निराकरण करनेवाली हो। (सीराः) नदियों के समान (पतत्रिणीः स्थ) प्रसरणशील हो, शरीर के रोग को बाहर निकाल देनेवाली हो (यत्-आमयति) जिससे जो रोगी है (निष्कृथ), उसे स्वस्थ करो ॥९॥
भावार्थ
औषधियों की भूमि परिष्कृत होनी चाहिये, तो औषधियाँ भी निर्दोष उत्पन्न हुई रोगों को शरीर से बाहर निकालनेवाली होती हैं, वे सेवन की हुई नदियों की भाँति शरीर में फैलकर रोगी को निर्दोष-स्वस्थ कर देती हैं ॥९॥
विषय
इष्कृति से निष्कृति का जन्म
पदार्थ
[१] हे ओषधियो ! (वः माता) = आपको जन्म देनेवाली यह भूमि माता (इष्कृतिः नाम) = 'इष्कृति' नामवाली है। यह सब (इष्) = वाञ्छनीय अन्नों को (कृति) = उत्पन्न करनेवाली है। इन इष्ट अन्नों को उत्पन्न करने के कारण ही इसका नाम 'इष्कृति' है । [२] (अथ उ यूयम्) = पर आप तो हे ओषधियो ! (निष्कृती: स्थ) = रोगों को शरीर से बाहर करनेवाली हो। माता 'इष्कृति', उसकी सन्तान 'निष्कृति' । इस प्रकार यहाँ विरोधाभास अलंकार है । 'वस्तुतः यहाँ विरोध हो' ऐसी बात तो है ही नहीं । 'इष्कृति' का अर्थ है 'वाञ्छनीय अन्नों को उत्पन्न करनेवाली' और 'निष्कृति' का भाव है 'रोगों को बाहर निकालनेवाली' । [३] हे ओषधियो ! (यदा) = जब आप (आमयति) = [आमयत् का सप्तमी एक वचन] रोगयुक्त पुरुष में (सीराः) [नदी = नाड़ी नि० ४। १९ । ८ ] = नाड़ियों में (पतत्रिणीः) = गति करनेवाली स्थन होती है । तब निष्कृथ रोग को बाहर कर देती हो । नाड़ियों में गति करने का भाव यही है कि रुधिर में पहुँच जाना। यही आधुनिक युग में इञ्जक्शन्स का भाव होता है।
भावार्थ
भावार्थ - 'इष्कृति' से उत्पन्न होती हुई भी ये ओषधियाँ 'निष्कृति' हैं ।
विषय
ओषधियों के रोगनाशक सामर्थ्य का तात्त्विक विवेचन।
भावार्थ
हे ओषधिगण ! (वः माता इष्कृतिः नाम) तुम्हारी माता, पृथिवी ‘इष्कृति’ अर्थात् अन्न को उत्पन्न करने वाली है। (अथो) और (यूयं निः- कृतीः स्थ) तुम सब भी रोगांश को बाहर निकालने वाली हो। जब तुम (सीराः) देह की रक्त नाड़ियों को प्राप्त कर उन में (पतत्रिणीः स्थन) वेग से गति करती हो, तब (यत् आमयति) जो पदार्थ शरीर को पीड़ित कर रहा होता है, उसको (निः कृथ) बाहर निकाल देती, दूर कर देती हो। (२) इसी प्रकार सेनाओं का निर्माता ‘इष्’ प्रेरणाकारी, आज्ञापक होने से ‘इष्कृति’ है और सेनाएं शत्रुओं को खदेड़ने से ‘निष्कृति’ हैं वे नदियों के तुल्य वेग से आगे बढ़ने वाली होती हैं। जो प्रजा या राष्ट्र को दुःख देता है वे उसको दबातीं और बाहर कर देती हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वः) हे ओषधयः ! युष्माकं (माता) निर्मात्रीशक्तिः (इष्कृतिः-नाम) निष्कृतिः “नकारलोपश्छान्दसः” रोगस्य निराकरणकर्त्री (अथ यूयं निष्कृतीः स्थ) अथ च यूयं रोगस्य निराकरणकर्त्र्यः स्थ (सीराः पतत्रिणीः स्थ) नद्य इव प्रसरणशीलाः “सीरा नदीनाम” [निघ० १।१३] शरीराद्बहिर्रोगस्य पातयित्र्यः स्थ (यत्-आमयति निष्कृथ) यो रुजति रोगी भवति तं स्वस्थं कुरुथ ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O herbs, the name of your mother is Ishkrti, good health, immunity and prevention, gifts of food, earth and nature. And you are cleansers and protectors. Be circulating in veins and arteries, throw out all that ails the body’s health.
मराठी (1)
भावार्थ
औषधींची भूमी परिष्कृत असली पाहिजे, तेव्हा औषधीही निर्दोष उत्पन्न होते व रोगांना शरीराबाहेर काढणारी असते. ती सेवन केल्यावर, नद्यांप्रमाणे शरीरात पसरून रोग्याला निर्दोष व स्वस्थ बनविते. ॥९॥
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