ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 6
ऋषिः - भिषगाथर्वणः
देवता - औषधीस्तुतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
यत्रौष॑धीः स॒मग्म॑त॒ राजा॑न॒: समि॑ताविव । विप्र॒: स उ॑च्यते भि॒षग्र॑क्षो॒हामी॑व॒चात॑नः ॥
स्वर सहित पद पाठयत्र॑ । ओष॑धीः । स॒म्ऽअग्म॑त । राजा॑नः । समि॑तौऽइव । विप्रः॑ । सः । उ॒च्य॒ते॒ । भि॒षक् । र॒क्षः॒ऽहा । अ॒मी॒व॒ऽचात॑नः ॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्रौषधीः समग्मत राजान: समिताविव । विप्र: स उच्यते भिषग्रक्षोहामीवचातनः ॥
स्वर रहित पद पाठयत्र । ओषधीः । सम्ऽअग्मत । राजानः । समितौऽइव । विप्रः । सः । उच्यते । भिषक् । रक्षःऽहा । अमीवऽचातनः ॥ १०.९७.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यत्र) जिसके आश्रय में (ओषधीः) ओषधियाँ (समग्मत) सङ्गत होती हैं (समितौ) सभा में (राजानः-इव) जैसे राजकर्मचारी तथा राजसभासद् वैसे (सः-विप्रः) वह विद्वान् (रक्षोहा) रोगनाशक (अमीवचातनः) कृमिनाशक-भिषक् (उच्यते) कहा जाता है, जिसके आश्रय में ओषधियाँ चिकित्सार्थ मिलती हैं ॥६॥
भावार्थ
राजा को आश्रय बनाकर राजसभासद् सभा में मिलकर जैसे कार्य करते हैं, ऐसे ही ओषधियाँ रोगी जन में वैद्य को आश्रय बनाकर अपने गुणों का प्रकाश करती हैं, इसलिए वैद्य को ओषधियों का गुणज्ञ और रोगों का निदानवेत्ता होना चाहिये ॥६॥
विषय
भिषक्
पदार्थ
[१] (यत्र) = जिस पुरुष में (ओषधी:) = ओषधियाँ (समग्मत) = इस प्रकार संगत होती हैं, (इव) = जैसे कि (राजानः समितौ) = राजा लोग किसी समिति में एकत्रित होते हैं, (स विप्रः) = वह रोगी के शरीर का ओषधि प्रयोग से विशेष रूप से पूरण करनेवाला [वि+प्र] (भिषग्) = वैद्य (उच्यते) = कहलाता है । [२] यह वैद्य इन ओषधियों का ज्ञान रखने के कारण, इनके ठीक प्रयोग से (रक्षोहा) = रोगकृमियों का विध्वंस करता है तथा (अमीवचातनः) = रोगों को नष्ट कर डालता है। समिति में एकत्रित हुए- हुए राजा जैसे किसी उत्पन्न हुई हुई समस्या को दूर करने का विचार करते हैं, उसी प्रकार ज्ञानी वैद्य उत्पन्न - उत्पन्न हुए रोग को दूर करने के लिए विविध ओषधियों का विचार करता है ।
भावार्थ
भावार्थ - विविध ओषधियों के गुण दोषों को जाननेवाला ज्ञानी पुरुष ही वैद्य कहलाता है। यह 'रक्षोहा - अमीवचातन' होता है ।
विषय
राजसभा में राजाओं के तुल्य देह में ओषधियों की स्थिति। भिषक् विप्र का लक्षण।
भावार्थ
(राजानः समितौ इव) राजा लोग जिस प्रकार सभा में विराजते हैं उसी प्रकार (यत्र ओषधयः सम् अग्मत) नाना ओषधिगण एकत्र होती हैं (सः विप्रः भिषक् उच्यते) वह विद्वान् पुरुष चिकित्सक कहाता है, वह (रक्षः-हा) पीड़ादायी दुष्ट पुरुषों के नाशक के तुल्य ही (अमीव-चातनः) रोगों का नाश करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यत्र) यस्मिन् यमाश्रित्य (ओषधीः) ओषधयः (समग्मत) सङ्गच्छन्ते प्राप्नुवन्ति (राजानः-समितौ-इव) यथा राजानो राजकर्मचारिणः सभासदः सभायां राजनि तथा (सः-विप्रः-रक्षोहा-अमीवचातनः-भिषक्-उच्यते) स विद्वान् राक्षसनाशको-रोगनाशको भिषक् कथ्यते यमाश्रित्य-ओषधयः उपयुक्ता भवन्ति ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Where herbs and medicines concentre as ruling powers in consult, that sagely scholar is called ‘physician’, destroyer of evil, eliminator of disease and ill health.
मराठी (1)
भावार्थ
राजाच्या आश्रयाने राजसभासद सभेत मिळून मिसळून काम करतात तशीच औषधी रोग्यामध्ये वैद्याचा आश्रय घेऊन आपले गुण प्रकट करते. त्यासाठी वैद्य औषधींचा गुण जाणणारा व रोगांचे निदान करणारा असावा. ॥६॥
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