ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 13
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
सोमो॑ जिगाति गातु॒विद्दे॒वाना॑मेति निष्कृ॒तम्। ऋ॒तस्य॒ योनि॑मा॒सद॑म्॥
स्वर सहित पद पाठसोमः॑ । जि॒गा॒ति॒ । गा॒तु॒ऽवित् । दे॒वाना॑म् । ए॒ति॒ । निः॒ऽकृ॒तम् । ऋ॒तस्य॑ । योनि॑म् । आ॒ऽसद॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो जिगाति गातुविद्देवानामेति निष्कृतम्। ऋतस्य योनिमासदम्॥
स्वर रहित पद पाठसोमः। जिगाति। गातुऽवित्। देवानाम्। एति। निःऽकृतम्। ऋतस्य। योनिम्। आऽसदम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 13
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
यो गातुवित्सोमो देवानामृतस्य निष्कृतमासदं योनिं जिगाति सोऽभीष्टसुखमेति ॥१३॥
पदार्थः
(सोमः) ऐश्वर्य्ययुक्तः (जिगाति) स्तौति (गातुवित्) प्रशंसावित् (देवानाम्) विदुषाम् (एति) प्राप्नोति (निष्कृतम्) नितरां विज्ञातम् (ऋतस्य) सत्यस्य (योनिम्) कारणम् (आसदम्) आसीदन्ति सर्वे यस्मिंस्तम् ॥१३॥
भावार्थः
यो विद्वानस्य विविधाकृतेर्विश्वस्य कारणमव्यक्तं जानाति एतन्निर्मातारं परमात्मानं प्रशंसति स एवैश्वर्यसम्पन्नो भवति ॥१३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
जो (गातुवित्) प्रशंसा जाननेवाले (सोमः) ऐश्वर्य्य से युक्त (देवानाम्) विद्वानों और (ऋतस्य) सत्य के (निष्कृतम्) निरन्तर जाने गए (आसदम्) और जिसमें सब वर्त्तमान होते हैं उस (योनिम्) कारण की (जिगाति) स्तुति करता है, वह अपेक्षित सुख को (एति) प्राप्त होता है ॥१३॥
भावार्थ
जो विद्वान् इस अनेक प्रकार के स्वरूपवाले संसार के कारण अव्यक्त को जानता है और इस संसार के रचनेवाले परमात्मा की प्रशंसा करता है, वही ऐश्वर्य्य से युक्त होता है ॥१३॥
विषय
सोमरक्षक
पदार्थ
[१] शरीर में उत्पन्न होनेवाली अन्तिम धातु 'सोम' है । इसका रक्षक पुरुष भी 'सोम' है । यह (सोमः) = सोमरक्षक पुरुष (गातुवित्) = मार्ग को जाननेवाला (जिगाति) = गतिवाला होता है, अर्थात् यह सोम सदा सुमार्ग पर चलता है। यह (देवानाम्) = देवों के (निष्कृतम्) = परिष्कृत स्थान को प्रति प्राप्त करता है, अर्थात् यह अपने घर को देवों का घर बनाता है। [२] इस प्रकार मार्ग पर चलता हुआ व अपने घर को देवगृह बनाता हुआ यह (ऋतस्य योनिम्) = ऋत के उत्पत्ति स्थान प्रभु को (आसदम्) = प्राप्त करने के लिए होता है। प्रभुप्राप्ति का मार्ग यही है कि हम सोमरक्षण द्वारा अपने जीवन को बड़ा परिष्कृत जीवन बनाएँ ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण द्वारा मार्ग पर चलते हुए अपना जीवन दिव्य बनाते हुए हम प्रभु को प्राप्त करें ।
विषय
सोमविद्वान के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(सोमः) ऐश्वर्ययुक्त पुरुष (देवानां) ज्ञान प्रकाश देने वाले, तेजस्वी ज्ञानी पुरुषों की (गातुवित्) प्रशंसा, उत्तम मार्ग को प्राप्त कर उनके (निष्कृतम्) सर्व साधनसम्पन्न (ऋतस्य) सत्य ज्ञान के (योनिम्) कारण वा आश्रय और (आसदम्) आकर बैठने के स्थान, आश्रय को (जिगाति) जाता है और वह परम (निष्कृतं) शुद्ध ज्ञान सुख को और सत्य के आश्रय परम प्राप्तव्य को भी प्राप्त करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वान अनेक प्रकारचे स्वरूप असलेल्या संसाराचे अव्यक्त कारण जाणतात व संसार निर्माण करणाऱ्या परमात्म्याची प्रशंसा करतात, तेच ऐश्वर्ययुक्त होतात. ॥ १३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The stream of peace and joy in meditation flows on by the paths of the mind and reaches where the senses and mind terminate, the very seat of light divine and origin of the spirit’s will to move into the existential flow.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The virtues of God are elaborated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The man who knows the glory of God and is blessed with the wealth of wisdom, praises the root cause of this universe (material in the form of प्रकृति i.e. matter and efficient in the form of God). All the enlightened persons dwell in it and know it well. Such a person attains desirable happiness.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
That man becomes prosperous and blessed with the wealth of wisdom, who knows the Primordial matter to be the material cause of this multi-form universe and glorifies God, Who is the Creator.
Foot Notes
(जिगाति) स्तौति। = Praises. (गातुवित्) प्रशन्सवित् = Knower of the glory of God. (योनिम् ) कारणाम् । योनिरिति गुहनाम (NG 3, 4) = Cause.
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