ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 9
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - पूषा
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
यो विश्वा॒भि वि॒पश्य॑ति॒ भुव॑ना॒ सं च॒ पश्य॑ति। स नः॑ पू॒षावि॒ता भु॑वत्॥
स्वर सहित पद पाठयः । विश्वा॑ । अ॒भि । वि॒ऽपश्य॑ति । भुव॑ना । सम् । च॒ । पश्य॑ति । सः । नः॒ । पू॒षा । अ॒वि॒ता । भु॒व॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो विश्वाभि विपश्यति भुवना सं च पश्यति। स नः पूषाविता भुवत्॥
स्वर रहित पद पाठयः। विश्वा। अभि। विऽपश्यति। भुवना। सम्। च। पश्यति। सः। नः। पूषा। अविता। भुवत्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 9
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मविषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्या यो जगदीश्वरो विश्वा भुवनानि विपश्यति सं पश्यति स नः पूषाऽविता भुवत्। येन च वयं सततं वर्धेमहि ॥९॥
पदार्थः
(यः) परमात्मा (विश्वा) सर्वाणि (अभि) आभिमुख्ये (विपश्यति) विविधतया प्रेक्षते (भुवना) सर्वाणि भूतानि लोकान् वस्तूनि वा (सम्) (च) (पश्यति) (सः) (नः) अस्माकम् (पूषा) पुष्टिकरः (अविता) रक्षिता (भुवत्) भूयात् ॥९॥
भावार्थः
यः सर्वस्य विधाता द्रष्टा कर्मणां फलप्रदाता न्यायाधीश ईश्वरोऽस्ति स एवाऽस्माकं रक्षको वर्षको भूयादिति सर्वे वयमभिलषेम ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
अब इस अगले मन्त्र में परमात्मा के विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (यः) जो जगदीश्वर (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवना) जीव, लोक वा वस्तुओं को (अभि) सन्मुख (विपश्यति) अनेक प्रकार से देखता है (सम्, पश्यति) मिले हुए देखता है (सः) वह (नः) हम लोगों का (पूषा) पुष्टिकर्त्ता (अविता) रक्षक (भुवत्) होवैं (च) और जिससे हम लोग निरन्तर वृद्धि को प्राप्त होवें ॥९॥
भावार्थ
जो सबका रचने देखने और कर्मों के फल देनेवाला न्यायाधीश ईश्वर है, वही हम लोगों की रक्षा करने और वृद्धि करनेवाला होवै, ऐसी हम सब लोग अभिलाषा करैं ॥९॥
विषय
'सर्व पोषक' प्रभु
पदार्थ
[१] (सः) = वे (पूषा) = सब का पोषण करनेवाले प्रभु (नः) = हमारे (अविता) = रक्षण करनेवाले (भुवत्) = हों। वस्तुतः जैसे माता-पिता सन्तानों का रक्षण करते हैं, वैसे ही हम सब के रक्षक प्रभु ही हैं। [२] वे प्रभु हमारा रक्षण करें (यः) = जो (विश्वा भुवना) = सब प्राणियों को (अभिविपश्यति) = आभिमुख्येन देखनेवाले हैं। प्रभु सब का ध्यान करते हैं। (च) = और (संपश्यति) = सम्यक्तया ध्यान करते हैं। प्रभु सबका पालन कर रहे हैं और अत्यन्त अच्छी प्रकार पालन कर रहे हैं। सांसारिक माता-पिता ज्ञान व शक्ति की अल्पता के कारण पालन में कुछ कमी कर जाएँ तो कर जाएँ, पर प्रभु के पालन में कोई कमी नहीं, वे सर्वज्ञ हैं व सर्वशक्तिमान् हैं। सो उनका पालन भी पूर्ण है।
भावार्थ
भावार्थ- सर्वपोषक प्रभु के हम पालनीय बनें ।
विषय
सम्यग्दृष्टि वाला विद्वान् वा सर्व द्रष्टा प्रभु।
भावार्थ
(यः) जो परमेश्वर (विश्वा भुवना) समस्त लोकों को (अभि विपश्यति) प्रत्यक्ष विविध प्रकार से देखता है और (भुवना) समस्त लोकों को (सं पश्यति च) अच्छी प्रकार सम्यग् दृष्टि से देखता है (सः) वह (नः) हमारा (पूषा) पोषक और (अविता) रक्षक है। (२) इसी प्रकार सबको सम्यक् दृष्टि से देखने वाला पुरुष ही हमारा पोषक और रक्षक हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जो सर्वांना निर्माण करणारा, पाहणारा, कर्माचे फळ देणारा, न्यायाधीश ईश्वर आहे तोच आमचे रक्षण करणारा व वृद्धी करणारा आहे अशी आम्ही सर्वांनी इच्छा बाळगावी. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The One who sees all the things and living beings and all the worlds directly and instantly in all their variety, and watches all of them together as one, in truth, that lord giver of life and sustenance, we pray, be our saviour and protector.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject touching God is mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! may that nourishing God, Who looks upon all the universe and Who thoroughly comprehends them, be our protector. So that we may ever grow.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
We should always desire that God, Who is the ordainer of all, supervisor and giver of all fruits of all actions and dispenser of justice. Let Him be our protector and leader.
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