ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 14
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
सोमो॑ अ॒स्मभ्यं॑ द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे च प॒शवे॑। अ॒न॒मी॒वा इष॑स्करत्॥
स्वर सहित पद पाठसोमः॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । द्वि॒ऽपदे॑ । चतुः॑ऽपदे । च॒ । प॒शवे॑ । अ॒न॒मी॒वाः । इषः॑ । क॒र॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो अस्मभ्यं द्विपदे चतुष्पदे च पशवे। अनमीवा इषस्करत्॥
स्वर रहित पद पाठसोमः। अस्मभ्यम्। द्विऽपदे। चतुःऽपदे। च। पशवे। अनमीवाः। इषः। करत्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 14
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
विद्वद्विषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्या यस्सोमो द्विपदेऽस्मभ्यं चतुष्पदे गवे च पशवेऽनमीवा इषस्करत्तं सर्वदा सत्कुरुत ॥१४॥
पदार्थः
(सोमः) चन्द्रः (अस्मभ्यम्) (द्विपदे) मनुष्याद्याय (चतुष्पदे) गवाद्याय (च) (पशवे) (अनमीवाः) नीरोगाः (इषः) अन्नाद्यानोषधिगणान् (करत्) कुर्य्यात् ॥१४॥
भावार्थः
ये वैद्याः सर्वान् द्विपदश्चतुष्पदोऽरोगान्कुर्य्युस्ते सर्वैर्माननीयाः स्युः ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब इस अगले मन्त्र में विद्वान् के विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (सोमः) चन्द्रमा (द्विपदे) मनुष्य आदि (अस्मभ्यम्) हम लोगों के (चतुष्पदे) गौ आदि के (च) और (पशवे) अन्य पशु के लिये (अनमीवाः) रोगनिवर्त्तक (इषः) अन्न आदि ओषधिसमूहों को (करत्) करै, उसका सबकाल में सत्कार करो ॥१४॥
भावार्थ
जो वैद्य लोग सब दो पैरवाले अर्थात् मनुष्य आदि और चौपाये गौ आदिकों को रोगरहित करैं, वे सब लोगों को मान करने योग्य होवैं ॥१४॥
विषय
आरोग्यप्रद अन्न
पदार्थ
[१] (सोमः) = सोम-अत्यन्त शान्त प्रभु (अस्मभ्यं द्विपदे) = हम दो पाँववाले मनुष्यों के लिए (च) = और (चतुष्पदे) = चार पाँववाले (पशवे) = पशुओं के लिए (अनमीवा:) = रोगरहित (इषः) = अन्नों को (करत्) = करें। [२] हम प्रभुकृपा से ऐसे अन्नों को प्राप्त करें, जो कि हमारे लिए नीरोगता को देनेवाले हों। हमारे साथ सम्बद्ध इन पशुओं के लिए भी ऐसे ही अन्न हों, ताकि हम उनके नीरोगता को देनेवाले दूध आदि प्राप्त कर सकें।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु हमें नीरोगता के साधक अन्नों को दें । इन अन्नों से ही उत्तम मनवाले बनकर हम सोम प्रभु को प्राप्त करते हैं ।
विषय
सोमविद्वान के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(सोमः) चन्द्र के समान रसादि ओषधियों को जानने और बनाने वाला विद्वान् पुरुष (अस्मभ्यम्) हमारे (द्विपदे) दो पांव वाले भृत्यों (चतुष्पदे च पशवे) और चार पैर वाले पशुओं के लिये (अनमीवाः इषः) रोग रहित अन्न (करत्) उत्पन्न करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे वैद्य माणसे व गायी इत्यादींना रोगरहित करतात त्यांना सर्वांनी मान देणे योग्य असते. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May Soma, spirit of peace and joy in nature, blissful as the moon, create healthful foods and drinks, free from disease, for us humans, bipeds, quadrupeds and other animals and fulfil our physical and material needs and desires.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of a learned person are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O man ! always honor that Vaidya (doctor) who is of quiet nature like the moon, who grants us bipeds and quadruped animals like the cows, and wholesome food that make us healthy and free from all diseases.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those Vaidyas (physicians) deserve respect who make all bipeds and quadrupeds healthy and free from all diseases.
Foot Notes
(सोम:) चन्द्र: = Moon. Here a man of quiet nature like the moon is meant. (अनमीवाः) नीरोगाः। = Free from all diseases, (इष:) अन्नाद्यानौषधिगणान् । = Food grains and other herbs.
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