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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - बृहस्पतिः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    शुचि॑म॒र्कैर्बृह॒स्पति॑मध्व॒रेषु॑ नमस्यत। अना॒म्योज॒ आ च॑के॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शुचि॑म् । अ॒र्कैः । बृह॒स्पति॑म् । अ॒ध्व॒रेषु॑ । न॒म॒स्य॒त॒ । अना॑मि । ओजः॑ । आ । च॒के॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुचिमर्कैर्बृहस्पतिमध्वरेषु नमस्यत। अनाम्योज आ चके॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुचिम्। अर्कैः। बृहस्पतिम्। अध्वरेषु। नमस्यत। अनामि। ओजः। आ। चके॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मित्रविषयमाह।

    अन्वयः

    हे विद्याप्रिया जना यूयमध्वरेष्वर्कैर्वर्त्तमानं शुचिं बृहस्पतिं नमस्यत यदोजोऽनामि यदहमा चके तद्यूयं कामयध्वम् ॥५॥

    पदार्थः

    (शुचिम्) पवित्रम् (अर्कैः) सत्कर्त्तव्यैर्मन्त्रैर्विचारैः (बृहस्पतिम्) वाग्विद्यारक्षकम् (अध्वरेषु) अहिंसनीयेषु विद्याप्राप्तिकर्मसु (नमस्यत) सत्कुरुत (अनामि) नम्यते (ओजः) पराक्रमः (आ) (चके) कामये ॥५॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या वेदार्थविदोऽध्यापकानुपदेशकांश्च नमस्यन्ति सत्कुर्वन्ति ते पवित्रा विद्वांसः सन्तो बलमाप्नुवन्ति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब इस अगले मन्त्र में मित्र के विषय को कहते हैं।

    पदार्थ

    हे विद्या के प्रेमीजनो ! आप लोग (अध्वरेषु) जिनमें हिंसा नहीं होती ऐसे विद्या की प्राप्ति के कर्मों में (अर्कैः) सत्कार करने योग्य विचारों से वर्त्तमान (शुचिम्) पवित्र (बृहस्पतिम्) वाणीरूप विद्या की रक्षा करनेवाले का (नमस्यत) सत्कार करो और जो (ओजः) पराक्रम (अनामि) नहीं नम्र होनेवाला और जिसकी मैं (आ, चके) कामना करता हूँ, उसकी आप लोग कामना करो ॥५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य वेदार्थ के जाननेवाले अध्यापक और उपदेशकों का नमस्कार और सत्कार करते हैं, वे पवित्र विद्वान् हुए बल को प्राप्त होते हैं ॥५॥

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    विषय

    अनामि ओजः = [न झुकनेवाला बल]

    पदार्थ

    [१] हे मनुष्यो ! (अध्वरेषु) = हिंसारहित यज्ञादि उत्तम कर्मों में (शुचिम्) = उस पूर्ण पवित्र (बृहस्पतिम्) = ब्रह्मणस्पति, ज्ञान के स्वामी प्रभु का (अर्कैः) = अर्चन साधन मन्त्रों से (नमस्यत) = पूजन करो। 'शुचि बृहस्पति' का पूजन यही है कि सदा ज्ञान-प्रधान बनकर, पवित्र जीवनवाला बने रहना- विषयों में न फँसना । [२] इस प्रकार 'शुचि बृहस्पति' का पूजन करके मैं (अनामि ओजः) = रोग व वासनारूप शत्रुओं से न झुकाए जा सकनेवाले बल को (आचके) = चाहता हूँ । पवित्र ज्ञानस्वरूप प्रभु की उपासना से उपासक भी प्रभु के समान ही पवित्रता व ज्ञान की उस शक्ति को प्राप्त करता है, जिसे काम-क्रोध आदि शत्रु झुका नहीं सकते।

    भावार्थ

    भावार्थ- पवित्र ज्ञानस्वरूप प्रभु की उपासना से हम अदम्य बल प्राप्त करें।

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    विषय

    बृहस्पति परमेश्वर।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (अर्कैः) उत्तम आदर सत्कार मन्त्रों और उत्तम विचारों से (शुचिम्) पवित्र (बृहस्पतिम्) वेद के वाणी के पालक विद्वान् पुरुष वा सर्व ब्रह्माण्ड के स्वामी परमेश्वर को (अध्वरेषु) यज्ञ, विद्याप्राप्ति आदि अहिंसनीय अपीड़नीय कार्यों के अवसरों पर (नमस्यत) नमस्कार करो, उसका परम आदर सत्कार करो। मैं उससे ही (अनामि) कभी न झुकने वाले (ओजः) बल पराक्रम की (आ चके) प्रार्थना करूं। इति नवमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे वेदार्थ जाणणाऱ्या अध्यापक व उपदेशकांना वंदन करून त्यांचा सत्कार करतात ती पवित्र विद्वान बनून बल प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O lovers and seekers of knowledge and the holy Word, in your programmes of education and development, bow in homage with words of gratitude and offers of yajna to Brhaspati, master and guardian of universal knowledge and human speech, with a pure, unsullied mind and intellect.$O lord and master, I love and pray for indomitable courage and valour (to follow the path of universal truth and righteousness).

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a friend are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O lovers of wisdom in all inviolable actions of the acquisition of knowledge! adore or make obeisance to the thoughtful and pure scholars, because they are the protectors of the noble speech and knowledge. You should also emulate me in order to achieve unmatchable strength.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

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    Foot Notes

    (अर्कैः) सत्कर्तर्व्यैमेत्रेविचारै। = With respectable thoughts. (अन्नामि) न नंम्यतेतत् = Un-surpass able lit. that which cannot be bent down. (आचके) कामये । = Desire. (अध्वरेषु) अहिंसनीयेषु विद्याप्राप्ति कर्मसु। = In all inviolable actions with regards to the acquisition of knowledge.

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