ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 15
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒स्माक॒मायु॑र्व॒र्धय॑न्न॒भिमा॑तीः॒ सह॑मानः। सोमः॑ स॒धस्थ॒मास॑दत्॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्माक॑म् । आयुः॑ । व॒र्धय॑न् । अ॒भिऽमा॑तीः । सह॑मानः । सोमः॑ । स॒धऽस्थ॑म् । आ । अ॒स॒द॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्माकमायुर्वर्धयन्नभिमातीः सहमानः। सोमः सधस्थमासदत्॥
स्वर रहित पद पाठअस्माकम्। आयुः। वर्धयन्। अभिऽमातीः। सहमानः। सोमः। सधऽस्थम्। आ। असदत्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 15
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मित्रताविषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्या यः सोमोऽभिमातीः सहमान इवाऽस्माकमायुर्वर्धयन्सधस्थमासदत्सोऽस्माकं सखा वयं च तस्य सखायः स्याम ॥१५॥
पदार्थः
(अस्माकम्) (आयुः) जीवनम् (वर्धयन्) उन्नयन् (अभिमातीः) शत्रूनिव रोगान् (सहमानः) (सोमः) सुपथ्ये युक्ते व्यवहारे प्रेरयन् (सधस्थम्) सहस्थानम् (आ) (असदत्) आसीदतु ॥१५॥
भावार्थः
ये धार्मिकाः शूरवीराश्शत्रून् विनाश्य सखीन् रक्षित्वा सर्वान्त्सज्जनानायुर्विजयाभ्यां वर्धयन्ति तैः सह सदैव मैत्री सर्वै रक्षणीया ॥१५॥
हिन्दी (3)
विषय
अब इस अगले मन्त्र में मित्रता के विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (सोमः) सुन्दर पथ्य और योग्य व्यवहार में प्रेरणा करता हुआ (अभिमातीः) शत्रुओं के सदृश रोगों को (सहमानः) सहन करता हुआ सा (अस्माकम्) हम लोगों के (आयुः) जीवन को (वर्धयन्) बढ़ाता हुआ (सधस्थम्) साथ के स्थान को (आ, असदत्) स्थित हो, वह हम लोगों का मित्र और हम लोग उसके मित्र होवैं ॥१५॥
भावार्थ
जो धार्मिक, शूरवीर पुरुष शत्रुओं का नाश और मित्रों की रक्षा करके सब सज्जनों की जीवन और विजय से वृद्धि करते हैं, उनके साथ सदैव मैत्री की सब लोगों को रक्षा करनी चाहिये ॥१५॥
विषय
सोमरक्षण के तीन लाभ
पदार्थ
[१] (सोमः) = शरीर में उत्पन्न होनेवाली यह अन्तिम धातु (अस्माकम्) = हमारी (आयुः) = आयु को (वर्धयन्) = बढ़ाता है - रक्षित हुआ हुआ सोम दीर्घजीवन का कारण बनता है। [२] यह सोम (अभिमातीः) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं का (सहमानः) = मर्षण करता है उन शत्रुओं को कुचलनेवाला होता है। [३] वह (सोमः) = सोम (सधस्थम्) = सब के एक स्थान में स्थित होने के आधारभूत उस प्रभु को (आसदत्) = प्राप्त होता है। प्रभु को 'सध-स्थ' कहते हैं, सारा ब्रह्माण्ड, सारे प्राणी इस प्रभु में एक स्थान में स्थित हैं। सोमरक्षण से ही इस प्रभु की प्राप्ति सम्भव होती है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से [क] आयु दीर्घ होती है, [ख] काम-क्रोध आदि शत्रु नष्ट होते हैं और [ग] प्रभु की प्राप्ति होती है ।
विषय
सोमविद्वान के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(अस्माकम्) हमारे (आयुः) जीवनों को (वर्धयन्) बढ़ाता हुआ (अभिमातीः) शत्रुओं के समान देह के शत्रु रूप रोगों को (सहमानः) विनाश करता हुआ (सोमः) सूर्य का तेज, वायु, चन्द्र वा ओषधिरस और विद्वान् उपदेष्टा (सधस्थम्) हमारे साथ एक स्थान (आसदत्) आकर रहे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे धार्मिक शूरवीर पुरुष शत्रूंचा नाश व मित्रांचे रक्षण करून सर्व सज्जनांचे जीवनवर्धन करतात व विजय प्राप्त करतात त्यांच्या बरोबर सदैव मैत्री करून सर्व लोकांचे रक्षण केले पाहिजे. ॥ १५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May Soma, stream of life’s vigour and joy, invigorating health, prolonging life, and resisting, challenging and eliminating devitalising toxins and diseases, all enemies of health and age, abide in our home, our seat of yajna, and our body.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a friend are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! a man impelling us to do the overcome diseases dealings, leading to health, enables us to like enemies, and prolong our life while living with us, he is our friend. We should also be always friendly to him.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
All should always keep friendship with those righteous and brave persons who destroy enemies, protect friends and multiply all good men with long life and victory.
Foot Notes
(अभिमाती:) शत्रूनिव रोगान्। = Diseases like enemies. (सोम:) सुपथ्ये युक्त व्यवहारे प्रेरयन् = Impelling to do acts leading to health.
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