ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 7
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - पूषा
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
इ॒यं ते॑ पूषन्नाघृणे सुष्टु॒तिर्दे॑व॒ नव्य॑सी। अ॒स्माभि॒स्तुभ्यं॑ शस्यते॥
स्वर सहित पद पाठइ॒यम् । ते॒ । पू॒ष॒न् । आ॒घृ॒णे॒ । सु॒ऽस्तु॒तिः । दे॒व॒ । नव्य॑सी । अ॒स्माभिः॑ । तुभ्य॑म् । श॒स्य॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इयं ते पूषन्नाघृणे सुष्टुतिर्देव नव्यसी। अस्माभिस्तुभ्यं शस्यते॥
स्वर रहित पद पाठइयम्। ते। पूषन्। आघृणे। सुऽस्तुतिः। देव। नव्यसी। अस्माभिः। तुभ्यम्। शस्यते॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 7
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
विद्वद्विषयमाह।
अन्वयः
हे पूषन्नाघृणे देव विद्वन् राजन् वा ते येयं नव्यसी सुष्टुतिर्वर्तते सा तुभ्यमस्माभिः शस्यते ॥७॥
पदार्थः
(इयम्) (ते) तव (पूषन्) पुष्टिकर्त्तः (आघृणे) समन्तात् प्रकाशितः (सुष्टुतिः) शोभना प्रशंसा (देव) दिव्यगुणसम्पन्न (नव्यसी) अतिशयेन नवीना (अस्माभिः) (तुभ्यम्) (शस्यते) ॥७॥
भावार्थः
ये मनुष्या धर्म्यकर्माऽनुष्ठानेन कीर्त्तिमन्तो भवेयुस्ताञ्छ्रुत्वा दृष्ट्वा सर्वे प्रसन्ना भवन्तु ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
अब अगले मन्त्र में विद्वान् के विषय को कहते हैं।
पदार्थ
हे (पूषन्) पुष्टि करनेवाले (आघृणे) सब प्रकार प्रकाशित (देव) उत्तमगुणों से युक्त विद्वान् पुरुष वा राजन् ! (ते) आपकी जो (इयम्) यह (नव्यसी) अत्यन्त नवीन (सुष्टुतिः) उत्तम प्रशंसा वर्त्तमान है वह (तुभ्यम्) आपके लिये (अस्माभिः) हम लोगों से (शस्यते) उच्चारण की जाती है ॥७॥
भावार्थ
जो मनुष्य धर्मसम्बन्धी कर्मों के करने से यशस्वी हैं, उनको सुन और देख के सब लोग प्रसन्न होओ ॥७॥
विषय
'पूषा का आघृणि' बनना
पदार्थ
[१] प्रभु तो 'पूषा' हैं ही। सूर्य को भी पूषा कहते हैं, यह अपनी किरणों से सर्वत्र प्राणशक्ति का संचार करता है, यह सर्वतो दीप्यमान होने से 'आघृणि' है। सूर्य अपनी किरणों से [घृणि] चमक रहा है, प्रभु ज्ञान की किरणों से दीप्त हैं। 'ब्रह्म सूर्यसमं ज्योति: ' । हे (पूषन्) = सब का पोषण करनेवाले! (आघृणे) = सर्वतः दीप्यमान देव प्रकाशमय व सब व्यवहारों के साधक प्रभो ! [दिव्= व्यवहारे] (इयम्) = यह (नव्यसी) = अत्यन्त प्रशस्त (सुष्टुतिः) = उत्तम स्तुति ते आपके लिए है। हम प्रतिदिन आपका स्तवन करते हैं। [२] (अस्माभिः) = हमारे से (तुभ्यम्) = आपके लिए (शस्यते) = सुष्टुति उच्चरित होती है। आपका 'पूषन् आघृणि' रूप में स्मरण करते हुए हम भी 'पूषा व आघृणि' बनने का प्रयत्न करते हैं, शरीर में पुष्ट, मस्तिष्क में दीप्त । वस्तुतः ऐसा बनना ही प्रभु का सच्चा पूजन है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु का पूजन 'पूषा व आघृणि' रूप में करते हुए हम 'शरीर में पुष्ट व मस्तिष्क में दीप्त' बनने के लिए यत्नशील हों।
विषय
बृहस्पति परमेश्वर।
भावार्थ
हे (आघृणे) सब प्रकार से प्रकाशमान ! सब प्रकार से सुखों की वर्षा करने वाले सूर्य के समान तेजस्विन् ! मेघ के समान सुखवर्षक ! हे (पूषन्) अन्न वा पृथ्वी के समान सर्वपोषक ! (ते) तेरी (इयं) यह (नव्यसी) अति नवीन, सदा स्तुति योग्य, (सुस्तुतिः) उत्तम स्तुति है। (अस्माभिः) हमसे (तुभ्यं) तेरे लिये यह (शस्यते) सदा कही जाय।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे धर्म कर्म करून कीर्तिमान होतात ते ऐकून व पाहून सर्व लोक प्रसन्न होतात. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O brilliant master, giver of mental and spiritual nourishment, this is the latest song of homage and reverence composed and sung by us for you in honour of your light of knowledge and flames of fire (for world enlightenment).
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a learned person are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
We offer you, O illustrious divine nourisher (highly learned) king! this most recent true eulogy which you richly and rightly deserve.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
All men should be glad to hear the praise of those people, who attain good reputation by the observance and performance of good righteous deeds.
Foot Notes
(आवृणे ) समन्तात् प्रकाशितः । = Shining from all sides, illustrious.
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