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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 62/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - बृहस्पतिः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    बृह॑स्पते जु॒षस्व॑ नो ह॒व्यानि॑ विश्वदेव्य। रास्व॒ रत्ना॑नि दा॒शुषे॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॑स्पते । जु॒षस्व॑ । नः॒ । ह॒व्यानि॑ । वि॒श्व॒ऽदे॒व्य॒ । रास्व॑ । रत्ना॑नि । दा॒शुषे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहस्पते जुषस्व नो हव्यानि विश्वदेव्य। रास्व रत्नानि दाशुषे॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहस्पते। जुषस्व। नः। हव्यानि। विश्वऽदेव्य। रास्व। रत्नानि। दाशुषे॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 62; मन्त्र » 4
    अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे विश्वदेव्य बृहस्पते विद्वंस्त्वं नो हव्यानि जुषस्व दाशुषे रत्नानि रास्व ॥४॥

    पदार्थः

    (बृहस्पते) बृहत्या वाचः पालक (जुषस्व) सेवस्व (नः) अस्मभ्यम् (हव्यानि) दातुमर्हाणि (विश्वदेव्य) विश्वेषु देवेषु साधो (रास्व) देहि (रत्नानि) रमणीयानि धनानि (दाशुषे) दात्रे ॥४॥

    भावार्थः

    हे अध्यापक ! त्वमस्मदर्थं विद्याः सेवस्व हि राजंस्त्वं विद्यादात्रे उत्तमं धनं देहि ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (विश्वदेव्य) सम्पूर्ण विद्वानों में उत्तम (बृहस्पते) बड़ी वाणी के पालनकर्त्ता विद्वान् पुरुष ! आप (नः) हम लोगों के लिये (हव्यानि) देने के योग्य पदार्थों का (जुषस्व) सेवन करो और (दाशुषे) देनेवाले के लिये (रत्नानि) सुन्दर धनों को (रास्व) दीजिये ॥४॥

    भावार्थ

    हे अध्यापक ! आप हम लोगों के लिये विद्याओं का सेवन करो और हे राजन् ! आप विद्या देनेवाले के लिये उत्तम धन दीजिये ॥४॥

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    विषय

    'विश्वदेव्य बृहस्पति' का आराधन

    पदार्थ

    [१] (विश्वदेव्य) = यह ज्ञान द्वारा हमारे जीवनों में सब दिव्यगुणों को जन्म देता है, सो 'विश्वदेव्य' है । हे (विश्वदेव्य बृहस्पते) = सब देवों के लिए हितकर ज्ञान के स्वामिन् ! आप (नः) = हमारे लिए (हव्यानि) = दानपूर्वक अदनों को (जुषस्व) = [जोषयस्व] प्रीतिपूर्वक सेचन कराइये । हम आपकी कृपा से सदा हव्यों का सेवन करनेवाले बनें। यह हव्य-सेवन ही तो हमें देवी-वृत्तिवाला बनाएगा। इसी से हम ज्ञानवृद्धि कर पाएँगे। [२] हे बृहस्पते! आप (दाशुषे) = दाश्वान् के लिएसदा दान की वृत्तिवाले के लिए (रत्नानि रास्व) = रत्नों को दीजिए। दान की वृत्ति हमारे ऐश्वर्य का वर्धन करती है। बृहस्पति का उपासक, ज्ञान का आराधक, धन का लोभी न होने से अत्यन्त देने की वृत्तिवाला बनता है। इससे इसके ऐश्वर्य की और वृद्धि होती है 'दक्षिणां दुहते सप्तमातरम्' ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सब देवों के हितकारी ज्ञान के स्वामी हमें दानशील बनायें।

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    विषय

    सूर्य मेघवत् राजा सेनापति के कर्त्तव्यों का उपदेश इन्द्र, वरुण, बृहस्पति, पूषा आदि नाना विद्वानों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (बृहस्पते) बृहती, वेदवाणी के पालक विद्वान् ! हे महान् ब्रह्माण्ड के पालक परमेश्वर ! तू (नः) हमारे (हव्यानि) दान देने और स्वीकार करने योग्य पदार्थों और वचनों को (जुषस्व) प्रेम से सेवन कर और (दाशुषे) दानशील पुरुष को (रत्नानि) उत्तम, रमणीय धन (रास्व) प्रदान कर। विद्वान् भी ऐसा नियम बनावें कि राज्य में वही लोग धन पावें जो लोकोपकार में दान देने वाले हों।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्रः। १६–१८ विश्वामित्रो जमदग्निर्वा ऋषिः॥ १-३ इन्द्रावरुणौ। ४–६ बृहस्पतिः। ७-९ पूषा। १०-१२ सविता। १३–१५ सोमः। १६–१८ मित्रावरुणौ देवते॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ५, १०, ११, १६ निचृद्गायत्री। ६ त्रिपाद्गायत्री। ७, ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, १८ गायत्री॥ अष्टदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे अध्यापका! तू आमच्यासाठी विद्या ग्रहण कर व हे राजा! तू विद्या देणाऱ्यासाठी उत्तम धन दे. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Brhaspati, ruler and sustainer of the wide world, master of universal vision and wisdom and guardian of holy speech and yajaka, be pleased to accept our gifts of homage and yajaka. O lord universally adorable, grant us the jewels of wealth and honour in favour of the generous yajamana.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More about the teachers.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O the best among the enlightened persons! O protector of the noble Vedic speech! please accept with love the food and other gifts that we offer you respectfully. O ruler ! give charming wealth of various kinds to him who imparts good knowledge.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O teacher ! be engaged in acquiring more and more knowledge for your benefit. O king! give good wealth to a teacher who imparts knowledge.

    Foot Notes

    (विश्वेदेव्य) विश्वेषु देवेषु साधो। विद्वासो हि देवाः(Stph 3, 7, 3, 10) = The best among the enlightened persons. (हब्यानि ) दातुमर्हाणि । = Food and other worthwhile articles.

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