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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 53/ मन्त्र 10
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं वः॒ शर्धं॒ रथा॑नां त्वे॒षं ग॒णं मारु॑तं॒ नव्य॑सीनाम्। अनु॒ प्र य॑न्ति वृ॒ष्टयः॑ ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । वः॒ । शर्ध॑म् । रथा॑नाम् । त्वे॒षम् । ग॒णम् । मारु॑तम् । नव्य॑सीनाम् । अनु॑ । प्र । य॒न्ति॒ । वृ॒ष्टयः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं वः शर्धं रथानां त्वेषं गणं मारुतं नव्यसीनाम्। अनु प्र यन्ति वृष्टयः ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। वः। शर्धम्। रथानाम्। त्वेषम्। गणम्। मारुतम्। नव्यसीनाम्। अनु। प्र। यन्ति। वृष्टयः ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 53; मन्त्र » 10
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विदुषा मनुष्यार्थं किमेष्टव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यं रथानां नव्यसीनां मारुतं गणं त्वेषमुपदिशामि यं वृष्टयोऽनु प्र यन्ति तं शर्धं वः प्रापयामि ॥१०॥

    पदार्थः

    (तम्) (वः) युष्मभ्यम् (शर्धम्) बलम् (रथानाम्) यानानाम् (त्वेषम्) सद्गुणप्रकाशम् (गणम्) (मारुतम्) मरुतां मनुष्याणामिदम् (नव्यसीनाम्) नवीनानाम् (अनु) (प्र) (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (वृष्टयः) ॥१०॥

    भावार्थः

    ये विदुषां नवीनां नवीनां नीतिं प्राप्नुवन्ति ते बलं लभन्ते ॥१०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् जन को मनुष्यों के अर्थ क्या इच्छा करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जिस (रथानाम्) वाहनों और (नव्यसीनाम्) नवीनाओं के बीच (मारुतम्) मनुष्यों के सम्बन्धी (गणम्) समूह का और (त्वेषम्) सद्गुणों के प्रकाश का उपदेश करता हूँ और जिसको (वृष्टयः) वर्षायें (अनु, प्र, यन्ति) प्राप्त होती हैं (तम्) उस (शर्धम्) बल को (वः) आप लोगों के लिये प्राप्त करता हूँ ॥१०॥

    भावार्थ

    जो विद्वानों की नवीन-नवीन नीति को प्राप्त होते हैं, वे बल को प्राप्त होते हैं ॥१०॥

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    विषय

    वीरों के पीछे अनुगमन ।

    भावार्थ

    भा०-हे प्रजाजनो ! (वः ) आप लोगों में से ( मारुतं गणं ) मनुष्यों के समूह और वायुवत् वेग से शत्रुओं का मूलोच्छेद करने वाले पुरुषों का और उनके ( नव्यसीनां रथानां ) नये से नये रथों का (गणं) गण और ( वः शर्धं) आप लोगों के बड़े भारी बल या शरीरादि धारण करने वाले सैन्य बल के ( अनु ) पीछे ( वृष्टयः अनु प्रयति) वायु गण के साथ २ आने वाली जल वृष्टियों के समान ( अनु प्रयन्ति ) अच्छी प्रकार आया जाया करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:-१ भुरिग्गायत्री । ८, १२ गायत्री । २ निचृद् बृहती । ९ स्वराड्बृहती । १४ बृहती । ३ अनुष्टुप् । ४, ५ उष्णिक् । १०, १५ विराडुष्णिक् । ११ निचृदुष्णिक् । ६, १६ पंक्तिः ७, १३ निचृत्पंक्तिः ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'स्वास्थ्य और इन्द्रिय दीप्ति' से प्राप्य आनन्द

    पदार्थ

    [१] हे प्राणो ! (वः) = आपके (नव्यसीनाम्) = स्तुति के योग्य [नु स्तुतौ] (रथानाम्) = शरीर-रथों के (तं मारुतं शर्धम्) = उस प्राण सम्बन्धी बल को तथा (त्वेषं गणम्) = दीप्त इन्द्रिय समूह को (अनु) = लक्ष्य करके, अर्थात् उसके अनुसार (वृष्टयः) = आनन्द की वर्षाएँ (प्रयन्ति) = प्रकर्षेण प्राप्त होती हैं। [२] प्राणसाधना से शरीर-रथ सबल व दृढ़ बनता है तथा इन्द्रिय समूह खूब दीप्त होता है। ऐसी स्थिति में ही आनन्द की प्राप्ति होती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ– प्राणसाधना से हमारा शरीर शक्ति सम्पन्न हो, इन्द्रियाँ दीप्त हों। तभी आनन्द होगा ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्वानांची नवी नवी नीती अनुसरतात त्यांना बल प्राप्त होते. ॥ १० ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O people of the earth, the showers of peace, comfort and well being rain down on you in response to your strength, the speed and shine of your war-like chariots, the joint power and performance of your leaders, and the latest powers and policies you work out and follow for your peace and progress.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    A learned person's desire is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! I convey or lead you to that strength of the lord of the Maruts heroic men who are masters of new chariots, and I tell you about their light of good virtues. They are followed by the rains (abundance. Ed.) of happiness and joy.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons become more mighty, who attain new policy adopted by the enlightened persons.

    Foot Notes

    (त्वेषम् ) सद्गुणप्रकाशम् । त्विष दीप्तौ ( भ्वा० )। = The light of good virtues. (शर्धम्) बलम् । शर्ध इति बलनाम (NG 2, 9)। = Strength.

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