ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 53/ मन्त्र 12
कस्मा॑ अ॒द्य सुजा॑ताय रा॒तह॑व्याय॒ प्र य॑युः। ए॒ना यामे॑न म॒रुतः॑ ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठकस्मै॑ । अ॒द्य । सुऽजा॑ताय । रा॒तऽह॑व्याय । प्र । य॒युः॒ । ए॒ना । यामे॑न । म॒रुतः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कस्मा अद्य सुजाताय रातहव्याय प्र ययुः। एना यामेन मरुतः ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठकस्मै। अद्य। सुऽजाताय। रातहव्याय। प्र। ययुः। एना। यामेन। मरुतः ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 53; मन्त्र » 12
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
ये मरुतोऽद्यैना यामेन कस्मै सुजाताय रातहव्याय प्र ययुस्ते विद्यादातारो भूत्वा प्रशंसिता जायन्ते ॥१२॥
पदार्थः
(कस्मै) (अद्य) (सुजाताय) सुष्ठुविद्यासु प्रसिद्धाय (रातहव्याय) दत्तदातव्याय (प्र, ययुः) प्राप्नुवन्ति (एना) एनेन (यामेन) उपरतेन (मरुतः) मनुष्याः ॥१२॥
भावार्थः
विद्यादिशुभगुणदानेन विना विदुषां प्रशंसा नैव जायते ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (मरुतः) मनुष्य (अद्य) आज (एना) इस (यामेन) विरक्त हुए से (कस्मै) किस (सुजाताय) उत्तम विद्याओं में प्रसिद्ध (रातहव्याय) दिया दातव्य जिसने उसके लिये (प्र, ययुः) प्राप्त होते हैं, वे विद्या के देनेवाले होकर प्रशंसित होते हैं ॥१२॥
भावार्थ
विद्या आदि उत्तम गुणों के दान के विना विद्वानों की प्रशंसा नहीं होती है ॥१२॥
विषय
उन्नति के निमित्त उपदेश ।
भावार्थ
भा०-( मरुतः) उत्तम मनुष्य ( अद्य ) आज ( सुजाताय ) उत्तम विद्या आदि गुणों से सुसम्पन्न ( रातहव्याय ) दातव्य गुरुदक्षिणा देने वाले दानशील ( कस्मै ) किस उत्तम पुरुष के दर्शन वा पूजा सत्कार के लिये (एना यामेन ) इस मार्ग से, ( प्र ययुः ) जाते हैं [ उत्तर ] उस ( कस्मै ) सुखरूप (सु-जाताय ) उत्तम, सर्व पूज्य रूप से प्रसिद्ध, सब ज्ञानादि के दाता परमेश्वर की उपासना के लिये ( मरुत: ) विद्वान् गण और अध्यात्म में प्राण गण ( एना यामेन ) इस पूर्वोपदिष्ट याम अर्थात् नियत, व्यवस्थित विधि से ( प्र ययुः ) आगे उन्नति मार्ग पर बढ़ें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:-१ भुरिग्गायत्री । ८, १२ गायत्री । २ निचृद् बृहती । ९ स्वराड्बृहती । १४ बृहती । ३ अनुष्टुप् । ४, ५ उष्णिक् । १०, १५ विराडुष्णिक् । ११ निचृदुष्णिक् । ६, १६ पंक्तिः ७, १३ निचृत्पंक्तिः ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
आनन्दमय-उत्तम प्रादुर्भाववाला-त्यागमय जीवन
पदार्थ
[१] गतमन्त्र में कहा था कि हम प्राणसाधना के द्वारा जहाँ बल को प्राप्त करते हैं, वहाँ हमारा जीवन व्रतमय होता है और हमारे इन्द्रियादि के गण उत्तम बनते हैं। (एना) = इस 'बल, व्रत व उत्तम इन्द्रिय आदि के गणोंवाले' (यामेन) = मार्ग से (मरुतः प्राण) = प्राणसाधना करनेवाले पुरुष, (अद्य) = आज (कस्मै) = उस आनन्दस्वरूप, (सुजाताय) = उत्तम प्रादुर्भाववाले, (रातहव्याय) = सब हव्य पदार्थों को देनेवाले प्रभु के लिये (प्रययुः) = प्रकर्षेण गतिवाले होते हैं। [२] प्राणसाधना से अन्ततः 'विवेकख्याति' प्राप्त होती है, यह विवेकख्याति प्रभु-दर्शन का साधन बनती है।
भावार्थ
भावार्थ - प्राण हमें आनन्दस्वरूप, उत्तम प्रादुर्भाववाले, हव्य पदार्थों को प्राप्त करानेवाले प्रभु की ओर ले चलते हैं। हमारे जीवनों को भी ये आनन्दमय, उत्तम प्रादुर्भाववाला व त्यागमय व यज्ञशील बनाते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
विद्या इत्यादी उत्तम गुण दान केल्याशिवाय विद्वानांची प्रशंसा होत नाही. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
For which cultured, creative and generous personality, for which producing and providing community of yajnic gifts, do the Maruts, dynamic forces of life, move forward today by this chariot with controlled motion and direction?
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should man do is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
To whom the persons renowned on account of profound knowledge and givers of desirable things have gone with these thoughtful persons in peaceful mind? Being the givers of knowledge, such persons become admirable everywhere.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Without imparting knowledge and other good virtues, the scholars are not admired anywhere.
Foot Notes
(सुजाताय ) सुष्ठुविद्यासु प्रसिद्धाय । = Well-known for the knowledge of good sciences. (रातहव्याय) दत्तदात-व्यदानाय । जनी प्रादुर्यावे (भ्वा० ) । हा दाने (अदा० ) । हु-दानादनयोः (जुहो०)। = Giver of what is worth giving?
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