ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 53/ मन्त्र 13
येन॑ तो॒काय॒ तन॑याय धा॒न्यं१॒॑ बीजं॒ वह॑ध्वे॒ अक्षि॑तम्। अ॒स्मभ्यं॒ तद्ध॑त्तन॒ यद्व॒ ईम॑हे॒ राधो॑ वि॒श्वायु॒ सौभ॑गम् ॥१३॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । तो॒काय॑ । तन॑याय । धा॒न्य॑म् । बीज॑म् । वह॑ध्वे । अक्षि॑तम् । अ॒स्मभ्य॑म् । तत् । ध॒त्त॒न॒ । यत् । वः॒ । ईम॑हे । राधः॑ । वि॒श्वऽआयु । सौभ॑गम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
येन तोकाय तनयाय धान्यं१ बीजं वहध्वे अक्षितम्। अस्मभ्यं तद्धत्तन यद्व ईमहे राधो विश्वायु सौभगम् ॥१३॥
स्वर रहित पद पाठयेन। तोकाय। तनयाय। धान्यम्। बीजम्। वहध्वे। अक्षितम्। अस्मभ्यम्। तत्। धत्तन। यत्। वः। ईमहे। राधः। विश्वऽआयु। सौभगम् ॥१३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 53; मन्त्र » 13
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! येन तोकाय तनयायाक्षितं धान्यं बीजं च यूयं वहध्वे। यद्विश्वायु सौभगमक्षितं राधो वा ईमहे तदस्मभ्यं धत्तन ॥१३॥
पदार्थः
(येन) कर्मणा (तोकाय) सद्यो जातायापत्याय (तनयाय) कुमाराय (धान्यम्) तण्डुलादिकम् (बीजम्) वपनार्हम् (वहध्वे) वहत (अक्षितम्) क्षयरहितम् (अस्मभ्यम्) (तत्) (धत्तन) धरत (यत्) (वः) युष्मदर्थम् (ईमहे) याचामहे (राधः) धनम् (विश्वायु) सम्पूर्णमायुष्करम् (सौभगम्) सौभाग्यवर्धकम् ॥१३॥
भावार्थः
ये मनुष्या अपत्यरक्षार्थं धान्यादिवस्तु संरक्षन्ति तेऽक्षयं सुखं लभन्ते ॥१३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (येन) जिस कर्म्म से (तोकाय) तुरन्त उत्पन्न हुए सन्तान के और (तनयाय) कुमार के लिये (अक्षितम्) नाश से रहित (धान्यम्) तण्डुल आदि को और (बीजम्) बोने के योग्य को (वहध्वे) प्राप्त हूजिये और (यत्) जिस (विश्वायु) सम्पूर्ण आयु के करने और (सौभगम्) सौभाग्य को बढ़ानेवाले नाश से रहित (राघः) धन की (वः) आप लोगों के लिये (ईमहे) याचना करते हैं (तत्) उसको (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (धत्तन) धारण करिये ॥१३॥
भावार्थ
जो मनुष्य सन्तानों की रक्षा के लिये धान्य आदि वस्तु की उत्तम प्रकार रक्षा करते हैं, वे नाश रहित सुख को प्राप्त होते हैं ॥१३॥
विषय
missing
भावार्थ
भा०-हे विद्वान् पुरुष ! ( येन ) जिस प्रकार से आप लोग ( तोकाय ) उत्तम पुत्र और ( तनयाय ) अगली संतति पौत्र आदि को प्राप्त करने के लिये (धान्यं ) आधान योग्य, ( अक्षितम् ) अक्षय, अमोघ, (वीजं ) बीज को ( वहध्वे ) धारण करते हो ( तत् ) उसको ( अस्मभ्यम् ) हम प्रजा जनों के कल्याण के लिये ही ( धत्तन ) धारण करो और हमें भी धारण कराओ। जिस ( राधः ) उत्तम ऐश्वर्य की हम (वः) आप लोगों से ( ईमहे ) याचना करते हैं वह ( विश्वायु) समस्त जीवन पर्यन्त ( सौभगम् ) उत्तम सेवन करने योग्य, सुख कल्याणजनक हो । उसको आप धारण करो और कराओ ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:-१ भुरिग्गायत्री । ८, १२ गायत्री । २ निचृद् बृहती । ९ स्वराड्बृहती । १४ बृहती । ३ अनुष्टुप् । ४, ५ उष्णिक् । १०, १५ विराडुष्णिक् । ११ निचृदुष्णिक् । ६, १६ पंक्तिः ७, १३ निचृत्पंक्तिः ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
'विश्वायु सौभग' धन
पदार्थ
[१] हे (मरुतो) = प्राणो! आप (येन) = जिस धन के द्वारा (तोकाय तनयाय) = हमारे पुत्र-पौत्रों के लिये (अक्षितम्) = न क्षीण होनेवाले (धान्यम्) = धान्य व (बीजम्) = बीजों को (वहध्वे) = प्राप्त कराते हो, (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (तत्) = उस (राधः) = धन को (धत्तन) = धारण करो। [२] (व:) = आपके (यद्) = जिस धन को (ईमहे) = हम माँगते हैं वह हमारे लिये विश्वायु पूर्ण जीवन को प्राप्त करानेवाला हो, हमारे 'शरीर, मन व बुद्धि' तीनों को ठीक करनेवाला हो तथा (सौभगम्) = यह हमारे सौभाग्य का कारण हो। यह हमें उन धान्यों व बीजों को प्राप्त करने के सक्षम करे, जिनसे कि हमारे पुत्र-पौत्रों का धारण हो पाये।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना हमें उस धन को प्राप्त करने के योग्य बनाये, जो हमारे लिये 'विश्वायु व सौभग' हो तथा परिवार पालन के लिये धान्य व बीज की कमी न होने दे।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे संतानाच्या रक्षणासाठी धान्य इत्यादी वस्तूंचे उत्तम प्रकारे रक्षण करतात ती अक्षय सुख प्राप्त करतात. ॥ १३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Marats, dynamic and progressive leaders and powers of life, that action and message of advancement by which you create and bear the food and imperishable seed of life and progress for the baby and the child and the rising generation, bear and bring the same gifts and action for us too, the honour and good fortune, universal health and wealth, and the secret and source of that accomplishment we ask of you.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men do is further highlighted.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! with the same good will that you bestow in the form of imperishable grain seeds to an infant and a grown up son, bestow it upon us, because we seek your life sustaining and auspicious wealth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons who store food grains and other articles for the warehousing and nourishment of their children, get imperishable happiness.
Translator's Notes
In the Nighantu, we find both तोकस and तनयः । तनयम् इति अपत्यनाम (NG 2, 2)। But when both words are used together, they are sometimes taken to mean sons and grandsons or infants and grown-up sons as interpreted by Dayananda Sarasvati.
Foot Notes
(तोकाय) सद्यो जातायापत्याय। = For newly born infant. (तनयाय) कुमाराय। = For a grown-up unmarried son.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal