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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 53/ मन्त्र 2
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - बृहती स्वरः - पञ्चमः

    ऐतान्रथे॑षु त॒स्थुषः॒ कः शु॑श्राव क॒था य॑युः। कस्मै॑ सस्रुः सु॒दासे॒ अन्वा॒पय॒ इळा॑भिर्वृ॒ष्टयः॑ स॒ह ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ए॒तान् । रथे॑षु । त॒स्थुषः॑ । कः । शु॒श्रा॒व॒ । क॒था । य॒युः॒ । कस्मै॑ । स॒स्रुः॒ । सु॒ऽदासे॑ । अनु॑ । आ॒पयः॑ । इळा॑भिः । वृ॒ष्टयः॑ । स॒ह ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऐतान्रथेषु तस्थुषः कः शुश्राव कथा ययुः। कस्मै सस्रुः सुदासे अन्वापय इळाभिर्वृष्टयः सह ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। एतान्। रथेषु। तस्थुषः। कः। शुश्राव। कथा। ययुः। कस्मै। सस्रुः। सुऽदासे। अनु। आपयः। इळाभिः। वृष्टयः। सह ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 53; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः कथं पृष्ट्वा किं जानीयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! रथेष्वेताँस्तस्थुषः क आ शुश्राव कथा मनुष्या ययुः। कस्मै सस्रुरिळाभिर्वृष्टय आपयः सह सुदासेऽनुसस्रुः ॥२॥

    पदार्थः

    (आ) (एतान्) मनुष्यान् वाय्वादीन् (रथेषु) विमानादियानेषु (तस्थुषः) स्थावरान् काष्ठादिपदार्थान् (कः) (शुश्राव) श्रावयति (कथा) केन प्रकारेण (ययुः) यान्ति (कस्मै) (सस्रुः) प्राप्नुवन्ति (सुदासे) शोभना दासा यस्य तस्मिन् (अनु) (आपयः) य आप्नुवन्ति ते (इळाभिः) अन्नादिभिः (वृष्टयः) (सह) ॥२॥

    भावार्थः

    कश्चिदेव मनुष्यः सर्वं शिल्पविद्याव्यवहारं कर्त्तुं शक्नोति यो व्याप्तान् बहूत्तमगुणान् विद्युदादीन् पदार्थान् यथावज्जानाति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य कैसे पूँछ के क्या जानें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! (रथेषु) विमान आदि वाहनों से (एतान्) इन (तस्थुषः) स्थावर काष्ठ आदि पदार्थों को (कः) कौन (आ, शुश्राव) अच्छे प्रकार सुनाता है और (कथा) कैसे मनुष्य (ययुः) प्राप्त होते हैं और (कस्मै) किस के लिये (सस्रुः) प्राप्त होते हैं (इळाभिः) अन्न आदिकों से (वृष्टयः) वृष्टियाँ और (आपयः) प्राप्त होनेवाले पदार्थ (सह) एक साथ (सुदासे) सुन्दर दास जिसके उसमें (अनु) अनुकूल प्राप्त होते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    कोई ही मनुष्य सम्पूर्ण शिल्पविद्या के व्यवहार करने को समर्थ होता है, जो व्याप्त और बहुत उत्तम गुणवाले बिजुली आदि पदार्थों को यथावत् जानता है ॥२॥

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    विषय

    रथी वीरों का प्रयाण,

    भावार्थ

    भा०-( रथेषु तस्थुषः ) रथों पर विराजमान ( एतान् ) इन वीर विजिगीषु, वायुवत् शत्रुओं को उखाड़ने में समर्थ पुरुषों को (कः शुश्राव ) कौन अपनी आज्ञा सुनाता है ? और वे ( कथा ) किस प्रकार ( ययुः ) प्रयाण करें ? ( कस्मै अनु सस्रुः ) वे किसके अभ्युदय के लिये आगे बढ़े ? [ उत्तर ] वे ( आपयः ) बन्धु के तुल्य प्राप्त होकर ( सुदासे) उत्तम दानशील वृत्तिदाता स्वामी के लिये वा उत्तम भृत्यों के स्वामी के अधीन रहकर ( इडाभिः सह ) अन्नों सहित ( वृष्टयः इव ) जल वृष्टियों के तुल्य रथों पर विराजें, युद्ध में आगे बढ़ें और स्वामी के लिये शर-वर्षण, शत्रूच्छेदन करते हुए आगे बढ़ें।

    टिप्पणी

    वृष्टिः ब्रचतेश्छेदनकर्मणः

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भा०- ( रथेषु तस्थुषः ) रथों पर विराजमान ( एतान् ) इन वीर विजिगीषु, वायुवत् शत्रुओं को उखाड़ने में समर्थ पुरुषों को (कः शुश्राव ) कौन अपनी आज्ञा सुनाता है ? और वे ( कथा ) किस प्रकार ( ययुः ) प्रयाण करें ? ( कस्मै अनु सस्रुः ) वे किसके अभ्युदय के लिये आगे बढ़े ? [ उत्तर ] वे ( आपयः ) बन्धु के तुल्य प्राप्त होकर ( सुदासे) उत्तम दानशील वृत्तिदाता स्वामी के लिये वा उत्तम भृत्यों के स्वामी के अधीन रहकर ( इडाभिः सह ) अन्नों सहित ( वृष्टयः इव ) जल वृष्टियों के तुल्य रथों पर विराजें, युद्ध में आगे बढ़ें और स्वामी के लिये शर-वर्षण, शत्रूच्छेदन करते हुए आगे बढ़ें।

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    विषय

    प्राणों के गति-विज्ञान की चर्चा को सुनना

    पदार्थ

    [१] (रथेषु) = शरीर-रथों में (आतस्थुषः) = स्थित हुए हुए (एतान्) = इन प्राणों को (कः शुश्राव) = कौन सुनता है? कोई विरले पुरुष ही इन प्राणों की कथा को सुनने का प्रयत्न करता है कि (कथा ययुः) = ये किस प्रकार शरीर में गति करते हैं? प्राणों के गति विज्ञान को समझकर ही इन प्राणों की साधना से कोई पुरुष उन्नति को प्राप्त होता है। [२] (सुदासे) = उत्तम दान की वृत्तिवाले अथवा [दसु उपक्षये] वासनाओं का क्षय करनेवाले पुरुष में (आपय:) = बन्धुभूत ये प्राण (इडाभिः सह) = ज्ञान की वाणियों के साथ (वृष्टयः) = सुखों की वर्षा करनेवाले होते हुए (कस्मै) = उस आनन्दस्वरूप प्रभु की प्राप्ति के लिये (अनुसस्त्र:) = अनुकूलता से गतिवाले होते हैं। प्राणसाधना ज्ञान को बढ़ाती है, नीरोगता के द्वारा आनन्द का कारण बनती है और हमें प्रभु की ओर ले चलती है।

    भावार्थ

    भावार्थ– विरल पुरुष ही प्राणों के गति विज्ञान की बात को सुनता है। ये प्राण वासनाओं को विनष्ट करनेवाले पुरुष के लिये बन्धुभूत होते हैं, उसे ज्ञान व स्वास्थ्य का आनन्द प्राप्त कराते हैं और प्रभु की ओर ले चलते हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    एखादाच माणूस संपूर्ण शिल्पविद्येचा व्यवहार जाणण्यास समर्थ होऊ शकतो. जो व्याप्त असलेल्या विद्युत इत्यादी उत्तम गुण असलेल्या पदार्थांना जाणतो. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who perceives them riding their chariot on earth and in the skies and who knows whither they move? For which generous man or power do they rise and flow and turn like friends with the showers of their mysterious message and food for life?

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The way to query or technique of questioning is stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! who has heard knowledge while standing in their vehicles like the aircrafts etc? How do they go and whom do they attain? Upon what liberal person with many attendants do their kindred rains flown down together 'with manifold food etc ?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is only a man who knows the properties of many pervasive and useful things like electricity. He can know the -dealings of the entire technology.

    Foot Notes

    (रथेषु) विमानादियांनेषु । रथो रहतेगंतिकर्मणः । स्थिरतेर्वा स्याद् विपरीतस्य । रममाणोऽस्मिंस्तष्ठिर्ताति वा । रमतेर्वा रसतेर्वा (NKT 9, 2, 11)। = In vehicles like the aircraft etc. (सस्र:) प्राप्नुवन्ति ते । सु-गतौ (भ्वा० ) गतेस्त्रिष्वर्थेष्वत्र प्राप्त्यर्थंग्रहणम् = Obtain, achieve (इलाभि:) अन्नादिभि:। = With food etc.

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