ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 53/ मन्त्र 11
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - मरुतः
छन्दः - स्वराट्बृहती
स्वरः - मध्यमः
शर्धं॑शर्धं व एषां॒ व्रातं॑व्रातं ग॒णंग॑णं सुश॒स्तिभिः॑। अनु॑ क्रामेम धी॒तिभिः॑ ॥११॥
स्वर सहित पद पाठशर्ध॑म्ऽशर्धम् । वः॒ । ए॒षा॒म् । व्रात॑म्ऽव्रातम् । ग॒णम्ऽग॑णम् । सु॒श॒स्तिऽभिः॑ । अनु॑ । क्रा॒मे॒म॒ । धी॒तिऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शर्धंशर्धं व एषां व्रातंव्रातं गणंगणं सुशस्तिभिः। अनु क्रामेम धीतिभिः ॥११॥
स्वर रहित पद पाठशर्धम्ऽशर्धम्। वः। एषाम्। व्रातम्ऽव्रातम्। गणम्ऽगणम्। सुशस्तिऽभिः। अनु। क्रामेम। धीतिऽभिः ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 53; मन्त्र » 11
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यथा वयं धीतिभिः कर्माणीव सुशस्तिभिर्व एषाञ्च शर्धंशर्धं व्रातंव्रातं गणंगणमनु क्रामेम तथा युष्माभिरपि कर्त्तव्यम् ॥११॥
पदार्थः
(शर्धंशर्धम्) बलंबलम् (वः) युष्माकम् (एषाम्) (व्रातंव्रातम्) वर्त्तमानं वर्त्तमानम् (गणंगणम्) समूहंसमूहम् (सुशस्तिभिः) सुष्ठुप्रशंसाभिः (अनु) (क्रामेम) उल्लङ्घेम (धीतिभिः) अङ्गुलिभिः कर्माणीव ॥११॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यदि मनुष्याः पूर्णं बलं कुर्युस्तर्हि बहून् बलिष्ठानप्युत्क्रामयेयुः ॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (धीतिभिः) जैसे अङ्गुलियों से कर्म्मों को वैसे (सुशस्तिभिः) अच्छी प्रशंसाओं से (वः) आप लोगों के और (एषाम्) इनके (शर्धशर्धम्) बल-बल और (व्रातंव्रातम्) वर्त्तमान-वर्त्तमान (गणंगणम्) समूह-समूह को (अनु, क्रामेम) उल्लङ्घन करें, वैसे आप लोगों को भी करना चाहिये ॥११॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य पूर्ण बल को करें तो बहुत बलिष्ठों का भी उत्क्रमण करें ॥११॥
विषय
उन्नति के निमित्त उपदेश ।
भावार्थ
भा०-(वः एषां ) इन आप लोगों के (शर्धं शर्धं) बल २ को (व्रातं व्रातं) समूह २ को और (गणं गणं ) गण गण को हम लोग (सु-शस्तिभिः) उत्तम २ नाम, प्रशंसा वचनों और शासनों और ( धीतिभिः) उत्तम उत्तम कर्मों से ( अनु क्रमेम) अनुक्रमण करे, अर्थात् आपके बल के कार्यों व्रताचरणों, मिल कर किये कार्यों और गणना योग्य संघों का हम उत्तम ख्यातियों और कर्मों से अनुगमन और अनुकरण करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:-१ भुरिग्गायत्री । ८, १२ गायत्री । २ निचृद् बृहती । ९ स्वराड्बृहती । १४ बृहती । ३ अनुष्टुप् । ४, ५ उष्णिक् । १०, १५ विराडुष्णिक् । ११ निचृदुष्णिक् । ६, १६ पंक्तिः ७, १३ निचृत्पंक्तिः ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
शर्ध-व्रात-गण
पदार्थ
[१] हम (एषाम्) = इन प्राणों के (शर्धं शर्धम्) = अंग-प्रत्यंग में होनेवाले उस उस बल को (अनुक्रामेम) = अनुक्रमेण प्राप्त हों। इन प्राणों के द्वारा हमारे सब अंग सबल हो। [२] हम इन प्राणों के (व्रातं व्रातम्) = प्रत्येक व्रतसमूह को (सुशस्तिभिः) = उत्तम शंसनों-स्तुतियों के साथ प्राप्त हों । प्रभु स्तवन करते हुए हम प्राणसाधना के द्वारा व्रतमय जीवनवाले हों। [३] (गणं गणम्) = प्रत्येक गण को [group] 'कर्मेन्द्रिय पञ्चक, ज्ञानेन्द्रिय पञ्चक, प्राण पञ्चक व अन्तःकरण पञ्चक' [मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, हृदय] आदि गणों को (धीतिभिः) = उत्तम कर्मों के द्वारा [अनुक्रामेम] अनुकूलता से प्राप्त करें।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना के द्वारा हमारा जीवन 'सबल, व्रती व उत्तम इन्द्रियादिगणोंवाला' हो ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जर माणसांनी पूर्ण बल प्राप्त केले तर पुष्कळ बलवानाच्या पुढे जाता येते. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Let us move together step by step in disciplined order in accord with the united interests and aspirations of each unit of the defence forces, each unit of the economic order and each unit of the social order of these people for you all as a nation with the appraisal and appreciation of these with the best of our understanding and action.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Men's duties are pointed out.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! we try to surpass in the strength, and the present position group of these heroes by our good praises because works are done by the help of the fingers. So you should also emulate.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If men try to develop their power to the maximum, they can surpass even very powerful persons.
Foot Notes
(प्रातंप्रातम् ) वर्तमानं वर्त्तमानम् । वृतु-वर्तने (भ्वा० ) । = Present position. (धीतिभिः) अङ्गुलिभिः कर्माणीव । धीतये इत्यङ्गुलिनाम (NG 2, 4) = Like the works done with the help of the fingers.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal