ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 53/ मन्त्र 15
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - मरुतः
छन्दः - निचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
सु॒दे॒वः स॑महासति सु॒वीरो॑ नरो मरुतः॒ स मर्त्यः॑। यं त्राय॑ध्वे॒ स्याम॒ ते ॥१५॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽदे॒वः । स॒म॒ह॒ । अ॒स॒ति॒ । सु॒ऽवीरः॑ । न॒रः॒ । म॒रु॒तः॒ । सः । मर्त्यः॑ । यम् । त्राय॑ध्वे । स्याम॑ । ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुदेवः समहासति सुवीरो नरो मरुतः स मर्त्यः। यं त्रायध्वे स्याम ते ॥१५॥
स्वर रहित पद पाठसुऽदेवः। समह। असति। सुऽवीरः। नरः। मरुतः। सः। मर्त्यः। यम्। त्रायध्वे। स्याम। ते ॥१५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 53; मन्त्र » 15
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे समह ! स सुदेवः सुवीरो मर्त्योऽसति यं हे मरुतो नरस्ते यूयं त्रायध्वे वयं तेन सहिताः स्याम ॥१५॥
पदार्थः
(सुदेवः) शोभनश्चासौ विद्वान् (समह) सत्कारसहित (असति) भवति (सुवीरः) शोभनश्चासौ वीरः (नरः) नायकाः (मरुतः) मनुष्याः (सः) (मर्त्यः) (यम्) (त्रायध्वे) रक्षत (स्याम) (ते) ॥१५॥
भावार्थः
मनुष्यैरत्युन्नतैर्भूत्वा निर्बलाः प्राणिनः सदैव रक्षणीयाः ॥१५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (समह) सत्कार से सहित ! (सः) वह (सुदेवः) सुन्दर विद्वान् (सुवीरः) सुन्दर वीर (मर्त्यः) मनुष्य (असति) है (यम्) जिसको हे (मरुतः) मनुष्यो (नरः) अग्रणीजनो ! (ते) वे आप लोग (त्रायध्वे) रक्षा करो, हम लोग उसके साथ (स्याम) होवें ॥१५॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि अति उन्नत होकर निर्बल प्राणियों की सदा ही रक्षा करें ॥१५॥
विषय
तेजस्वी होने आदि की प्रार्थना ।
भावार्थ
भा०-हे (समह ) पूजा सत्कार योग्य जन ! और हे ( नरः ) नायक ( मरुतः ) वीर पुरुषो ! (यं त्रायध्वे ) आप लोग जिस की रक्षा करते हो ( सः मर्त्यः ) वह मनुष्य (सु-देवः) उत्तम विद्वान् और तेजस्वी तथा दानशील, व्यवहारकुशल ( असति ) हो जाता है । (ते) वैसे ही वे हम भी उत्तम विद्वान्, दानी, तेजस्वी आदि ( स्याम ) हो जावें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:-१ भुरिग्गायत्री । ८, १२ गायत्री । २ निचृद् बृहती । ९ स्वराड्बृहती । १४ बृहती । ३ अनुष्टुप् । ४, ५ उष्णिक् । १०, १५ विराडुष्णिक् । ११ निचृदुष्णिक् । ६, १६ पंक्तिः ७, १३ निचृत्पंक्तिः ॥ षोडशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
स्वरः सुदेवः सुवीरः
पदार्थ
[१] हे (मरुतः) = प्राणो ! (यं त्रायध्वे) = आप जिसका रक्षण करते हैं, (ते स्याम) = हम वे बनें । अर्थात् हम सदा प्राणसाधना करते हुए इन प्राणों के द्वारा रक्षणीय हों। [२] हे (नरः) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले मनुष्यो ! स (मर्त्यः) = आप से रक्षणीय मनुष्य (सुदेवः) = उत्तम देववृत्तिवाला, समह तेजस्विता से सम्पन्न ['समह' में विभक्ति का लुक् है] व (सुवीरः) = उत्तम वीर (असति) = होता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना करनेवाला प्राणों से रक्षित पुरुष 'उत्तम देव' व तेजस्विता सम्पन्न 'सुवीर' बनता है। प्राण शरीर को नीरोग बनाकर साधक को 'वीर' बनाते हैं। मन को नीरोग बनाकर उसे 'सुदेव' बनाते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी अत्यंत उन्नत होऊन निर्बल प्राण्यांचे सदैव रक्षण करावे. ॥ १५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Maruts, leading lights of life, great and glorious, brilliant is that man, brave and fearless, whom you protect and promote across the seas. Let us too be the same, your own, all for you.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men do is told further?
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O respectable leading men! the man whom you protect becomes a good enlightened person and a good hero. Let us be also like him keeping his company.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should protect all weak beings having become very much elevated or advanced.
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