ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 18/ मन्त्र 2
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स यु॒ध्मः सत्वा॑ खज॒कृत्स॒मद्वा॑ तुविम्र॒क्षो न॑दनु॒माँ ऋ॑जी॒षी। बृ॒हद्रे॑णु॒श्च्यव॑नो॒ मानु॑षीणा॒मेकः॑ कृष्टी॒नाम॑भवत्स॒हावा॑ ॥२॥
स्वर सहित पद पाठसः । यु॒ध्मः । सत्वा॑ । ख॒ज॒ऽकृत् । स॒मत्ऽवा॑ । तु॒वि॒ऽम्र॒क्षः । न॒द॒नु॒ऽमान् । ऋ॒जी॒षी । बृ॒हत्ऽरे॑णुः । च्यव॑नः॒ । मानु॑षीणाम् । एकः॑ । कृ॒ष्टी॒नाम् । अ॒भ॒व॒त् । स॒हऽवा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स युध्मः सत्वा खजकृत्समद्वा तुविम्रक्षो नदनुमाँ ऋजीषी। बृहद्रेणुश्च्यवनो मानुषीणामेकः कृष्टीनामभवत्सहावा ॥२॥
स्वर रहित पद पाठसः। युध्मः। सत्वा। खजऽकृत्। समत्ऽवा। तुविऽम्रक्षः। नदनुऽमान्। ऋजीषी। बृहत्ऽरेणुः। च्यवनः। मानुषीणाम्। एकः। कृष्टीनाम्। अभवत्। सहऽवा ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 18; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! यो युध्मः सत्वा समद्वा तुविम्रक्षो नदनुमानृजीषी बृहद्रेणुश्च्यवनो मानुषीणां कृष्टीनामेकस्सहावा खजकृद्वीरोऽभवत् स एव त्वया राज्यरक्षणाय नियोक्तव्यः ॥२॥
पदार्थः
(सः) (युध्मः) योद्धा (सत्वा) बलवान् (खजकृत्) यः खजं सङ्ग्रामं करोति। खज इति सङ्ग्रामनाम। (निघं०१.१७) (समद्वा) सम्यगत्ति स्वादुः भुङ्क्ते सः (तुविम्रक्षः) बहुस्नेहः (नदनुमान्) नदनवो बहवः शब्दा विद्यन्ते यस्मिँत्सः (ऋजीषी) ऋजुगामी (बृहद्रेणुः) बृहन्तो रेणवो यस्मिँत्सः (च्यवनः) गन्ता (मानुषीणाम्) मनुष्यसम्बन्धिनीनां सेनानाम् (एकः) असहायः (कृष्टीनाम्) मनुष्याणाम् (अभवत्) भवेत् (सहावा) सहनकर्त्ता ॥२॥
भावार्थः
राज्ञा राजकर्म्मचारी सम्परीक्ष्य राज्यव्यवहारे नियोक्तव्यः येन प्रजायाः सुखं वर्धेत ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! जो (युध्मः) युद्ध करनेवाला (सत्वा) बलवान् (समद्वा) अच्छे प्रकार स्वादु भोजन करनेवाला (तुविम्रक्षः) बहुत स्नेहयुक्त (नदनुमान्) बहुत शब्द विद्यमान जिसमें ऐसा और (ऋजीषी) सरल चलनेवाला (बृहद्रेणुः) बड़ी धूलि जिसमें वह (च्यवनः) जानेवाला (मानुषीणाम्) मनुष्यसम्बन्धिनी सेनाओं (कृष्टीनाम्) मनुष्यों के मध्य में (एकः) सहायरहित (सहावा) सहनशील (खजकृत्) संग्राम करनेवाला वीर (अभवत्) होवे (सः) वही आप से राज्य की रक्षा के निमित्त नियुक्त करने योग्य है ॥२॥
भावार्थ
राजा को चाहिये कि राजकर्म्मचारी को उत्तम प्रकार परीक्षा करके राज्य व्यवहार में नियुक्त करे, जिससे प्रजा के सुख की वृद्धि हो ॥२॥
विषय
एक ईश्वर की स्तुति । उसका वेदोपदेश ।
भावार्थ
( सः ) वह ( युध्मः ) युद्ध करने में चतुर, ( सत्वा ) बलवान्, ( खजकृत् ) नाना संग्रामों को करने वाला, ( समद्वा = सम अद्वा ) उत्तम अन्न का भोक्ता, अथवा, सबके साथ आनन्द प्रसन्न रहने वाला, ( तुवि-म्रक्षः ) बहुत सी प्रजाओं को स्नेह करने हारा, निष्पक्षपात, ( नदनुमान् ) गर्जनाशील, उपदेष्टा (ऋजीषी ) सरल ऋजु व्यवहार मार्ग में प्रेरणा करने वाला, ( बृहद्रेणुः ) बहुत से हिंसक वीर पुरुषों का स्वामी, ( मानुषीणाम् कृष्टीनाम् ) मननशील प्रजाओं के बीच ( एकः ) अकेला, अद्वितीय (च्यवनः ) उनका नेता, और (सहावा) बलवान् ( अभवत् ) हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ४, ९, १४ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ८, ११, १३ त्रिष्टुप् । ७, १० विराट् त्रिष्टुप् । १२ भुरिक त्रिष्टुप् । ३, १५ भुरिक् पंक्तिः । ५ स्वराट् पंक्तिः । ६ ब्राह्म्युष्णिक्॥
विषय
खजकृत् समद्वा
पदार्थ
[१] (सः) = वे प्रभु (युध्मः) = युद्ध कुशल हैं। (सत्वा) = वासनाओं के साथ संग्राम के लिए 'इन्द्रियों, मन व बुद्धि' रूप अस्त्रों के दाता हैं [सत्वा = दाता] | (खजकृत्) = हमारे लिए इन वासनाओं के साथ संग्राम करनेवाले हैं। (समद्वा) = अपने यजमान जीवरूप मित्रों के साथ आनन्दित होनेवाले हैं। (तुविम्रक्षः) = शत्रुओं पर महान् आघात करनेवाले हैं। (नदनुमान्) = हृदयस्थरूपेण शब्द करनेवाले हैं, कर्त्तव्यों की प्रेरणा देनेवाले हैं और (ऋजीषी) = हमें ऋजु मार्ग से ले चलनेवाले हैं। [२] (बृहद्रेणुः) = वे प्रभु महान् गतिवाले हैं [रीङ्गतौ] (च्यवनः) = शत्रुओं को च्युत करनेवाले हैं। (एकः) = वे अद्वितीय प्रभु (मानुषीणां कृष्टीनाम्) = मानव प्रजाओं के सहावा [सह अवति] साथ रहकर रक्षा करनेवाले (अभवत्) = होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमारे लिये हमारे वासनारूप शत्रुओं के साथ युद्ध करते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने राज्य कर्मचाऱ्याची उत्तम परीक्षा करून राज्यव्यवहारात नियुक्त करावे, ज्यामुळे प्रजेचे सुख वाढावे. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra is a hero, strong and realistic, a warrior, socially committed, all loving and friendly, eloquent, simple, natural and honest, dynamic, stormy in movement, and a unique embodiment of courage and tolerance among the best of thinking humanity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of duties of a ruler is dealt.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! you should appoint him for the protection (security or defense) of State, who is a good warrior, mighty heroic fighter in battles, eater of good delicious and nourishing food, great lover of all good men, (and) loudly roaring, man of upright nature. He whirls the dust on high (inwards) (in fighting the enemy) active and overthrower, forbearer of the attacks made by (defender from) men of different directions and great destroyer of his foes, even single handed.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
A king should appoint an officer after testing him very well, so that the happiness of the people may increase.
Foot Notes
(खजकृत्) यः खजं सङग्रामं करोति खज इति सङ्ग्रामनाम (NG 1, 17)। Heroic fighter. (तुविभ्रमः) बहुस्नेहः । तुवि इति बहुनाम (NG 3, 1 ) अक्ष-संघाते (भ्वा०) सङ्घातकार्य स्नेहनेव संभवति नान्यथा = Great lover, men of loving nature. (नदनुमान्) नदनवो बहव: शब्दा विद्यन्त यस्मिंसः । (पद) नद-भाषार्थं (काशकृत्स्न धातुपाठे 9,188 ) = Loudly roaring.
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