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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 18/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सदिद्धि ते॑ तुविजा॒तस्य॒ मन्ये॒ सहः॑ सहिष्ठ तुर॒तस्तु॒रस्य॑। उ॒ग्रमु॒ग्रस्य॑ त॒वस॒स्तवी॒योऽर॑ध्रस्य रध्र॒तुरो॑ बभूव ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सत् । इत् । हि । ते॒ । तु॒वि॒ऽजा॒तस्य॑ । मन्ये॑ । सहः॑ । स॒हि॒ष्ठ॒ । तु॒र॒तः । तु॒रस्य॑ । उ॒ग्रम् । उ॒ग्रस्य॑ । त॒वसः॑ । तवी॑यः । अर॑ध्रस्य । र॒ध्र॒ऽतुरः॑ । ब॒भू॒व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सदिद्धि ते तुविजातस्य मन्ये सहः सहिष्ठ तुरतस्तुरस्य। उग्रमुग्रस्य तवसस्तवीयोऽरध्रस्य रध्रतुरो बभूव ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सत्। इत्। हि। ते। तुविऽजातस्य। मन्ये। सहः। सहिष्ठ। तुरतः। तुरस्य। उग्रम्। उग्रस्य। तवसः। तवीयः। अरध्रस्य। रध्रऽतुरः। बभूव ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 18; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

    अन्वयः

    हे सहिष्ठ ! तुविजातस्य यस्य ते यद्धि सहस्तत्सदहं मन्ये तुरतस्तुरस्योग्रस्यारध्रस्य तवस उग्रं तवीयोऽहं मन्ये स भवान् रध्रतुर इद्बभूव ॥४॥

    पदार्थः

    (सत्) (इत्) एव (हि) निश्चयेन (ते) तव (तुविजातस्य) बहुषु प्रसिद्धस्य (मन्ये) (सहः) बलम् (सहिष्ठ) अतिशयेन सोढः (तुरतः) सद्यः कर्त्तुः (तुरस्य) सद्योऽनुष्ठातुः (उग्रम्) तीव्रम् (उग्रस्य) तीव्रस्य (तवसः) बलात् (तवीयः) अतिशयेन बलम् (अरध्रस्य) अहिंसकस्य (रध्रतुरः) हिंसकहिंसकः (बभूव) भवेत् ॥४॥

    भावार्थः

    सर्वैर्मनुष्यैः यस्मिन् यादृशा गुणकर्म्मस्वभावाः स्युस्तादृशा एव मन्तव्याः ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (सहिष्ठ) अतिशय सहनेवाले (तुविजातस्य) बहुतों में प्रसिद्ध जिन (ते) आप का जो (हि) निश्चित (सहः) बल है उसको (सत्) नित्य होनेवाला पदार्थ मैं (मन्ये) मानता हूँ तथा (तुरतः) शीघ्र करनेवाले (तुरस्य) शीघ्र आरम्भ करनेवाले (उग्रस्य) तीव्र और (अरध्रस्य) नहीं हिंसा करनेवाले के (तवसः) बल से (उग्रम्) तीव्र (तवीयः) अतिशय बल को मैं मानता हूँ वह आप (रध्रतुरः) हिंसकों के हिंसक (इत्) ही (बभूव) होवें ॥४॥

    भावार्थ

    सब मनुष्यों को चाहिये कि जिसमें जैसे गुण, कर्म्म और स्वभाव होवें, वैसे ही मानें ॥४॥

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    विषय

    स्वामी का महान् भीतिप्रद शासनबल ।

    भावार्थ

    हे ( सहिष्ठ ) बहुत बलशालिन् ! ( तुरतः तुरस्य ) हिंसक दुष्ट पुरुष को मारने वाले वा शीघ्र अश्वादि बल को शीघ्रता से चलाने वाले ( तुवि-जातस्य ) बहुतों में प्रसिद्ध, ( ते ) तेरा ( सहः सत् हि ) शत्रु पराभवकारी बल निश्चय से विद्यमान ही रहता है । ( इति मन्ये ) मैं यह स्वीकार करता हूं । ( अरध्रस्य ) स्वयं शत्रुओं के वश न आने वाले, वा अहिंसक ( रध्रतुरः ) हिंसकों के नाश करने वाले ( तवसः ) बड़े बलवान् ( उग्रस्य ) भयंकर तेरा ( तवीयः ) अति अधिक ( उग्रम् ) बड़ा भयंकर बल ( बभूव ) हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ४, ९, १४ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ८, ११, १३ त्रिष्टुप् । ७, १० विराट् त्रिष्टुप् । १२ भुरिक त्रिष्टुप् । ३, १५ भुरिक् पंक्तिः । ५ स्वराट् पंक्तिः । ६ ब्राह्म्युष्णिक्॥

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    विषय

    प्रभु ही बल के स्रोत हैं

    पदार्थ

    [१] हे (सहिष्ठ) = शत्रुओं का अधिक से अधिक मर्षण करनेवाले प्रभो! (तुविजातस्य) = महान् प्रादुर्भाववाले ते आपका (सहः) = बल (सत् इत् हि) = श्रेष्ठ ही है, ऐसा मन्ये मैं मानता हूँ। [२] (उग्रस्य) = तेजस्वी आपका यह बल (उग्रम्) = उग्र है, शत्रुओं के लिए भयंकर है। (तवसः) = अत्यन्त प्रवृद्ध आपका बल (तवीयः) = अतिशयेन बढ़ा हुआ है। (अरधस्य) = शत्रुओं से वश में न करने योग्य आपका यह बल (रध्रतुरः) = वशीकरणीय शत्रुओं का संहार करनेवाला बभूव है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सम्पूर्ण बल प्रभु का ही है। यह बल उग्र, बढ़ा हुआ व शत्रु विनाशक है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्याच्यात जे गुण, कर्म, स्वभाव असतील तसेच सर्व माणसांनी ते मानावेत. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Real and true indeed is the courage and tolerance of the world hero, yours all, I believe, O boldest and most forbearing warrior, which defines the light, power and victory of the ruler who is the instant victor over the victorious, blazing over the violent, stronger than the strongest and most powerful non-violent destroyer of the destructive.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should a king be is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O the mightiest king ! I deem strength of yours, which is renowned and true. O most potent ! you are prompt and the conquering victor. You are the destroyer of the person who is malevolent even towards the non-violent.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    All men should believe in the virtue, actions and temperament of the persons as they are, and not otherwise.

    Foot Notes

    (अरध्रस्य) अहिंसकस्य । = Of the non-violent. (रध्रतुर:) हिंसकहिंसकः । रध-हिंसासंसध्योः (भ्वा० ) । अत्र हिंसार्थ: । तूरी-गतित्वरण हिंसनयो: (दिवा०) बल हिंसार्थ:- तुर त्वरणे (जुहो०) | = Destroyer of the violent.

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