ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 18/ मन्त्र 7
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स म॒ज्मना॒ जनि॑म॒ मानु॑षाणा॒मम॑र्त्येन॒ नाम्नाति॒ प्र स॑र्स्रे। स द्यु॒म्नेन॒ स शव॑सो॒त रा॒या स वी॒र्ये॑ण॒ नृत॑मः॒ समो॑काः ॥७॥
स्वर सहित पद पाठसः । म॒ज्मना॑ । जनि॑म । मानु॑षाणाम् । अम॑र्त्येन । नाम्ना॑ । अति॑ । प्र । स॒र्स्रे॒ । सः । द्यु॒म्नेन॑ । सः । शव॑सा । उ॒त । रा॒या । सः । वी॒र्ये॑ण । नृऽत॑मः । सम्ऽओ॑काः ॥
स्वर रहित मन्त्र
स मज्मना जनिम मानुषाणाममर्त्येन नाम्नाति प्र सर्स्रे। स द्युम्नेन स शवसोत राया स वीर्येण नृतमः समोकाः ॥७॥
स्वर रहित पद पाठसः। मज्मना। जनिम। मानुषाणाम्। अमर्त्येन। नाम्ना। अति। प्र। सर्स्रे। सः। द्युम्नेन। सः। शवसा। उत। राया। सः। वीर्येण। नृऽतमः। सम्ऽओकाः ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 18; मन्त्र » 7
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राज्ञा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! यथाऽयं भृत्यो मज्मना स द्युम्नेन स शवसा स रायोत स वीर्य्येण मानुषाणाममर्त्येन नाम्ना जनिम प्रादुर्भावमति प्र सर्स्रे सः समोका नृतमः स्यात्तथा विधेहि ॥७॥
पदार्थः
(सः) (मज्मना) बलेन (जनिम) जन्म प्रादुर्भावम् (मानुषाणाम्) मनुष्याणाम् (अमर्त्येन) मरणधर्म्मरहितेन कारणेन (नाम्ना) सञ्ज्ञया (अति) (प्र) (सर्स्रे) प्राप्नोति (सः) (द्युम्नेन) धनेन यशसा वा (सः) (शवसा) विशिष्टेन बलेन (उत) अपि (राया) धनेन (सः) (वीर्य्येण) पराक्रमेण (नृतमः) नृणां मध्येऽतिशयेनोत्तमः (समोकाः) एकस्थानः ॥७॥
भावार्थः
राज्ञा तथा प्रजा राजजनाश्च प्रसिद्धिं बलं धनं कीर्तिं पराक्रमञ्च प्राप्नुयुस्तथा प्रयतितव्यम् ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा को क्यो करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! जैसे यह सेवक (मज्मना) बल से (सः) वह (द्युम्नेन) धन वा यश से (सः) वह (शवसा) विशेष बल से (सः) वह (राया) धन से और (उत) भी (सः) वह (वीर्य्येण) पराक्रम से (मानुषाणाम्) मनुष्यों के (अमर्त्येन) मरणधर्म्म से रहित कारण से और (नाम्ना) संज्ञा से (जनिम) जन्म अर्थात् प्रकट होने को (अति, प्र, सर्स्रे) अत्यन्त प्राप्त होता है वह (समोकाः) एक स्थानवाला (नृतमः) मनुष्यों के मध्य में अतिशय उत्तम होवे, वैसे आप करिये ॥७॥
भावार्थ
राजा को चाहिये कि जैसे प्रजा और राजा के जन प्रसिद्धि, बल, धन, यश और पराक्रम को प्राप्त होवें, वैसे प्रयत्न करें ॥७॥
विषय
सर्वोपरि राजा के गुण।
भावार्थ
( सः ) वह राजा स्वयं ( मज्मना) बलसे और (अमर्त्येन नाम्ना ) और अपने असाधारण शत्रु को नमाने वाले सामर्थ्य से (मानुषाणां जनिम ) मनुष्यों के जनसमूह वा मानुष जन्म को (अति प्रसर्स्रे) लांघ जावे । ( सः ) वह ( द्युम्नेन ) यश से ( स शवसा ) वह बल से और (उत राया ) धन से, और ( सः वीर्येण ) वह वीर्य से ( नृतमः ) सब मनुष्यों में श्रेष्ठ और ( सम्-ओकाः ) सब से उत्तम पद, और स्थान को प्राप्त करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ४, ९, १४ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ८, ११, १३ त्रिष्टुप् । ७, १० विराट् त्रिष्टुप् । १२ भुरिक त्रिष्टुप् । ३, १५ भुरिक् पंक्तिः । ५ स्वराट् पंक्तिः । ६ ब्राह्म्युष्णिक्॥
विषय
द्युम्न-शवस्-धन व वीर्य
पदार्थ
[१] (सः) = वे प्रभु (अमर्त्येन) = अविनाशी (नाम्ना) = शत्रुओं के नामक (मज्मना) = बल से (मानुषाणां जनिम) = मानव संघ को (अति स) = अतिशयेन प्राप्त होते हैं। जब मनुष्य प्रभु की उपासना करता है, तो प्रभु उसे शत्रुनाशक बल प्राप्त कराते हैं । [२] (सः) = वे प्रभु (द्युम्नेन) = ज्ञान ज्योति के साथ (सं ओकाः) = निवासवाले हैं। (सः) = वे (शवसा) = बल के साथ समान निवासवाले हैं। (उत) = और (राया) = ऐश्वर्य के साथ निवास करते हैं। (सः) = वे (नृतम:) = सर्वोत्तम नेतृत्व करनेवाले प्रभु (वीर्येण) = पराक्रम के साथ [समोका:] निवासवाले हैं। प्रभु का उपासक भी 'ज्ञान, बल, धन व सामर्थ्य' के साथ समान निवासवाला होता है ।
भावार्थ
भावार्थ– उपासक को शत्रुओं को झुकानेवाला बल प्राप्त होता है। ज्ञान, बल, धन व वीर्य प्राप्त होता है।
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने असा प्रयत्न करावा की, प्रजा व राजजन प्रसिद्धी, बल, धन, यश मिळवून पराक्रमी बनतील. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
With immortal power he continues and extends the name and identity of humanity and, as highest leader of supreme human virtues and all pervasive with human presence, he advances the human generations with honour and excellence, courage and valour, wealth and fame, and manly vigour and splendour.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should a king do is further told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! you should ordain in such a manner that this Public Servant surpasses other men in his might, in his wealth or good reputation, in extraordinary strength, in riches and in velour. Let his name live for ever. Let him become the best among men, living in the same place with others lovingly.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
A king should endeavor in such a manner that all his subjects and officers may obtain good reputation, name, fame, strength, wealth, glory and velour.
Foot Notes
(दयुम्नेन) धनेन यशता वा । दयुम्नमिति धननाम् (NG 2, 10) दयुम्न धोततेर्थथंशोवा अन्नवा (NKT) = With wealth or reputation. ( मध्मना ) बलेन । मज्मना इति बलनाम (NG 2,9)। =With might. (शवसा ) विशिष्टेन बलेन । शव इति बलनाम। (NG 2,9) = With extraordinary strength.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal