ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 18/ मन्त्र 9
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
उ॒दाव॑ता॒ त्वक्ष॑सा॒ पन्य॑सा च वृत्र॒हत्या॑य॒ रथ॑मिन्द्र तिष्ठ। धि॒ष्व वज्रं॒ हस्त॒ आ द॑क्षिण॒त्राभि प्र म॑न्द पुरुदत्र मा॒याः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त्ऽअव॑ता । त्वक्ष॑सा । पन्य॑सा । च॒ । वृ॒त्र॒ऽहत्या॑य । रथ॑म् । इ॒न्द्र॒ । ति॒ष्ठ॒ । धि॒ष्व । वज्र॑म् । हस्ते॑ । आ । द॒क्षि॒ण॒ऽत्रा । अ॒भि । प्र । म॒न्द॒ । पु॒रु॒ऽद॒त्र॒ । मा॒याः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उदावता त्वक्षसा पन्यसा च वृत्रहत्याय रथमिन्द्र तिष्ठ। धिष्व वज्रं हस्त आ दक्षिणत्राभि प्र मन्द पुरुदत्र मायाः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठउत्ऽअवता। त्वक्षसा। पन्यसा। च। वृत्रऽहत्याय। रथम्। इन्द्र। तिष्ठ। धिष्व। वज्रम्। हस्ते। आ। दक्षिणऽत्रा। अभि। प्र। मन्द। पुरुऽदत्र। मायाः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 18; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजजनाः किं कुर्य्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे पुरुदत्रेन्द्र ! त्वमुदावता पन्यसा त्वक्षसा वृत्रहत्याय रथमाऽऽतिष्ठ दक्षिणत्रा हस्ते वज्रं धिष्व। मायाश्च प्राप्याभि प्र मन्द ॥९॥
पदार्थः
(उदावता) ऊर्ध्वगमनेन (त्वक्षसा) सूक्ष्मीकरणेन (पन्यसा) शुद्धेन व्यवहारेण (च) (वृत्रहत्याय) संग्रामाय (रथम्) (इन्द्र) राजन् (तिष्ठ) (धिष्व) धरस्व (वज्रम्) शस्त्रास्त्रम् (हस्ते) (आ) समन्तात् (दक्षिणत्रा) दक्षिणे (अभि) (प्र) (मन्द) प्रशंसय (पुरुदत्र) बहुदानकृत् (मायाः) प्रज्ञाः ॥९॥
भावार्थः
य उत्कृष्टतया सकलविषयाः प्रज्ञाः प्राप्य शस्त्राऽस्त्राणि धृत्वा युद्धाय गच्छन्ति ते विजयं प्राप्नुवन्ति ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजजन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (पुरुदत्र) बहुत दान करनेवाले (इन्द्र) राजन् ! आप (उदावता) ऊर्ध्वगमन और (पन्यसा) शुद्ध व्यवहार तथा (त्वक्षसा) सूक्ष्मीकरण से (वृत्रहत्याय) संग्राम के लिये (रथम्) रथ पर (आ) सब प्रकार से (तिष्ठ) स्थित हो और (दक्षिणत्रा) दाहिने (हस्ते) हाथ में (वज्रम्) शस्त्र और अस्त्र को (धिष्व) धारण करिये (मायाः) बुद्धियों को (च) और प्राप्त होकर (अभि, प्र, मन्द) सब प्रकार से प्रशंसा करिये ॥९॥
भावार्थ
जो उत्कृष्टता से सम्पूर्ण विषयों को जाननेवाली बुद्धियों को प्राप्त होकर शस्त्र और अस्त्रों को धारण करके युद्ध के लिये जाते हैं, वे विजय को प्राप्त होते हैं ॥९॥
विषय
उसको कर्त्तव्य का उपदेश ।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! शत्रुहन्तः ! (उत्-अवता ) उत्तम मार्ग पर चलने हारे, (चक्षसा ) शत्रुओं का नाश करने वाले (पन्यसा ) अतिस्तुत्य व्यवहार से तू ( वृत्रहत्याय ) अपने बढ़ते और विघ्नकारी शत्रुओं के नाश के लिये ( रथम् तिष्ठ ) रथ पर सवार हो । और (दक्षिणत्र हस्ते ) दायें हाथ में ( वज्रम् धिष्व ) शस्त्र ग्रहण कर । हे ( पुरुदत्र) नाना दान योग्य धनों के स्वामिन् ! तू ( मायाः अभि प्रमन्द ) उत्तम बुद्धियों को प्राप्त होकर हर्षित और तेजस्वी हो ।
टिप्पणी
मन्दतिर्ज्वलित-कर्मा पठितः ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ४, ९, १४ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ८, ११, १३ त्रिष्टुप् । ७, १० विराट् त्रिष्टुप् । १२ भुरिक त्रिष्टुप् । ३, १५ भुरिक् पंक्तिः । ५ स्वराट् पंक्तिः । ६ ब्राह्म्युष्णिक्॥
विषय
इन्द्र कौन ?
पदार्थ
[१] (उदावता) = उत्कृष्ट रक्षण करनेवाले, (त्वक्षसा) = शत्रुओं को छील देनेवाले, नष्ट कर देनेवाले, (पन्यसा) = स्तुत्य बल से युक्त हुआ हुआ हे इन्द्र जितेन्द्रिय पुरुष! तू (वृत्रहत्याय) = वासना के विनाश के लिए (रथम्) = इस शरीर-रथ पर (तिष्ठ) = स्थित हो । [२] इस शरीर-रथ पर अधिष्ठित होकर (दक्षिणत्रा हस्ते) = दाहिने हाथ में (वज्रं आधिष्व) = क्रियाशीलतारूप वज्र को धारण कर । कुशलतापूर्वक कर्मों से तेरा जीवन व्याप्त हो । और हे (पुरुदत्र) खूब दान देने योग्य धन से युक्त हुआ-हुआ तू (मायाः अभि) = प्रज्ञानों का लक्ष्य करके (प्रमन्द) = प्रकृष्ट दीप्तिवाला हो [मन्दतिः ज्वलतिकर्मसु] ।
भावार्थ
भावार्थ– इन्द्र वह है, [क] जो उत्कृष्ट बल से युक्त हुआ-हुआ वासना का विनाश करता है, [ख] कुशलता से कर्मों में प्रवृत्त रहता है और [ग] धनयुक्त होता हुआ प्रज्ञान दीप्त बनने का यत्न करता है।
मराठी (1)
भावार्थ
जे उत्कृष्टतेने सर्व विषय जाणणारी प्रज्ञा प्राप्त करून शस्त्र, अस्त्र धारण करून युद्ध करतात ते विजय प्राप्त करतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And by raising and refining the admirable power of action, O lord ruler and sovereign, ascend your chariot for the battle of life against darkness and deprivation. Take up the thunderous weapon of power and force in the right hand, generous lord, shine in all your majesty and glory of action and destroy the force and wiles of the enemy.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should officers of the State do is further told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O liberal donor, king! ascend your car with upward movement, with sharpening weapons, and with pure dealing, smite down to your wicked foes in battle. In your right hand hold fast your powerful arms and missiles. Having received good intellect or noble advice, admire the wise and the heroes.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons achieve victory who acquire well the knowledge of all sciences and possess good intellect and go to the battle being equipped with powerful arms and missiles.
Foot Notes
(उदावता ) उधर्वगमनेन । उत् + आ + अव (भ्वा० ) अवधातोदनेकार्थष्वम गत्यर्थ ग्रहणम् अव-रक्षण गतिकान्ति प्रोतिवृद्विषु । = By upward movement. (त्वक्षसा ) सूक्ष्मीकरणेन । त्वक्षू- तमूकरणे (भ्वा० ) = By sharpening the weapons. (पन्यसा) शुद्ध ेन व्यवहारेण पग-व्यवहारे स्तुतौ च (भ्वा०) व्यवहारार्थः । = With pure dealing. (पुरुदत्र ) बहुदान कृत् । = Liberal donor, Bounteous, generous. (वृत्तहत्याय ) संग्रामाय वृत तूर्ये इति संग्रामनाम (NG 2,17) तूरी-गतिस्वरणहिंसनयो: ( दिवा० ) तस्मात् तूर्य हत्वा शब्दौ पर्यायवाचको । पाम्मा ने वृतः सथन: ( stph 8, 5, 1, 6) वृक्ष खलुवा एष हन्ति यः संग्रामं जयति ( मैत्रायणिसं 2,2,10). = For the battle.
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