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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 18/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    त्वं ह॒ नु त्यद॑दमयो॒ दस्यूँ॒रेकः॑ कृ॒ष्टीर॑वनो॒रार्या॑य। अस्ति॑ स्वि॒न्नु वी॒र्यं१॒॑ तत्त॑ इन्द्र॒ न स्वि॑दस्ति॒ तदृ॑तु॒था वि वो॑चः ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । ह॒ । नु । त्यत् । अ॒द॒म॒यः॒ । दस्यू॑न् । एकः॑ । कृ॒ष्टीः । अ॒व॒नोः॒ । आर्या॑य । अस्ति॑ । स्वि॒त् । नु । वी॒र्य॑म् । तत् । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । न । स्वि॑त् । अ॒स्ति॒ । तत् । ऋ॒तु॒ऽथा । वि । वो॒चः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं ह नु त्यददमयो दस्यूँरेकः कृष्टीरवनोरार्याय। अस्ति स्विन्नु वीर्यं१ तत्त इन्द्र न स्विदस्ति तदृतुथा वि वोचः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। ह। नु। त्यत्। अदमयः। दस्यून्। एकः। कृष्टीः। अवनोः। आर्याय। अस्ति। स्वित्। नु। वीर्यम्। तत्। ते। इन्द्र। न। स्वित्। अस्ति। तत्। ऋतुऽथा। वि। वोचः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 18; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राज्ञा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र राजन् ! यत्ते वीर्य्यमस्ति स्विन्नु यन्नास्ति स्विदृतुथा यद्वि वोचस्तत्त्वमवनोस्तन्ममास्तु दस्यूनेकः सन्नदमयः स त्वं ह कृष्टीरार्य्याय न्ववनोस्त्यद्वयप्येवं कुर्य्याम ॥३॥

    पदार्थः

    (त्वम्) (ह) किल (नु) सद्यः (त्यत्) तत् (अदमयः) दमय (दस्यून्) दुष्टान् चोरान् (एकः) असहायः (कृष्टीः) मनुष्यान् (अवनोः) सम्भज (आर्य्याय) द्विजाय (अस्ति) (स्वित्) (नु) सद्यः (वीर्य्यम्) बलम् (तत्) (ते) तव (इन्द्र) राजन् (न) निषेधे (स्वित्) अपि (अस्ति) (तत्) (ऋतुथा) ऋतुरिव (वि) (वोचः) ॥३॥

    भावार्थः

    राज्ञामिदं मुख्यं कर्म्मास्ति यत्सर्वान् दस्यून् निवार्य्य प्रजापालनं कुर्य्युः ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजा को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) राजन् ! जो (ते) आप का (वीर्य्यम्) बल (अस्ति) है (स्वित्) क्या? (नु) शीघ्र जो (न) नहीं (अस्ति) है और (स्वित्) भी (ऋतुथा) ऋतु जैसे वैसे जो (वि, वोचः) कहते हो (तत्) उसका (त्वम्) आप (अवनोः) सेवन करिये (तत्) वह मेरा हो और (दस्यून्) दुष्ट चोरों को (एकः) सहायरहित हुए आप (अदमयः) दमन करिये वह आप (ह) निश्चय (कृष्टीः) मनुष्यों को (आर्य्याय) द्विज के लिये (नु) शीघ्र उत्तम प्रकार सेवन करिये (त्यत्) उसको हम लोग भी ऐसे करें ॥३॥

    भावार्थ

    राजाओं का यह मुख्य कर्म्म है कि सम्पूर्ण दुष्ट चोरों का निवारण करके प्रजाओं का पालन करें ॥३॥

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    विषय

    एक ईश्वर की स्तुति । उसका वेदोपदेश ।

    भावार्थ

    ( त्वं ह ) तू निश्चय से, (त्यत् ) वह है जो ( एकः ) अकेला, अद्वितीय ही ( आर्याय ) श्रेष्ठ पुरुषों के हितार्थ ( दस्यून् अदमयः ) दुष्ट प्रजानाशक पुरुषों का दमन करे और ( कृष्टी: अवनोः ) कृषि करने वाली अहिंसक प्रजाओं का सेवन कर । ( तत् ते वीर्यं अस्तिस्वित् ) तेरा वह अद्वितीय बल है भी ( न स्विद् अस्ति ) या नहीं है ( तत् ) इस बात को हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् राजन् ! तू ( ऋतुथा ) अवसर २ परं ( वि वोचः ) विविध प्रकार से बतलाया कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ४, ९, १४ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ८, ११, १३ त्रिष्टुप् । ७, १० विराट् त्रिष्टुप् । १२ भुरिक त्रिष्टुप् । ३, १५ भुरिक् पंक्तिः । ५ स्वराट् पंक्तिः । ६ ब्राह्म्युष्णिक्॥

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    विषय

    न स्वित् अस्ति

    पदार्थ

    [१] (त्यत् त्वं ह) = हे प्रभो ! वे आप ही (एकः) = अकेले (दस्यून्) = इन काम-क्रोध-लोभ आदि दास्यवभावों का (अदमायः) = दमन करते हैं। आप ही (आर्याय) = श्रेष्ठ पुरुष के लिए (कृष्टीः अवनोः) = कृषियों को प्राप्त कराते हैं। वस्तुतः आपके द्वारा ही ये आर्य पुरुष श्रमसाध्य कर्मों को करने में समर्थ होते हैं । [२] हे (इन्द्र) = सब बल के कर्मों को करनेवाले प्रभो ! (नु स्वित्) = निश्चय से (तत् ते वीर्यं अस्ति) = वह सब आपका ही पराक्रम है। आपकी शक्ति से ही सब कार्य होते हैं। इसमें उस-उस कर्म के करनेवाले व्यक्ति का तो (स्वित्) = निश्चय से (न अस्ति) = कुछ भी नहीं है। आपकी शक्ति से ही सब कार्य होते हैं। हे प्रभो! आप (तद्) = उस बात को (ऋतुथा) = समयानुसार (विवोच:) = हमें विशेषरूप से बतलाते रहिये, जिससे हम उन कर्मों का गर्व न करने लगें । इसी प्रकार हमें भी आपके द्वारा इस बात का ज्ञान होता रहे कि 'न स्वित् अस्ति' निश्चय से हमारा कुछ नहीं है, सब उस प्रभु का है ।

    भावार्थ

    भावार्थ– प्रभु दास्यव वृत्तियों का दमन करते हैं। हमें श्रमसाध्य कृषि आदि कर्मों को प्राप्त कराके आर्य बनाते हैं। सब कर्म प्रभु द्वारा ही होते हैं, मनुष्य का इसमें कुछ नहीं है ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाचे हे मुख्य कर्तव्य आहे की, संपूर्ण दुष्ट चोरांचे निवारण करून प्रजेचे पालन करावे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, you for sure are the one who fight out and control the wicked and violent elements and bring the world communities together for a united world of progressive and cultured humanity. That indeed is your strength, real heroism, is it not? Pray speak of that courage, competence and vision according to the needs of time and season.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should a king do is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king ! you tame or subdue the wicked thieves; protect the people or an Arya-righteous and learned person. Is this or is it not your heroic act ? O king ! declare (your action) at the proper season (time). Let us also do like this.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    This is the greatest duty of the king to remove or eliminate all wicked thieves and protect the people.

    Foot Notes

    (कृष्टी:) मनुष्याम् । कृष्टयः इति मनुष्यनाम (NG 2, 3 ) । = Men. (दस्यून्) दुष्टान चोरान दस्यु: दसु-उपक्षये (दिवा० ) शुभकर्मनाशक: । = Wicked thieves.

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