ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 27/ मन्त्र 4
ऋषिः - मनुर्वैवस्वतः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
विश्वे॒ हि ष्मा॒ मन॑वे वि॒श्ववे॑दसो॒ भुव॑न्वृ॒धे रि॒शाद॑सः । अरि॑ष्टेभिः पा॒युभि॑र्विश्ववेदसो॒ यन्ता॑ नोऽवृ॒कं छ॒र्दिः ॥
स्वर सहित पद पाठविश्वे॑ । हि । स्म॒ । मन॑वे । वि॒श्वऽवे॑दसः॑ । भुव॑न् । वृ॒धे । रि॒शाद॑सः । अरि॑ष्टेभिः । पा॒युऽभिः॑ । वि॒श्व॒ऽवे॒द॒सः॒ । यन्त॑ । नः॒ । अ॒वृ॒कम् । छ॒र्दिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वे हि ष्मा मनवे विश्ववेदसो भुवन्वृधे रिशादसः । अरिष्टेभिः पायुभिर्विश्ववेदसो यन्ता नोऽवृकं छर्दिः ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वे । हि । स्म । मनवे । विश्वऽवेदसः । भुवन् । वृधे । रिशादसः । अरिष्टेभिः । पायुऽभिः । विश्वऽवेदसः । यन्त । नः । अवृकम् । छर्दिः ॥ ८.२७.४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 27; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 31; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 31; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
May all the divine powers of the universe, destroyers of negativities, be for the protection and progress of mankind. May all the divinities of the universe in possession of wealth, power and knowledge along with modes of protection free from hurt and injury bring us a peaceful home on earth free from sin and crime.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रत्येक पुरुषाने आपले घर शुद्ध, पवित्र ठेवावे ॥४॥
संस्कृत (1)
विषयः
गृहं शोधनीयमिति दर्शयति ।
पदार्थः
विश्ववेदसः=सर्वधनज्ञानाः । रिशादसः=शत्रूणां विनाशकाश्च । विश्वे=सर्वे देवाः । मनवे=मनोः । वृधे=वर्धनाय । भुवन्=भवन्तु । अपि च । हे विश्ववेदसः ! अरिष्टेभिः=बाधारहितैः । पायुभिः=पालनैः सह । नः=अस्मभ्यम् । अवृकम्=चोरादिरहितं पापादिविरहितम् । छर्दिः=गृहम् । यन्त=प्रयच्छत ॥४ ॥
हिन्दी (3)
विषय
गृह या यज्ञशाला को शुद्ध बनाकर रक्खे, यह दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(मनवे+वृधे) मनुष्यजाति के कल्याण और वृद्धि के लिये (विश्ववेदसः) सर्वधन और विज्ञानसहित (विश्वे+हि+स्म) सब ही विद्वद्गण (भुवन्) होवें और (रिशादसः) उनके शत्रुओं और विघ्नों के नाश करनेवाले होवें और (विश्ववेदसः) हे सर्वधनविज्ञानसम्पन्न बुद्धिमान् मनुष्यों ! आप सब (अरिष्टेभिः+पायुभिः) बाधारहित रक्षाओं से युक्त होकर (नः) हमारे (छर्दिः) निवासस्थान को (अवृकम्+यन्त) पाप और बाधारहित कीजिये ॥४ ॥
भावार्थ
प्रत्येक पुरुष को उचित है कि वह अपने गृह को शुद्ध पवित्र बना रक्खे ॥४ ॥
विषय
विद्वान् से ज्ञान की याचना।
भावार्थ
( विश्वे ) सब ( विश्व-वेदसः ) समस्त ज्ञानों और ऐश्वर्यो के स्वामी ( रिशादसः ) दुष्टों के नाशक लोग ( मनवे वृधे हि भुवन् ) मनुष्य की वृद्धि के लिये ही हों। हे ( विश्व-वेदसः ) समस्त ज्ञानों के ज्ञाता, सब धनों के धनी जनो ! आप लोग ( अरिष्टेभिः ) हिंसादि से रहित, ( पायुभिः ) पालनकारक उपायों से युक्त ( नः ) हमें ( अवृकं छर्दि: ) चोरादि कष्ट बाधा से रहित गृह ( यन्त ) प्रदान करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मनुर्वैवस्वत ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:—१, ७,९ निचृद् बृहती। ३ शकुमती बृहती। ५, ११, १३ विराड् बृहती। १५ आर्ची बृहती॥ १८, १९, २१ बृहती। २, ८, १४, २० पंक्ति:। ४, ६, १६, २२ निचृत् पंक्तिः। १० पादनिचृत् पंक्तिः। १२ आर्ची स्वराट् पंक्ति:। १७ विराट् पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
अवृक छर्दि
पदार्थ
[१] (विश्वे) = सब (विश्ववेदसः) = सम्पूर्ण धनोंवाले व ज्ञानोंवाले, (रिशादसः) = हिंसक शत्रुओं को [काम-क्रोध-लोभ को] नष्ट करनेवाले देव (हि ष्मा) = निश्चय से (मनवे) = विचारशील पुरुष के लिये (वृधे भुवन्) = वृद्धि के लिये होते हैं। ऐसे देवों के सम्पर्क में आकर एक विचारशील पुरुष दिन-प्रतिदिन वृद्धि को प्राप्त होता चलता है। [२] ये (विश्ववेदसः) = सम्पूर्ण धनों व ज्ञानोंवाले देव (अरिष्टेभिः पायुभिः) = अहिंसित रक्षणों के द्वारा (नः) = हमारे लिये (अवृकम्) = [वृक] भेड़िये, उल्लू, कौवे व गीदड़ की वृत्तिवाले पुरुषों से रहित (छर्दिः) = घर को (यन्त) = प्राप्त करायें। हमारे घरों में 'बहुत खानेवाले, मूर्ख, धूर्त व कायर' व्यक्ति न हों। हम स्वयं उत्तम वृत्ति के बनें, हमारे सन्तान भी उत्तम वृत्ति के हों।
भावार्थ
भावार्थ - ज्ञानियों के सम्पर्क में हम दिव्यता में वृद्धि को प्राप्त करें। हमारे घरों में 'मिताहारी, ज्ञानी, सरल व वीर' पुरुषों का निवास हो।
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