अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 29/ मन्त्र 7
क्षी॒रे मा॑ म॒न्थे य॑त॒मो द॒दम्भा॑कृष्टप॒च्ये अश॑ने धा॒न्ये॒ यः। तदा॒त्मना॑ प्र॒जया॑ पिशा॒चा वि या॑तयन्तामग॒दो॒यम॑स्तु ॥
स्वर सहित पद पाठक्षी॒रे । मा॒ । म॒न्थे । य॒त॒म: । द॒दम्भ॑ । अ॒कृ॒ष्ट॒ऽप॒च्ये । अश॑ने । धा॒न्ये᳡ । य: । तत् । आ॒त्मना॑ । प्र॒ऽजया॑ । पि॒शा॒चा: । वि । या॒त॒य॒न्ता॒म् । अ॒ग॒द: । अ॒यम् ।अ॒स्तु॒ ॥२९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षीरे मा मन्थे यतमो ददम्भाकृष्टपच्ये अशने धान्ये यः। तदात्मना प्रजया पिशाचा वि यातयन्तामगदोयमस्तु ॥
स्वर रहित पद पाठक्षीरे । मा । मन्थे । यतम: । ददम्भ । अकृष्टऽपच्ये । अशने । धान्ये । य: । तत् । आत्मना । प्रऽजया । पिशाचा: । वि । यातयन्ताम् । अगद: । अयम् ।अस्तु ॥२९.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रुओं और रोगों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(यतमः) जिस किसी ने (क्षीरे) दूध में, अथवा (मन्थे) मट्ठे में, अथवा (यः) जिसने (अकृष्टपच्ये) विना जुते खेत से उत्पन्न (अशने) भोजन में, अथवा (धान्ये) यव आदि धान्य में (मा) मुझे (ददम्भ) धोखा दिया है। (तत्) उससे.... म० ६ ॥७॥
भावार्थ
मन्त्र ६ देखो ॥७॥
टिप्पणी
७−(क्षीरे) दुग्धे (मा) माम् (मन्थे) पेयभेदे। तक्रे (यतमः) यः कश्चित् (ददम्भ) वञ्चितवान् (अकृष्टपच्ये) राजसूयसूर्य०। पा० ३।१।११४। इति अकृष्ट+पच पाके−क्यप्। कृष्यादिकं विना स्वयं पक्वे नीवारादौ (अशने) भोजने (धान्ये) अ० ३।२६।३। यवाद्यन्ये ॥
विषय
क्षीरे, मन्थे अपां पाने, शयने
पदार्थ
१. (यतमः) = जो भी कोई रोगजन्तु (क्षीरे) = दूध में, (मन्थे) = मठे में, (अकृष्टपच्ये धान्ये) = बिना खेती किये उत्पन्न हुए अन्न में, तथा (य:) = जो (अशने) = भोजन में प्रविष्ट होकर (मा ददम्भ) = मुझे हिसित करता है। २. (यातूनाम्) = यातना देनेवालों में (यतमः क्रव्यात) = जो मांसभक्षक कृमि (अपां पाने) = जलों का पान करने में अथवा (शयने शयानं मा) = बिस्तर पर सोते हुए मुझे (ददम्भ) = हिंसित करता है, ३. (यातूनां यतमः) = पीड़ा देनेवालों में जो भी (क्रव्यात्) = मांसाहारी कृमि (दिवा नक्तम्) = दिन-रात के समय में (शयने शयानम्) = बिस्तर पर सोये हुए (मा ददम्भ) = मुझे हिंसित करता है, (तत्) = वह पिशाच (आत्मना प्रजया) = स्वयं और अपनी सन्ततिसहित विनष्ट हो जाए। (पिशाचा:) = सब रोगजन्तु (वियातयन्ताम्) = नाना प्रकार से पीड़ा को प्राप्त होकर शरीर को छोड़ जाएँ। (अयं अगदः अस्तु) = यह पुरुष नीरोग हो जाए।
भावार्थ
भोजन में, जलों में या दिन व रात में सोने के समय जो भी रोगकमि हमारी हिंसा का कारण बनता है, वह कृमि नष्ट हो जाए और हमारे शरीर नीरोग बनें।
भाषार्थ
(क्षीरे) दूध में, (मन्थे) मठे में, (अकृष्टपच्ये) अनजुते खेत में पके अन्न में, (धान्ये) तथा जूते खेत के धान्य में (अशने) मेरे इस भोजन में (यतमः) जिस किसी रोग-जीवाणु ने (मा) मुझे (ददम्भ) हिंसित किया है, रुग्ण किया है (तत् ) तो वह पिशाच अर्थात् रोग-जीवाणु तथा (पिशाचा:) अन्य सब मांस-भक्षक रोग-जीवाणु भी (आत्मना) निज स्वरूप से, तथा (प्रजया) सन्तानों से (वियातयन्ताम् ) वियुक्त कर दिये जाएं और (अयम् ) यह रुग्ण (अगदः) रोगरहित हो जाए। [राष्ट्राधिपति के सम्बन्ध में, मन्त्र ६ में कथित अर्थ ही, इस मन्त्र में भी जानना चाहिए।]
विषय
रोगों का नाश करके आरोग्य होने का उपाय।
भावार्थ
(यतमः) जो कोई भी रोगकारी पिशाच रूप जन्तु (क्षीरे) दूध में, (मन्थे) मठा में (अकृष्ट-पच्ये धान्ये) और खेती के बिना ही स्वयं पकने वाले धान्य में और (अशने) भोजन में घुस कर (मा ददम्भ) मुझे हानि पहुंचाता है। (तद् आत्मना०) वह स्वयं नष्ट हो जाय और अन्य जन्तु भी नष्ट हो जाये और यह पुरुष नीरोग हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
चातन ऋषिः। जातवेदा मन्त्रोक्ताश्व देवताः। १२, ४, ६-११ त्रिष्टुमः। ३ त्रिपदा विराड नाम गायत्री। ५ पुरोतिजगती विराड्जगती। १२-१५ अनुष्टुप् (१२ भुरिक्। १४, चतुष्पदा पराबृहती ककुम्मती)। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destruction of Germs and Insects
Meaning
Whatever germs in milk, in butter milk or in wild grains enter our food and damage us, let these be countered and destroyed in themselves and with their further growth, and let the affected patient restored to good health.
Translation
Whosoever injures me through milk, through butter-milk and who through the consumption of food-grains growing without cultivation, let those blood-suckers themselves along with their progeny be removed. May this person be free from disease.
Translation
If any one of the germs of disease harm me in milk, in the cerial produced through agriculture, if any one harm me in food let these germs with their lives, their offspring’s be terrorized and let the man affected will be healthy.
Translation
If some flesh-consuming germ, entering milk, curd, food, and corn of spontaneous growth, hath injured me, let the germs with their lives and offspring be destroyed, so that this man be free from disease.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(क्षीरे) दुग्धे (मा) माम् (मन्थे) पेयभेदे। तक्रे (यतमः) यः कश्चित् (ददम्भ) वञ्चितवान् (अकृष्टपच्ये) राजसूयसूर्य०। पा० ३।१।११४। इति अकृष्ट+पच पाके−क्यप्। कृष्यादिकं विना स्वयं पक्वे नीवारादौ (अशने) भोजने (धान्ये) अ० ३।२६।३। यवाद्यन्ये ॥
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