Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 12
    ऋषिः - लोपामुद्रा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृद गायत्री स्वरः - षड्जः
    4

    नृ॒षदे॒ वेड॑प्सु॒षदे॒ वेड् ब॑र्हि॒षदे॒ वेड् व॑न॒सदे॒ वेट् स्व॒र्विदे॒ वेट्॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नृ॒षदे॑। नृ॒सद॒ इति॑ नृ॒ऽसदे॑। वेट्। अ॒प्सु॒षदे॑। अ॒प्सु॒सद॒ इत्य॑प्सु॒ऽसदे॑। वेट्। ब॒र्हि॒षदे॑। ब॒र्हि॒सद इति॑ बर्हि॒ऽसदे॑। वेट्। व॒न॒सद॒ इति॑ वन॒ऽसदे॑। वेट्। स्व॒र्विद॒ इति॑ स्वः॒ऽविदे॑। वेट् ॥१२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नृषदे वेडप्सुषदे वेड्बर्हिषदे वेड्वनसदे वेट्स्वर्विदे वेट् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नृषदे। नृसद इति नृऽसदे। वेट्। अप्सुषदे। अप्सुसद इत्यप्सुऽसदे। वेट्। बर्हिषदे। बर्हिसद इति बर्हिऽसदे। वेट्। वनसद इति वनऽसदे। वेट्। स्वर्विद इति स्वःऽविदे। वेट्॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    Translation -
    Dedication (vet) to Him, who resides in men. (1) Dedication (vet) to Him, who resides in waters. (2) Dedication (vet) to Him, who resides in the sacrifice. (3) Dedication (vet) to Him, who resides in forests. (4) Dedication (vet) to Him, who bestows light. (5)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top