Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 17

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 12
    ऋषिः - लोपामुद्रा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृद गायत्री स्वरः - षड्जः
    82

    नृ॒षदे॒ वेड॑प्सु॒षदे॒ वेड् ब॑र्हि॒षदे॒ वेड् व॑न॒सदे॒ वेट् स्व॒र्विदे॒ वेट्॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नृ॒षदे॑। नृ॒सद॒ इति॑ नृ॒ऽसदे॑। वेट्। अ॒प्सु॒षदे॑। अ॒प्सु॒सद॒ इत्य॑प्सु॒ऽसदे॑। वेट्। ब॒र्हि॒षदे॑। ब॒र्हि॒सद इति॑ बर्हि॒ऽसदे॑। वेट्। व॒न॒सद॒ इति॑ वन॒ऽसदे॑। वेट्। स्व॒र्विद॒ इति॑ स्वः॒ऽविदे॑। वेट् ॥१२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नृषदे वेडप्सुषदे वेड्बर्हिषदे वेड्वनसदे वेट्स्वर्विदे वेट् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नृषदे। नृसद इति नृऽसदे। वेट्। अप्सुषदे। अप्सुसद इत्यप्सुऽसदे। वेट्। बर्हिषदे। बर्हिसद इति बर्हिऽसदे। वेट्। वनसद इति वनऽसदे। वेट्। स्वर्विद इति स्वःऽविदे। वेट्॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तदेवाह॥

    अन्वयः

    हे सभेश! त्वं नृषदे वेड् भवाप्सुषदे वेड् भव। बर्हिषदे वेड् भव, वनसदे वेड् भव, स्वर्विदे च वेड् भव॥१२॥

    पदार्थः

    (नृषदे) यो नायकेषु सीदति तस्मै (वेट्) यो न्यायासने विशति सः। अत्र विशधातोः अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते [अष्टा॰३.२.७५] इति विच् प्रत्ययः (अप्सुषदे) यो जलेषु नौकादिषु सीदति तस्मै (वेट्) (बर्हिषदे) यः प्रजाया वर्धके व्यवहारे तिष्ठति तस्मै (वेट्) अधिष्ठाता (वनसदे) यो वनेषु सीदति तस्मै (वेट्) (स्वर्विदे) यः सुखं वेत्ति तस्मै (वेट्)॥१२॥

    भावार्थः

    यस्मिन् देशे न्यायाधीशनौयायिप्रजावर्द्धकारण्यस्थनायकसुखप्रापका विद्वांसो वर्त्तन्ते, तत्रैव सर्वाणि सुखानि वर्द्धन्ते॥१२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे सभापते! आप (नृषदे) नायकों में स्थिर पुरुष होने के लिये (वेट्) न्यायासन पर बैठने (अप्सुषदे) जलों के बीच नौकादि में स्थिर होने वाले के लिये (वेट्) न्याय गद्दी पर बैठने (बर्हिषदे) प्रजा को बढ़ानेहारे व्यवहार में स्थिर होने के लिये (वेट्) अधिष्ठाता होने (वनसदे) वनों में रहने वाले के लिये (वेट्) न्याय में प्रवेश करने और (स्वर्विदे) सुख को जाननेहारे के लिये (वेट्) उत्साह में प्रवेश करने वाले हूजिये॥१२॥

    भावार्थ

    जिस देश में न्यायधीश, नौकाओं के चलाने, प्रजा को बढ़ाने, वन में रहने, सेनादि के नायक और सुख पहुँचानेहारे विद्वान् होते हैं, वहीं सब सुखों की वृद्धि होती है॥१२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राजा के तेज, बल और प्रभाव का आदर । उच्च मान, आदर प्रदान ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! ( नृषदे ) मनुष्यों के बीच में जिस प्रकार प्राण विराजता है, उसी प्रकार प्रिय होकर ( नृषदे ) सब मनुष्यों के बीच में बैठने वाले तुझको ( वेट ) यह मान आदर प्राप्त हो । ( अप्सुषदे) समुद्रों में और्वानल के समान प्रजाओं के बीच ग्लानि रहित होकर विराजने वाले तुझको (वेट् ) उच्च आसन प्राप्त हो । ( बर्हिषदे ) यज्ञ में प्रज्वलित अग्नि के समान अथवा ओषधियों में विद्यमान रस रूप अग्नि के समान प्रजा या राष्ट्र शरीर के दोषों को नाश करने वाले तुझको ( वेट् ) अधिष्ठातृपद प्राप्त हो । ( वनसदे ) वनों, जंगलों में लगने वाली दावाग्नि के समान सर्वस्व भस्म कर देने वाले तुझको ( वेट् ) उग्र पद का अधिकार प्राप्त हो । ( स्वर्विदे ) आकाश में विद्यमान सूर्य के समान सबको सुख पहुंचाने वाले तुझको ( वेट् ) उच्च तेजस्वी पद प्राप्त हो । शत० ९ । २ । १ । ८ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृद्गायत्री । षड्जः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ब्रह्मचर्य से ब्रह्म'

    पदार्थ

    १. प्रस्तुत मन्त्र में 'लोपामुद्रा' बनने के लिए मार्ग बताया है कि अपनी जीवन-यात्रा की प्रथम मंज़िल में (नृषदे) = [नृषु सीदति] नायकों में स्थित होनेवाले के लिए आगे ले चलनेवाले माता-पिता व आचार्यों में स्थित होनेवाले के लिए, अर्थात् पूर्णरूप से उनकी आज्ञा में चलनेवाले के लिए (वेट्) = हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं । २. (अप्सुषदे) = अब गृहस्थ में आने पर निरन्तर कर्मों में आसीन होनेवाले के लिए, अर्थात् उस गृहस्थ के लिए जो कि कुटुम्ब - भरण का सतत पुरुषार्थ करता है, जिसको आलस्य छू भी नहीं गया उस गृहस्थ का (वेट्) = हम आदर करते हैं। ३. अब वानप्रस्थाश्रम में (बर्हिषदे) = वासना - शून्य हृदय में स्थित होनेवाले के लिए (वेट्) = हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। जिसमें वासनाओं का उद्बर्हण कर दिया गया है वही हृदय बर्हि कहलाता है। एक वानप्रस्थ का सतत प्रयत्न यही होता है कि वह अपने हृदय को वासनाओं से शून्य बना सके। ४. (वनसदे) = [वननं-वन:- संभजन ] सदा सम्भजन में स्थित होनेवाले संन्यासी के लिए हम (वेट्) = आदर के शब्द कहते हैं। यह संन्यासी प्रतिक्षण परमेश्वर का स्मरण करता है। अपनी सब क्रियाओं को करते हुए इसके मुख में प्रभु का नाम ही उच्चरित होता रहता है। ५. यह संन्यासी (स्वर्विदे) = उस स्वयं देदीप्यान प्रभु को प्राप्त करनेवाला [विद् लाभे, स्वयं राजते इति स्वर:] होता है। इस प्रभु को प्राप्त करनेवाले संन्यासी के लिए (वेट्) = हम आदर के शब्द कहते हैं । ६. इस प्रकार जीवन-यात्रा को क्रमशः पूर्ण करता हुआ यह व्यक्ति अपनी छोटी उम्र में माता-पिता व आचार्य में स्थित होता है। आगे चलकर सदा क्रियाशील बनता है। फिर वासनाओं के उखाड़ने में लगकर यह सतत उस प्रभु का भजन करता है। यही व्यक्ति हम सबके आदर का पात्र होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम 'नृषद्, अप्सुषद्, बर्हिषद्, वनसद् तथा स्वर्वित् का आदर करते हैं । '

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्या देशात न्यायाधीश, नाविक, प्रजेची उन्नती करणारे लोक, वनात राहणारे लोक, तसेच सेनेचे नायक, सुखी करणारे विद्वान असतात तेथेच सर्व प्रकारच्या सुखांची वाढ होते.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुढील मंत्रात तोच विषय (न्यायाधीश, सभापती यांची कर्तव्ये) प्रतिपादित आहे –

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (प्रजाजन म्हणतात) हे सभापती (न्यायाधीश वा राष्ट्राध्यक्ष) आपण (नृषदे) नायक (सरदार, विभागाध्यक्ष आदी) च्या सभेत प्रमुख पुरुष आहात. (वेट्) न्यायासनावर बसण्यास आणि (अप्सुषदे) पाण्यावर चालणाऱ्या वाहनांचे नियंत्रक असून त्याविषयीच्या (वेट्) न्यायप्रकरणात निर्णय देणारे आहात. (बर्हिषदे) प्रजेच्या उत्कर्षासाठी कटिबद्ध व त्याविषयी (वेट्) सक्षम अधिकारी आहात तसेच आपण (वनसदे) वनवासी लोकांसाठी (वेट्) योग्य ते न्याय देण्यास (वा त्यांच्या प्रगतीसाठी कार्य करण्यात) समर्थ आहात. म्हणून आपणास विनंती की (स्वर्विदे) सुख इच्छिणाऱ्या मनुष्यांनाकरिता तुम्ही (वेट्) उत्साह व प्रेरणा देणारे व्हा ॥12॥

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्या देशात न्यायाधीश (सभापती व राष्ट्राध्यक्ष) नौकानयन-आनयम, प्रजेचा उत्कर्ष, यासाठी जागरूक असतात, तसेच वनवासी लोक आणि सैन्यधिकारी जनांसाठी सुखसोयी करणारे असतात, या देशात सुख व आनंद यांची वृद्धी सतत होत असते ॥12॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O King, the leader of men, occupy the seat of justice. Administer justice unto sailors in ships. Thou art the chief for improving thy subjects. Be thou a dweller in the solitude of forests, and a lover of justice. Be thou the enjoyer of pleasure, full of perseverance.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Homage to Agni, lord present in and presiding over humanity. Homage to the lord present in and ruling over the waters. Homage to the lord governing within and over the business of society. Homage to the lord present in and ruling over the forests. Homage to the lord creator and giver of the joy of life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Dedication (vet) to Him, who resides in men. (1) Dedication (vet) to Him, who resides in waters. (2) Dedication (vet) to Him, who resides in the sacrifice. (3) Dedication (vet) to Him, who resides in forests. (4) Dedication (vet) to Him, who bestows light. (5)

    Notes

    Vet,वेट् शब्द: स्वाहाकारार्थ: , vet means svāhā; I offer this oblation to you. प्रत्यक्षं स्वाहाकारः, परोक्षं वेट्कारः, svāhā for him who is present; vet for him who is not present. Nṛṣade, to him, who dwells in men. Apsuşade, to him who resides in water. Barhiḥ, the sacrifice; also, ओषधि:, plants. Vanam, वृक्ष-समूह:, forest. Svarvide, स्वः प्रकाशं सुखं वा वेत्ति प्रापयति यः तस्मै, to one who bestows light or bliss. 'प्राणो वै नृषत्', the vital breath is the fire residing in men (Śatapatha, IX. 2. 1. 8).

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তদেবাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে সভাপতে! আপনি (নৃষদে) নায়কদিগের মধ্যে স্থির পুরুষ হওয়ার জন্য (বেট্) ন্যায়াসনোপরি বসিবার জন্য, (অপ্সুষদে) জলের মধ্যে নৌকাদিতে স্থির থাকার জন্য (বেট্) ন্যায়গদিতে বসিবার জন্য, (বর্হিষদে) প্রজাবৃদ্ধি করিবার ব্যবহারে স্থির হওয়ার জন্য, (বেট্) অধিষ্ঠাতা হওয়ার জন্য, (বনসদে) বনে নিবাস কারীদের জন্য, (বেট্) ন্যায়ে প্রবেশ করিবার জন্য এবং (স্বর্বিদে) সুখ জ্ঞাতা হইবার জন্য (বেট্) উৎসাহে প্রবেশকারী হউন ॥ ১২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যে দেশে ন্যায়াধীশ, নৌকাচালক, প্রজাবৃদ্ধিকারী, বনে নিবাসকারী, সেনাদির নায়ক এবং সুখ উপস্থিত কারী বিদ্বান্ হয় তথায় সকল সুখের বৃদ্ধি হয় ॥ ১২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    নৃ॒ষদে॒ বেড॑প্সু॒ষদে॒ বেড্ ব॑র্হি॒ষদে॒ বেড্ ব॑ন॒সদে॒ বেট্ স্ব॒র্বিদে॒ বেট্ ॥ ১২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    নৃষদ ইত্যস্য লোপামুদ্রা ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদ্গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top