यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 49
ऋषिः - अप्रतिरथ ऋषिः
देवता - सोमवरुणादेवा देवताः
छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
117
मर्मा॑णि ते॒ वर्म॑णा छादयामि॒ सोम॑स्त्वा॒ राजा॒मृते॒नानु॑ वस्ताम्। उ॒रोर्वरी॑यो॒ वरु॑णस्ते कृणोतु॒ जय॑न्तं॒ त्वानु॑ दे॒वा म॑दन्तु॥४९॥
स्वर सहित पद पाठमर्मा॑णि। ते॒। वर्म॑णा। छा॒द॒या॒मि॒। सोमः॑। त्वा॒। राजा॑। अ॒मृते॑न। अनु॑। व॒स्ता॒म्। उ॒रोः। वरी॑यः। वरु॑णः। ते॒। कृ॒णो॒तु॒। जय॑न्तम्। त्वा॒। अनु॑। दे॒वाः। म॒द॒न्तु॒ ॥४९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मर्माणि ते वर्मणा छादयामि सोमस्त्वा राजामृतेनानु वस्ताम् । उरोर्वरीयो वरुणस्ते कृणोतु जयन्तन्त्वानु देवा मदन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठ
मर्माणि। ते। वर्मणा। छादयामि। सोमः। त्वा। राजा। अमृतेन। अनु। वस्ताम्। उरोः। वरीयः। वरुणः। ते। कृणोतु। जयन्तम्। त्वा। अनु। देवाः। मदन्तु॥४९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे योद्धः शूरवीर! अहं ते मर्माणि वर्मणा छादयामि। अयं सोमो राजाऽमृतेन त्वानुवस्ताम्। वरुणस्त उरोर्वरीयः कृणोतु, जयन्तं त्वा देवा अनु मदन्तु॥४९॥
पदार्थः
(मर्माणि) यानि ताडितानि सन्ति सद्यो मरणजनकान्यङ्गानि (ते) तव (वर्मणा) देहरक्षकेन (छादयामि) अपवृणोमि (सोमः) सोम्यगुणैश्वर्यसम्पन्नः (त्वा) त्वाम् (राजा) विद्यान्यायविनयादिभिः प्रकाशमानः (अमृतेन) सर्वरोगनिवारकेणामृतात्मकेनौषधेन (अनु) पश्चात् (वस्ताम्) आच्छादयताम् (उरोः) बहुगुणैश्वर्यात् (वरीयः) अतिशयितं बह्वैश्वर्यम् (वरुणः) सर्वत उत्कृष्टः (ते) तुभ्यम् (कृणोतु) (जयन्तम्) दुष्टान् पराजयन्तम् (त्वा) त्वाम् (अनु) (देवाः) विद्वांसः (मदन्तु) उत्साहयन्तु॥४९॥
भावार्थः
सेनापत्यादिभिः सर्वेषां योद्धॄणां शरीरादिरक्षणं सर्वतः कृत्वैते सततं प्रोत्साहनीया अनुमोदनीयाश्च, यतो विश्वतो विजयं लभेरन्॥४९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे युद्ध कराने वाले शूरवीर! मैं (ते) तेरे (मर्माणि) मर्मस्थलों अर्थात् जो ताड़ना किये हुए शीघ्र मरण उत्पन्न करनेवाले शरीर के अङ्ग हैं, उनको (वर्मणा) देह की रक्षा करनेहारे कवच से (छादयामि) ढांपता हूं। यह (सोमः) शान्ति आदि गुणों से युक्त और (राजा) विद्या, न्याय तथा विनय आदि गुणों से प्रकाशमान राजा (अमृतेन) समस्त रोगों के दूर करने वाली अमृतरूप ओषधि से (त्वा) तुझ को (अनु, वस्ताम्) पीछे ढांपे (वरुणः) सबसे उत्तम गुणों वाला राजा (ते) तेरे (उरोः) बहुत गुण और ऐश्वर्य से भी (वरीयः) अत्यन्त ऐश्वर्य को (कृणोतु) करे तथा (जयन्तम्) दुष्टों को पराजित करते हुए (त्वा) तुझे (देवाः) विद्वान् लोग (अनु, मदन्तु) अनुमोदित करें अर्थात् उत्साह देवें॥४९॥
भावार्थ
सेनापति आदि को चाहिये कि सब युद्धकर्त्ताओं के शरीर आदि की रक्षा सब ओर से करके इन को निरन्तर उत्साहित और अनुमोदित करें, जिससे निश्चय करके सब से विजय को पावें॥४९॥
विषय
वर्भ, अनौषधि से रक्षा ।
भावार्थ
हे वीर योद्धा, क्षत्रिय ! इन्द्र ! पुरुष ! ( ते ) तेरे ( मर्माणि ) आघात लगने से मृत्युजनक कोमल मर्मस्थानों को ( वर्मणा ) आघात से बचाने वाले कवच से ( छादयामि ) ढकता हूं । ( राजा सोमः ) सौम्य गुण, दया आदि से युक्त अथवा ऐश्वर्यवान् राजा ( त्वा ) तुझको ( अमृतेन ) सर्व निवारक औषधि और अन्न से ( अनु वस्ताम् ) तुझे ढके, तेरी रक्षा करे । ( वरुणः ) सर्वश्रेष्ठ राजा ही ( ते ) तुझे ( उरो : वरीयः ) बहुत से बहुत अधिक धन ( कृणोतु ) प्रदान करे । और ( जयन्तं त्वा ) विजय करते हुए तुझे देख कर ( देवाः ) विजयशील सैनिक भी ( अनु मदन्तु ) तेरे साथ प्रहर्षित हों या धनादि विजय लक्ष्मी से तृप्त हों ।
टिप्पणी
४९ - १. अथवा अत्र क्षत्रिय एव देवता । तस्य सम्बोध्यत्वेनात्रप्रधानत्वादिति याज्ञि कोऽनन्तदेवः ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सोमो वरुणो देवाश्व लिंगोक्ता लिंगोक्तः क्षत्रियो वा देवता । आर्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
वर्म [कवच] छादन
पदार्थ
१. इस वासना - संग्राम में (ते मर्माणि) = तेरे मर्मस्थलों को (वर्मणा) = कवच से (छादयामि) = आच्छादित करता हूँ। 'ब्रह्म वर्म ममान्तरम्' इस मन्त्र में 'ब्रह्म' [ज्ञान] ही आन्तर कवच है। इस ज्ञानरूप कवच को पहन लेने पर वासनाओं के आक्रमण का भय जाता रहता है। इस ज्ञानरूप कवच पर टकरा कर वासना-शर टूट जाते हैं और हमारे हृदय-मर्म को विद्ध नहीं कर पाते। २. (त्वा) = तुझे (राजा) = स्वास्थ्य के द्वारा शरीर की दीप्ति देनेवाला (सोमः) = वीर्य (अमृतेन) = रोगों के अभाव से (अनु वस्ताम्) = अनुकूलता से आच्छादित करे। वासना-शरों से हृदय के विद्ध न होने पर शरीर में सोम सुरक्षित रहता है और यह सुरक्षित सोम हमारे शरीरों को रोगाक्रान्त नहीं होने देता। ३. अब वरुणः-शरीर से रोगों को निवारण करनेवाली तथा मनों से द्वेष का दूरीकरण करनेवाली देवता (ते) = तुझे व तेरे हृदय को (उरोर्वरीयः) = विशाल से भी विशाल (कृणोतु) = करे, तेरे हृदय को विशाल बनाए । ईर्ष्या-द्वेषादि की भावनाएँ मन को संकुचित करती हैं। साथ ही रोग भी मनुष्य को खिझनेवाला व असहिष्णु बना देते हैं। ४. इस प्रकार द्वेषादि का निवारण करनेवाले (जयन्तम्) = शत्रुओं को जीतनेवाले (त्वा) = तुझे (देवाः अनुमदन्तु) सब देव हर्षित करें। तेरे अन्दर दिव्य गुणों का विकास हो और ये दिव्य गुण तेरे मनःप्रसाद का कारण बनें।
भावार्थ
भावार्थ - १. हम ज्ञान के कवच को धारण कर वासना-शरों से अभेद्य हों । २.वीर्य - रक्षा से शरीर को नीरोग बनाएँ। ३. द्वेष-निवारण से हमारा हृदय विशाल हो। ४. दिव्य गुण हमारे जीवन को आनन्दमय बनाएँ ।
मराठी (2)
भावार्थ
सेनापती इत्यादींनी सर्व युद्धवीरांच्या शरीरांचे रक्षण करावे व त्यांना सदैव उत्साहित करावे. त्यांना पािEठबा द्यावा. त्यामुळे ते निश्चितपणे विजय प्राप्त करतील.
विषय
पुढील मंत्रात, तोच विषय-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (सेनाधिकारी आपल्या चमूतील, सैनिकाला उद्देशून म्हणत आहे) हे युद्धासाठी सज्ज होणाऱ्या वीर सैनिका, मी (तुझा चमूप्रमुख) (ते) तुझ्या शरीरातील जी (मर्माणि) मर्मस्थळें आहेत म्हणजे ज्या अवयवावर मार लागल्यानंतर मृत्यू संभवतो, अशा तुझ्या शरीरअवयवांना (वर्मणा) शरीररक्षणाचे साधन जो कवच, त्या कवचाद्वारे (छादयामि) झाकून घेतो (तुझे मर्मस्थळ सुरक्षित करतो) त्यानंतर (सोम:) शान्ती आदी सद्गुणांनी तसेच (राजा) विद्या न्याय व विनय, यांनी कीर्तिमान असा राजा (अमृतेन) समस्त रोगनिवारक अमृतमय औषधीद्वारा (त्वा) तुला अनु, वस्ताम्) सक्षेम, वा नीरोग करो. तो (वरूण:) सर्वोत्तम सद्गुणी राजा (उरो:) अनेक गुणांनी व ऐश्वर्याद्वारे (ते) तुला (वंरीय:) अधिकाधिक ऐश्वर्यसंपन्न ) (कृणोतु) करो. (सैन्याधिकाऱ्यांने सैनिकाला अस्त्र-शस्त्रांसह सुरक्षेची कवच आदी साधने पुरवावीत. तसेच सैनिक युद्धात जखमी झाला, तर औषधोपचार करावा आणि वीरत्व गाजविलेल्या सैनिकांना धन पुरस्कार आदी देऊन त्यांचा सन्मान करावा ॥49॥
भावार्थ
भावार्थ- सैन्य प्रमुखांनी सर्व योद्धा सैनिकांसाठी शरीररक्षणाची साधने पुरवावीत आणि त्या सैनिकांना निरंतर उत्साह व अनुमोदन देत रहावे की ज्यायोगे ते दृढनिश्चयी होऊन युद्धात अवश्यमेव विजय प्राप्त करतील. ॥49॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O valiant warrior, thy vital parts I cover with armour. May this calm, considerate king protect thee with efficacious medicine. May the exalted King give thee what is more than ample. May the learned encourage thee in thy triumph over the wicked.
Meaning
Noble warrior, victorious hero, I cover your vital limbs with a protective armour. May Soma, lord of health and well-being, ruler of all, wrap you round in happiness and immortality. May Varuna, lord supreme, grant you honour greater than greatness itself. May all the noble powers of the earth bless you with joy, victorious one.
Translation
I cover your vital parts with armour; may the royal Lord of bliss invest you with ambrosia; may the venerable Lord give you what is more than ample; may the divinities rejoice in your victory. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে যুদ্ধ করাইবার শূরবীর! আমি (তে) তোমার (মর্মাণি) মর্মস্থলগুলি অর্থাৎ যে সব তাড়িত শীঘ্র মৃত্যু উৎপন্নকারী শরীরের অঙ্গ তাহাদেরকে (বর্মণা) দেহ রক্ষাকারী কবচ দ্বারা (ছাদয়ামি) আচ্ছাদন করি । ইহা (সোমঃ) শান্তি আদি গুণযুক্ত (রাজা) এবং বিদ্যা, ন্যায় তথা বিনয়াদি গুণ দ্বারা প্রকাশমান রাজা (অমৃতেন) সমস্ত রোগ দূরকারিণী অমৃতরূপ ওষধি দ্বারা (ত্বা) তোমাকে (অনু, বস্তাম্) পশ্চাৎ আচ্ছাদন করিবে, (বরুণঃ) সর্বাপেক্ষা উত্তম গুণযুক্ত রাজা (তে) তোমার (উরোঃ) বহু গুণ এবং ঐশ্বর্য্য হইতে ও (স্বীয়ঃ) অত্যন্ত ঐশ্বর্য্য (কৃণোতু) বৃদ্ধি করিবে তথা (জয়ন্তম্) দুষ্টদিগকে পরাজিত করিয়া (ত্বা) তোমাকে (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ (অনু, মদন্তু) অনুমোদন করুক অর্থাৎ উৎসাহ প্রদান করুক ॥ ৪ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–সেনাপতি আদির উচিত যে, সমস্ত যুদ্ধকর্ত্তাদের শরীর আদির রক্ষা সকল দিক দিয়া করিয়া ইহাদেরকে সর্বদা উৎসাহিত এবং অনুমোদিত করিবে যাহাতে নিশ্চয় করিয়া সকলের হইতে বিজয় লাভ করে ॥ ৪ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
মর্মা॑ণি তে॒ বর্ম॑ণা ছাদয়ামি॒ সোম॑স্ত্বা॒ রাজা॒মৃতে॒নানু॑ বস্তাম্ ।
উ॒রোর্বরী॑য়ো॒ বর॑ুণস্তে কৃণোতু॒ জয়॑ন্তং॒ ত্বানু॑ দে॒বা ম॑দন্তু ॥ ৪ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
মর্মাণীত্যস্যাপ্রতিরথ ঋষিঃ । সোমবরুণদেবা দেবতাঃ । আর্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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