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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 46
    ऋषिः - अप्रतिरथ ऋषिः देवता - योद्वा देवता छन्दः - विराडार्ष्यनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    94

    प्रेता॒ जय॑ता नर॒ऽइन्द्रो॑ वः॒ शर्म॑ यच्छतु। उ॒ग्रा वः॑ सन्तु बा॒हवो॑ऽनाधृ॒ष्या यथास॑थ॥४६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र। इ॒त॒। जय॑त। न॒रः॒। इन्द्रः॑। वः॒। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। उ॒ग्राः। वः॒। स॒न्तु॒। बा॒हवः॑। अ॒ना॒धृ॒ष्याः। यथा॑। अस॑थ ॥४६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रेता जयता नरऽइन्द्रो वः शर्म यच्छतु । उग्रा वः सन्तु बाहवो नाधृष्या यथासथ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। इत। जयत। नरः। इन्द्रः। वः। शर्म। यच्छतु। उग्राः। वः। सन्तु। बाहवः। अनाधृष्याः। यथा। असथ॥४६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 46
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे नरः! यूयं यथा शत्रूनित जयत, इन्द्रो वः शर्म प्रयच्छतु, वो बाहव उग्राः सन्तु। अनाधृष्या असथ तथा प्रयतध्वम्॥४६॥

    पदार्थः

    (प्र) (इत) शत्रून् प्राप्नुत। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अष्टा॰६.३.१३५] इति दीर्घः (जयत) विजयध्वम्। अत्र अन्येषामपि दृश्यते [अष्टा॰६.३.१३७] इति दीर्घः (नरः) नायकाः (इन्द्रः) शत्रूणां दारयिता सेनापतिः (वः) युष्मभ्यम् (शर्म) गृहम् (यच्छतु) ददातु (उग्राः) दृढाः (वः) युष्माकम् (सन्तु) (बाहवः) भुजाः (अनाधृष्याः) शत्रुभिर्धर्षितुमयोग्याः (यथा) (असथ) भवत॥४६॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। ये शत्रूणां विजेतारो वीरास्स्युस्तान् सेनापतिर्धनान्नगृहवस्त्रादिभिः सततं सत्कुर्यात्, सेनास्था जनाश्च यथा बलिष्ठाः स्युस्तथा व्यवहरेयुः॥४६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (नरः) अनेक प्रकार के व्यवहारों को प्राप्त करने वाले मनुष्यो! तुम (यथा) जैसे शत्रुजनों को (इत) प्राप्त होओ, उन्हें (जयत) जीतो तथा (इन्द्रः) शत्रुओं को विदीर्ण करने वाला सेनापति (वः) तुम लोगों के लिये (शर्म्म) घर (प्र, यच्छतु) देवे (वः) तुम्हारी (बाहवः) भुजा (उग्राः) दृढ़ (सन्तु) हों और (अनाधृष्याः) शत्रुओं से न धमकाने योग्य (असथ) होओ, वैसा प्रयत्न करो॥४६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो शत्रुओं को जीतने वाले वीर हों, उनका सेनापति धन, अन्न, गृह और वस्त्रादिकों से निरन्तर सत्कार करे तथा सेनास्थ जन जैसे बली हों, वैसा व्यवहार अर्थात् व्यायाम और शस्त्र-अस्त्रों का चलाना सीखें॥४६॥

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    विषय

    उग्र अजेय सैनिक ।

    भावार्थ

    हे ( नरः ) वीर नेता पुरुषो ! ( प्र इत ) आगे बढ़ो | ( जयत ) विजय करो | ( इन्दः ) शत्रुओं का नाशक सेनापति ( वः ) तुमको ( शर्म ) गृह या रक्षा का साधन ( यच्छतु ) दे । ( वः ) तुम्हारे (बाहवः) बाहुएं या शत्रुओं को पीड़ा देने वाले हथियार ( उग्रा: ) उग्र, बड़े बलवान्, भयकारी हों । ( यथा ) जिससे तुम लोग ( अनाधृष्याः ) शत्रु से कभी पछाड़ न खाने वाले ( असथ ) बने रहो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    योद्धारो देवता । विराडनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    प्रेत जयत-आगे बढ़ो, जीतो

    पदार्थ

    १. पिछले मन्त्र की भावना के अनुसार हमारे जीवन का लक्ष्य बनता है 'वासनाओं का समूल उन्मूलन'। यह वासनाओं का उन्मूलन करनेवाला व्यक्ति न रम्' है, 'न रम्'=न फँस जानेवाला। प्रभु कहते हैं कि हे (नराः) = [नृ नये] अपने को आगे ले चलनेवाले मनुष्यो ! प्रेत-आगे बढ़ो। वासनाएँ तुम्हारी उन्नति को विहत न कर दें। (जयत) = इन वासनाओं को जीतनेवाले बनो । इनको जीते बिना यात्रा की पूर्ति सम्भव नहीं । २. (इन्द्रः) = शक्ति के सब कार्यों को करनेवाला वह प्रभु (वः) = तुम्हें इन वासनाओं के संहार के द्वारा (शर्म) = कल्याण (यच्छतु) = प्राप्त कराए। वासनाओं से होनेवाले विनाश से प्रभु ही तुम्हें बचाएँगे । ३. (वः बाहवः) = तुम्हारी भुजाएँ (उग्रः) = तेजस्वी हों। 'बाह्र प्रयत्ने' = तुम्हारे प्रयत्न भी बड़े उग्र होने चाहिएँ, क्योंकि इन वासनाओं का विनाश कोई सुगम कार्य नहीं है। प्रभु की सहायता के बिना इन्हें तुम जीत ही न सकोगे और 'उत्तम प्रयत्नों में लगे रहना' यह वासना-विजय के लिए आवश्यक है । ४. इसी से मन्त्र में कहते हैं कि सदा उत्तम प्रयत्नों में लगे रहो (यथा) = जिससे (अनाधृष्या:) = वासनाओं से न धर्षण के योग्य (असथ) = हो सको। काम में न लगे हुए व्यक्तियों को ही वासनाएँ सताती हैं। क्रियाशील का ये धर्षण नहीं कर पातीं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें, विघ्नों को जीतें। प्रयत्न में लगे रहें, जिससे वासनाओं का शिकार न हों। प्रयत्न में लगे हुए को प्रभु भी कल्याण प्राप्त कराते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. सेनापतीने शत्रूंना जिंकणाऱ्या वीर पुरुषांचा धन, अन्न, घर, वस्त्र देऊन सतत सत्कार करावा. सेनेतील लोकांची जशी शक्ती असेल तसा त्यांना व्यायाम व अस्त्रशस्त्र चालविणे शिकवावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रात तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (नर:) (सैन्यातील) अनेक कामें करणाऱ्या कर्मचारीगण वा यांत्रिकजनहो, तुम्ही (यथा) ज्या पद्धतीने शत्रूपक्षाला (पराभूत करू शकाल) (इत) ते सर्व करा आणि (जमत) विजय प्राप्त करा. (इन्द्र:) शत्रूंना विर्दीर्ण करणारा तुमचा सेनापती (व:) तुम्हां लोकांकरिता (शर्म्म) राहण्यासाठी चांगले घर (प्र, यच्छतु) देतो. (व:) तुमच्या (बाहव:) दोन्ही बाहू (उग्रा:) दृढ व भयकारक (सन्तु) असाव्यात आणि (अनाधृष्या:) तुम्ही शत्रूपासून कधीही भय मानू नका (अथवा तुमचा एवढा दरारा असावा की तुम्हाला भयभीत करण्याचा विचार देखील शत्रूच्या मनात कधी येऊ नये ॥46॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. जे वीर सैनिक शत्रूंना जिंकून येतील, सेनापतीने त्या विजयी वीरांचा धन, अन्न, गृह, वस्त्र आदी देऊन नेहमी सत्कार गौरव करावा. तसेच ज्याप्रमाणे सैनिकगण आधिक बली होतील, ते सर्व करावे म्हणजे त्यांच्यासाठी व्यायामशाळा, अस्त्र-शस्त्र प्रशिक्षण शिबीरे आदींचे आयोजन करावे ॥46॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Advance, O heroes, win the day. May the commander of the army provide ye with shelter, food and clothes, Exceeding mighty be your arms, that none may threaten or injure you.

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    Meaning

    Valiant warriors, go, advance and win. May Indra grant you victory and joy. May your arms be strong and bold so that no one may be able to challenge you and you remain free and invincible.

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    Translation

    Move forward, men, and win. May the resplendent one (the army-chief) give joy to you. Let your arms be fierce and mighty, so that you remain always indomitable. (1)

    Notes

    Marutaḥ, brave soldiers. Here the soldiers are asked to cover the opposing army with darkness. Use of some gases or smoke-screen appears to be indicated, which tallies with maruts, who have some connection with the elemental air or the wind.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (নঃ) বহু প্রকার ব্যবহার প্রাপ্তিকারী মনুষ্যগণ! তোমরা (য়থা) যেমন শত্রুগণকে (ইত) প্রাপ্ত হও, তাহাদিগকে (জয়ত) জিতিয়া লও, তথা (ইন্দ্রঃ) শত্রুদিগকে বিদীর্ণকারী সেনাপতি (বঃ) তোমাদিগের জন্য (শর্ম্ম) গৃহ (প্র, য়চ্ছতু) দিবে, (বঃ) তোমাদিগের (বাহবঃ) ভুজ (উগ্রাঃ) দৃঢ় (সন্তু) হউক এবং (অনাধৃষ্যাঃ) শত্রুদিগের দ্বারা তিরস্কারের যোগ্য হইও না, সেইরূপ প্রযত্ন কর ॥ ৪৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যাহারা শত্রুদিগকে জয়কারী বীর হইবে তাহাদিগের সেনাপতি ধন, অন্ন, গৃহ এবং বস্ত্রাদি দ্বারা নিরন্তর সৎকার করিবে তথা সেনাস্থ ব্যক্তিগণ যেমন বলী হইবে তদ্রূপ ব্যবহার অর্থাৎ ব্যায়াম ও অস্ত্র-শস্ত্র চালনা শিখিবে ॥ ৪৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    প্রেতা॒ জয়॑তা নর॒ऽইন্দ্রো॑ বঃ॒ শর্ম॑ য়চ্ছতু ।
    উ॒গ্রা বঃ॑ সন্তু বা॒হবো॑ऽনাধৃ॒ষ্যা য়থাস॑থ ॥ ৪৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    প্রেতা জয়তেত্যস্যাপ্রতিরথ ঋষিঃ । য়োদ্ধা দেবতা । বিরাডার্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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