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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 32
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - स्वराडार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    138

    वि॒श्वक॑र्मा॒ ह्यज॑निष्ट दे॒वऽआदिद् ग॑न्ध॒र्वोऽअ॑भवद् द्वि॒तीयः॑। तृ॒तीयः॑ पि॒ता ज॑नि॒तौष॑धीनाम॒पां गर्भं॒ व्यदधात् पुरु॒त्रा॥३२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्वऽक॑र्मा। हि। अज॑निष्ट। दे॒वः। आत्। इत्। ग॒न्ध॒र्वः। अ॒भ॒व॒त्। द्वि॒तीयः॑। तृ॒तीयः॑। पि॒ताः। ज॒नि॒ता। ओष॑धीनाम्। अ॒पाम्। गर्भ॑म्। वि। अ॒द॒धा॒त्। पु॒रु॒त्रेति॑ पुरु॒ऽत्रा ॥३२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वकर्मा ह्यजनिष्ट देवऽआदिद्गन्धर्वोऽअभवद्द्वितीयः । तृतीयः पिता जनितौषधीनामपाङ्गर्भम्व्यदधात्पुरुत्रा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वऽकर्मा। हि। अजनिष्ट। देवः। आत्। इत्। गन्धर्वः। अभवत्। द्वितीयः। तृतीयः। पिताः। जनिता। ओषधीनाम्। अपाम्। गर्भम्। वि। अदधात्। पुरुत्रेति पुरुऽत्रा॥३२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 32
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! अत्र जगति विश्वकर्मा देवो वायुरादिम इदभवदादनन्तरं गन्धर्वोऽजनिष्टौषधीनामपां पिता हि द्वितीयो यो गर्भं व्यदधात्, स पुरुत्रा जनिता पर्जन्यः तृतीयोऽभवदिति भवन्तो विदन्तु॥३२॥

    पदार्थः

    (विश्वकर्मा) विश्वानि सर्वाणि शुभानि कर्माणि यस्य सः (हि) खलु (अजनिष्ट) जनितवान् (देवः) दिव्यस्वरूपः (आत्) (इत्) (गन्धर्वः) गां पृथिवीं धरति स सूर्यः सूत्रात्मा वायुर्वा (अभवत्) भवति (द्वितीयः) द्वयोः संख्यापूरको धनञ्जयः (तृतीयः) त्रयाणां संख्यापूरक प्राणादिस्वरूपः (पिता) पालकः (जनिता) प्रसिद्धिकर्त्ताऽपां धर्त्ता पर्जन्यः (ओषधीनाम्) यवादीनाम् (अपाम्) जलानां प्राणानां वा (गर्भम्) धारणम् (वि) (अदधात्) दधाति (पुरुत्रा) यः पुरून् बहून् त्रायते सः॥३२॥

    भावार्थः

    सर्वैमनुष्यैरिह सकलकर्मसेवका जीवाः प्रथमा विद्युदग्निसूर्यवायवः पृथिव्यादिधारका द्वितीयास्तृतीयाः पर्जन्यादयस्तेषां जीवा अजा अन्ये सर्वे जातास्तेऽपि कारणरूपेण नित्याश्चेति वेद्यम्॥३२॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! इस जगत् में (विश्वकर्मा) जिस के समस्त शुभ काम हैं, वह (देवः) दिव्यस्वरूप वायु प्रथम (इत्) ही (अभवत्) होता है, (आत्) इसके अन्तर (गन्धर्वः) जो पृथिवी को धारण करता है, वह सूर्य वा सूत्रात्मा वायु (अजनिष्ट) उत्पन्न और (ओषधीनाम्) यव आदि ओषधियों (अपाम्) जलों और प्राणों का (पिता) पालन करनेहारा (हि) ही (द्वितीयः) दूसरा अर्थात् धनञ्जय तथा जो प्राणों के (गर्भम्) गर्भ अर्थात् धारण को (व्यदधात्) विधान करता है, वह (पुरुत्रा) बहुतों का रक्षक (जनिता) जलों का धारण करनेहारा मेघ (तृतीयः) तीसरा उत्पन्न होता है, इस विषय को आप लोग जानो॥३२॥

    भावार्थ

    सब मनुष्यों को योग्य है कि इस संसार में सब कामों के सेवन करनेहारे जीव पहिले, बिजुली, अग्नि, वायु और सूर्य पृथिवी आदि लोकों के धारण करनेहारे हैं, वे दूसरे और मेघ आदि तीसरे हैं, उनमें पहिले जीव अज अर्थात् उत्पन्न नहीं होते और दूसरे, तीसरे उत्पन्न हुए हैं, परन्तु वे भी कारणरूप से नित्य हैं, ऐसा जानें॥३२॥

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    विषय

    राजा के चार रूप ।पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन ।

    भावार्थ

    राजा के पक्ष में - (विश्वकर्मा ) राष्ट्र के समस्त उत्तम कार्यों का सञ्चालक, प्रवर्त्तक ( हि ) निश्रय से ( देवः ) वह सर्वप्रद, सर्वविजयी राज सबसे प्रथम ( अजनिष्ट ) प्रकट होता है । ( आत् इत् ) उसके बाद ( गन्धर्वः ) गौ अर्थात् पृथिवी का धारण करने वाला भूमिपति, गौ वाणी शासनाज्ञा का धारक ( अभवत् ) होता है। और फिर ( तृतीयः ) तीसरे वह ( ओषधीनाम् ) ओष अर्थात् शत्रु के दाह करने के वीर्य को धारण करने वाली सेनाओं का पालक और उत्पादक है। वह ही (पुरुत्रा) बहुतों को रक्षा करने में समर्थ होकर ( अपाम् )आप्त प्रजाजनों का ( गर्भम् ) गर्भ अर्थात् ग्रहण करने वाले, उनको वश करने वाले राष्ट्र को ( व्यददधात् ) विविध प्रकार से विधान करता है । विविध व्यवस्थाओं से उनको व्यवस्थित करता है। राजा के क्रम से चार रूप हुए प्रथम 'देव' विजिगीषु, दूसरा 'गन्धर्व' विजित भूमि का स्वामी, तृतीय सेनाओं का पालक और उत्पादक, चतुर्थ प्रजाओं का वशकर्त्ता । ईश्वरपक्ष में - सब से प्रथम ( विश्वकर्मा देवः हि अजनिष्ट ) विश्व का कर्त्ता प्रकाशस्वरूप विद्यमान था । ( आत् इत् द्वितीयः गन्धर्वः अभवत् ) फिर उससे गौ, वाणी वेद, और पृथिवी का धारक सूर्य प्रकट हुआ यह ईश्वरीय शक्ति का दूसरा रूप था । ( तृतीयः ओषधीनां जनिता पिता च ) तीसरा, ओषधियों-घास लता वृक्षादि का पालक और उत्पादक मेघरूप है । वह ( अपां गर्भम् पुरुत्रा व्यदधात् ) मेघ होकर प्रजापति बहुत से जीव सर्गों के पालने में समर्थ होकर जलों को अपने गर्भ में धारण करता है । अध्यात्म में - विश्वकर्मा आत्मा है । वह वाणी का प्राण द्वारा धारक होने से गन्धर्व है। ओषधि-ज्ञान-धारक इन्द्रियगण का पालक और उत्पादक है। वह ( अपां गर्भम् ) ज्ञानों और कर्मों को ग्रहण करने में समर्थ होता है ।

    टिप्पणी

    इति वैश्वकर्मण होमः ||

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वराडार्षी पंक्तिः । पञ्चमः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या जगात सर्वात प्रथम कर्म करणारे जीव, द्वितीय सूर्य, वायू, विद्युत व अग्नी होत व तृतीय मेघ इत्यादी होत. त्यापैकी जीव उत्पन्न होत नाहीत. दुसरे, तिसरे उत्पन्न झालेले आहेत, तेही कारणरूपाने नित्य आहेत हे माणसांनी जाणावे.

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    विषय

    पुन्हा तोच विषय (ईश्‍वराचे स्वरूप) –

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, (जाणून घ्या की) या जगात (सर्वप्रथम) (विश्‍वकर्मा) सर्व शुभ कार्य करणारा तो (देव:) दिव्यस्वरूप वायू (इत्‌) निश्‍चयाने (अभवत्‌) उत्पन्न होतो. (प्राणदायक वायू सर्वप्रथम उत्पन्न होतो) (आत्‌) त्यानंतर (गन्धर्व:) गो म्हणजे पृथ्वी, त्यास धारण करणारा सूर्य अथवा सूत्रात्मानामक वायू (अजनिष्ट) उत्पन्न होतो. त्यानंतर (ओषधीनाम्‌) यव आदी औषधी, तसेच (अपाम्‌) जल आणि प्राण यांचे (पिता) पालन करणारा (द्वितीय:) दुसरा धनंजय नामक वायू की जो प्राण्यांच्या (गर्भम्‌) गर्भ धारणासाठी (व्यदधात्‌) कारणीभूत होतो. यानंतर (पूरुत्रा) अनेकांचे रक्षण करणारा (जनिता) जल धारण करणारा मेध (तृतीय:) तिसऱ्या क्रमांकावर उत्पन्न होतो. हे मनुष्यानो, तुम्ही हे सत्य जाणून घ्या. ॥32॥

    भावार्थ

    भावार्थ- सर्व लोकांनी हे सत्य जाणले पाहिजे की या जगात सर्व कर्माचे सेवन करणारे (सर्व पदार्थांचा उपभोग घेणारे) जीव-जीवात्मा सर्वप्रथम आहेत. त्यानंतर विद्युत अग्नी, वायू, सूर्य, पृथ्वी आदींचा क्रम येतो की जे लोक-लोकांतराचे धारण, पालन करतात. यांचा क्रम दुसरा आहे तिसऱ्या स्थानावर आहेत मेघ. या तीन पैकी प्रथम म्हणजे जीवात्मा अज आहे, तो अनादी असून कधी उत्पन्न होत नाही. दुसरे आणि तिसरे-विद्युत आदी आणि मेघ, हे उत्पन्न होणारे आहेत, पण ते देखील कारणरुपाने नित्य आहेत ॥32॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Firstly was created the air, in which are performed all good deeds ; secondly was created the sun, which sustains the earth ; thirdly was created the cloud, that fosters plants, waters and souls, and helps the retention of life in material objects, is the guardian of many, and begetter of rain.

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    Meaning

    Lord Vishvakarma, creator of the world, self- effulgent lord of light and life, first manifested in existence. Then after that was born the sun which holds the earth. The third was the cloud which, in its womb, holds the waters, offspring of the sky and the winds, vital air, and generates and sustains the herbs and trees in many ways.

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    Translation

    First of all, the energizer of all (i. e. the wind) came into being; second to him was the sustainer of the earth (i. e. the fire); the third was the begetter and nourisher of the plants (i. e. the cloud); and He, the protector of all, laid the germ (of the would-be beings) in waters. (1)

    Notes

    At, आदौ in the beginning; first of all. Viśvakarmā, विश्वं सर्व करोति इति विश्वकर्मा, that which makes all whatsoever; the energizer of all, i. e. the elemental air; wind. It ततः, thereafter. Gandharvah, गां पृथिवीं वाचं वा धारयति इति गंधर्व:, one that sustains the earth (i. e. the fire), or the speech (body heat). Oṣadhīnām janitā, begetter of plants and herbs (i. e. ,पर्जन्य, the cloud). Apain garbhain vyadadhāt, अप्सु गर्भं स्थापितवान्, laid the germ (seed) in waters. Purutrā, पुरुषुबहुषुस्थानेषु, at various places. Also, बहुविधम्, विविध प्रकारेण, in various ways. Here ends the Vaiśvakarmaṇa Homa, which started with the seventeenth verse.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! এই জগতে (বিশ্বকর্মা) যাহার সমস্ত শুভ কর্ম, সেই (দেবঃ) দিব্যস্বরূপ বায়ু প্রথম (ইৎ)(অভবৎ) হয় (আৎ) ইহার অনন্তর (গান্ধর্বঃ) যাহা পৃথিবীকে ধারণ করে সেই সূর্য্য বা সূত্রাত্মা বায়ু (অজনিষ্ট) উৎপন্ন এবং (ওষধীনাম্) যবাদি ওষধিসকল (অপাম্) জল ও প্রাণের (পিতা) পালক (হি)(দ্বিতীয়ঃ) দ্বিতীয় অর্থাৎ ধনঞ্জয় তথা যাহা প্রাণীসকলের (গর্ভম্) গর্ভ অর্থাৎ ধারণকে (ব্যদধাৎ) বিধান করে সে (পুরুত্রা) বহুর রক্ষক (জনিতা) জল ধারণকারী মেঘ (তৃতীয়ঃ) তৃতীয় উৎপন্ন হয়–এই বিষয়কে আপনারা বুঝুন ॥ ৩২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–সকল মনুষ্যের কর্ত্তব্য যে, এই সংসারে সকল কর্মের সেবনকারী জীব প্রথমে, বিদ্যুৎ, অগ্নি, বায়ু, ও সূর্য্য, পৃথিবী আদি লোকসমূহ ধারণকারী হয়, তাহারা দ্বিতীয় এবং মেঘাদি তৃতীয় । তন্মধ্যে প্রথম জীব অজ অর্থাৎ উৎপন্ন হয় না এবং দ্বিতীয় তৃতীয় উৎপন্ন হইয়াছে কিন্তু সেগুলিও কারণ রূপে নিত্য এইরকম জানিবে ॥ ৩২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    বি॒শ্বক॑র্মা॒ হ্যজ॑নিষ্ট দে॒বऽআদিদ্ গ॑ন্ধ॒র্বোऽঅ॑ভবদ্ দ্বি॒তীয়ঃ॑ ।
    তৃ॒তীয়ঃ॑ পি॒তা জ॑নি॒তৌষ॑ধীনাম॒পাং গর্ভং॒ ব্য᳖দধাৎ পুরু॒ত্রা ॥ ৩২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বিশ্বকর্মেত্যস্য ভুবনপুত্রো বিশ্বকর্মর্ষিঃ । বিশ্বকর্মা দেবতা । স্বরাডার্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ । পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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