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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृद्विकृतिः स्वरः - मध्यमः
    263

    इ॒मा मे॑ऽअग्न॒ऽइष्ट॑का धे॒नवः॑ स॒न्त्वेका॑ च॒ दश॑ च॒ दश॑ च श॒तं च॑ श॒तं च॑ स॒हस्रं॑ च स॒हस्रं॑ चा॒युतं॑ चा॒युतं॑ च नि॒युतं॑ च नि॒युतं॑ च प्र॒युतं॒ चार्बु॑दं च॒ न्यर्बुदं च समु॒द्रश्च॒ मध्यं॒ चान्त॑श्च परा॒र्द्धश्चै॒ता मे॑ऽअग्न॒ऽइष्ट॑का धे॒नवः॑ सन्त्व॒मु॒त्रा॒मुष्मिँ॑ल्लो॒के॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒माः। मे॒। अ॒ग्ने॒। इष्ट॑काः। धेनवः॑। स॒न्तु॒। एका॑। च॒। दश॑। च॒। दश॑। च॒। श॒तम्। च॒। श॒तम्। च॒। स॒हस्र॑म्। च॒। स॒हस्र॑म्। च॒। अ॒युत॑म्। च॒। अ॒युत॑म्। च॒। नि॒युत॒मिति॑ नि॒ऽयुत॑म्। च॒। नि॒युत॒मिति॑ नि॒ऽयुत॑म्। च॒। प्र॒युत॒मिति॑ प्र॒ऽयुत॑म्। च॒। अर्बु॑दम्। च॒। न्य॑र्बुद॒मिति॒ निऽअ॑र्बुदम्। च॒। स॒मु॒द्रः। च॒। मध्य॑म्। च॒। अन्तः॑। च॒। प॒रा॒र्द्धः। च॒। ए॒ताः। मे॒। अ॒ग्ने॒। इष्ट॑काः। धे॒नवः॑। स॒न्तु॒। अ॒मुत्र॑। अमुष्मि॑न्। लो॒के ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा मेऽअग्नऽइष्टका धेनवः सन्त्वेका च दश च दश च शतञ्च शतञ्च सहस्रञ्च सहस्रञ्चायुतञ्चायुतञ्च नियुतञ्च नियुतञ्च प्रयुतञ्चार्बुदञ्च न्यर्बुदञ्च समुद्रश्च मध्यञ्चान्तश्च परार्धश्चौता मेऽअग्नऽइष्टका धेनवः सन्त्वमुत्रामुष्मिँल्लोके ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इमाः। मे। अग्ने। इष्टकाः। धेनवः। सन्तु। एका। च। दश। च। दश। च। शतम्। च। शतम्। च। सहस्रम्। च। सहस्रम्। च। अयुतम्। च। अयुतम्। च। नियुतमिति निऽयुतम्। च। नियुतमिति निऽयुतम्। च। प्रयुतमिति प्रऽयुतम्। च। अर्बुदम्। च। न्यर्बुदमिति निऽअर्बुदम्। च। समुद्रः। च। मध्यम्। च। अन्तः। च। परार्द्धः। च। एताः। मे। अग्ने। इष्टकाः। धेनवः। सन्तु। अमुत्र। अमुष्मिन्। लोके॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेष्टकादिचयनदृष्टान्तेन गणितविद्योपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे अग्ने विद्वन्! या मे ममेमा इष्टका धेनव इव सन्तु तास्तवापि भवन्तु, या एका च दश च दश च शतं च शतं च सहस्रं च सहस्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं च प्रयुतं चार्बुदं च न्यर्बुदं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्च परार्द्धश्चैता मे अग्न इष्टका धेनव इवामुत्रामुष्मिंल्लोकेऽस्मिन् परजन्मनि वा सन्तु॥२॥

    पदार्थः

    (इमाः) वक्ष्यमाणाः (मे) मम (अग्ने) विद्वन् (इष्टकाः) इष्टसुखं साधिकाः (धेनवः) दुग्धदात्र्यो गाव इव (सन्तु) (एका) (च) (दश) (च) (दश) (च) (शतम्) (च) (शतम्) (च) (सहस्रम्) (च) (सहस्रम्) (च) (अयुतम्) दश सहस्राणि (च) (अयुतम्) (च) (नियुतम्) लक्षम् (च) (नियुतम्) (च) (प्रयुतम्) दश लक्षाणि प्रयुतमिति कोटेरप्युपलक्षकम् (च) (अर्बुदम्) दशकोटयः (च) (न्यर्बुदम्) अब्जम्। न्यर्बुदमिति खर्बनिखर्बमहापद्मशङ्कुसंख्यानामप्युपलक्षकम् (च) (समुद्रः) (च) (मध्यम्) (च) (अन्तः) (च) (परार्द्धः) (च) (एताः) (मे) मम (अग्ने) (इष्टकाः) (धेनवः) (सन्तु) (अमुत्र) परस्मिन् जन्मनि (अमुष्मिन्) परस्मिन् (लोके) द्रष्टव्ये॥२॥

    भावार्थः

    यथा सुसेविता गावो दुग्धादिदानेन सर्वान् सन्तोषयन्ति, तथैव वेद्यां सञ्चिता इष्टका वृष्टिहेतुका भूत्वा वृष्ट्यादिद्वारा सर्वानानन्दयन्ति। मनुष्यैरेका संख्या दशवारं गुणिता सती दशसंज्ञां लभते, दश दशवारं संख्याताः शतम्, शतं दशवारं संख्यातं सहस्रम्, सहस्रं दशवारं संख्यातमयुतम्, अयुतं दशवारं संख्यातं नियुतम्, नियुतं दशवारं संख्यातं प्रयुतम्, प्रयुतं दशवारं संख्यातं कोटिः, कोटिर्दशवारं संख्याता दश कोट्यः, ता दशवारं संख्याताः खर्बः, खर्बो दशवारं संख्यातो निखर्बः, निखर्बो दशवारं संख्यातो महापद्मः, महापद्मो दशवारं संख्यातः शुङ्कुः, शङ्कुदशवारं संख्यातः समुद्रः, समुद्रो दशवारं संख्यातो मध्यम्, मध्यं दशवारं संख्यातमन्तरन्तो दशवारं संख्यातः परार्द्धः। एताः संख्या उक्ता उक्तैरनेकैश्चकाररैन्या अपि अङ्कबीजरेखाप्रभृतयो यथावद् विज्ञेया। यथास्मिंल्लोक इमाः संख्या सन्ति, तथान्येष्वपि लोकेषु वर्त्तन्ते, यथात्रैतत्संख्याभिः संख्याता इष्टका सुशिल्पिभिश्चिता गृहाकारा भूत्वा शीतोष्णवर्षावाय्वादिभ्यो मनुष्यान् रक्षित्वाऽऽनन्दयन्ति, तथैवाहुतयो जलवाय्वोषधीभिः संहत्य सर्वान् प्राणिन आनन्दयन्ति॥२॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    अब इष्टका आदि के दृष्टान्त से गणितविद्या का उपदेश किया है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन्! जैसे (मे) मेरी (इमाः) ये (इष्टकाः) इष्ट सुख को सिद्ध करनेहारी यज्ञ की सामग्री (धेनवः) दुग्ध देने वाली गौओं के समान (सन्तु) होवें, आप के लिये भी वैसी हों। जो (एका) एक (च) दशगुणा (दश) दश (च) और (दश) दश (च) दश गुणा (शतम्) सौ (च) और (शतम्) सौ (च) दशगुणा (सहस्रम्) हजार (च) और (सहस्रम्) हजार (च) दश गुणा (अयुतम्) दश हजार (च) और (अयुतम्) दश हजार (च) दश गुणा (नियुतम्) लाख (च) और (नियुतम्) लाख (च) दश गुणा (प्रयुतम्) दश लाख (च) इसका दश गुणा क्रोड़, इसका दश गुणा (अर्बुदम्) दशक्रोड़ इस का दश गुणा (न्यर्बुदम्) अर्ब (च) इसका दश गुणा खर्ब, इसका दश गुणा निखर्ब, इसका दश गुणा महापद्म, इसका दश गुणा शङ्कु, इसका दश गुणा (समुद्रः) समुद्र (च) इसका दश गुणा (मध्यम्) मध्य (च) इसका दश गुणा (अन्तः) अन्त और (च) इसका दश गुणा (परार्द्धः) परार्द्ध (एताः) ये (मे) मेरी (अग्ने) हे विद्वन्! (इष्टकाः) वेदी की र्इंटें (धेनवः) गौओं के तुल्य (अमुष्मिन्) परोक्ष (लोके) देखने योग्य (अमुत्र) अगले जन्म में (सन्तु) हों, वैसा प्रयत्न कीजिये॥२॥

    भावार्थ

    जैसे अच्छे प्रकार सेवन की हुई गौ दुग्ध आदि के दान से सब को प्रसन्न करती हैं, वैसे ही वेदी में चयन की हुई ईटें वर्षा की हेतु हो के वर्षादि के द्वारा सब को सुखी करती हैं। मनुष्यों को चाहिये कि एक संख्या को दशवार गुणने से दश (१०), दश को दश बार गुणने से सौ (१००), उसको दश बार गुणने से हजार (१०००), उसको दश बार गुणने से दस हजार (१०,०००), उसको दश वार गुणने से लाख (१,००,०००), उसको दश बार गुणने से दश लाख (१०,००,०००), इसको दश वार गुणने से क्रोड (१,००, ००,०००), इसको दश वार गुणने से दश क्रोड़ (१०,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से अर्ब (१,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश अर्ब (१०,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से खर्ब (१,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश खर्ब (१०,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से नील (१,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश नील (१०,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से पद्म (१,००,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश पद्म (१०,००,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से एक शङ्ख (१,००,००,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश शङ्ख (१०,००,००,००,००,००,००,००,०००) इन संख्याओं की संज्ञा पड़ती हैं। ये इतनी संख्या तो कहीं, परन्तु अनेक चकारों के होने से और भी अङ्कगणित, बीजगणित और रेखागणित आदि की संख्याओं को यथावत् समझें। जैसे भूलोक में ये संख्या हैं, वैसे अन्य लोकों में भी हैं, जैसे यहां इन संख्याओं से गणना की और कारीगरों से चिनी हुई ईटें घर के आकार हो शीत, उष्ण, वर्षा और वायु आदि से मनुष्यादि की रक्षा कर आनन्दित करती हैं, वैसे ही अग्नि में छोड़ी हुई आहुतियां जल, वायु और ओषधियों के साथ मिल के सब को आनन्दित करती हैं॥२॥

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    विषय

    कोटि २ प्रजा, पशु, सम्पदाओं की वृद्धि ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) ज्ञानवान् ! विद्वन् ! पुरोहित ! ( मे ) मेरी ये ( इष्टकाः ) मकान में चुनी गयी ईंटों के समान राज्यरूप महल में लगी, राज्य के नाना विभागों में नियुक्त शासक वर्ग, भृत्य वर्ग रूप ईंटें, सेनाएं और प्रजाएं अथवा इष्ट अर्थात् वेतनरूप से दिये गये अन्न या पिण्ड पर नियुक्त अमात्य भृत्यादि, सब अथवा मेरे अभिलाषित राज्याङ्गरूप प्रजागण ( मे ) मेरे लिये ( धेनवः ) दुधार गौओं के समान समृद्ध और ऐश्वर्य को बढ़ाने वाली और पुष्टिकारक बलप्रद , कर आदि देने वाली हों । और वे ( एका च दश च ) एक, एक , एक करके दश हों। ( दश च शतं च ) वे दस, दस दस करके सौ तक बढ़ जांय । ( शतं च सहस्रं च ) वे सौ, सौ, सौ करके हजार तक बढ़ जांय । ( सहस्रं च अयुतं च ) इसी प्रकार वे हज़ार २, दस हज़ार हो जांय । ( अयुतं व नियुतं च ) वे दस हज़ार बढ़कर एक लाख हो जांय ( नियुतं च प्रयुतं च) वे एक लाख बढ़कर दस लाख हो जांय । इसी प्रकार उत्तरोत्तर बढ़ती हुई वे (अर्बुदं च ) १० करोड़, ( न्यवुर्दं च ) अर्ब खर्ब, निखर्ब महापद्म, शंख (समुद्रः च ) समुद्र ( मध्यं च ) मध्य ( अन्तः च ) अन्त, ( परार्ध श्च ) और परार्ध हो जांय और ( एताः ) ये सब ( मे ) मेरी ( इष्टकाः ) दान किये वेतन आदि पर बद्ध एवं प्रिय , एवं सुसंगठित राज्य की ईंटों के समान प्रजा गण ( धेनवः सन्तु ) दुधार गौओं के समान ऐश्वर्य रस के देने वाली ने आर ( अमुष्मिन् लोके ) परलोक में भी ( अमुत्र ) परदेश में भी सुखकारी हों । शत० ९ । १ । २ । १३-१७ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निर्देवता । विकृतिः । मध्यमः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्याप्रमाणे उत्तम गाई आपल्या दुधाने सर्वांना प्रसन्न करतात त्याप्रमाणे यज्ञवेदीत रचलेल्या विटा पावसाचे निमित्त बनून सर्वांना सुखी करतात. माणसाने हे जाणावे की एक (१) या संख्येला दहाने गुणल्यास दहा (१०) व दहाला दहाने गुणल्यास (१००) शंभर व त्याला दहाने गुणल्यास हजार (१०००) , त्याला दहाने गुणल्यास दहा हजार (१००००) , त्याला दहाने गुणल्यास एक लाख (१०००००) त्याला दहाने गुणल्यास दहा लाख (१००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास एक कोटी (१००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास अर्व (१०००००००००) त्याला दहाने गुणल्यास दहा अर्व (१००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास खर्व (१०००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास दहा खर्व (१००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास नील (१०००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास दहा नील (१००००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास पद्म (१०००००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास एक शंख (१०००००००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास (१००००००००००००००००००) अशा या संख्या होत. या एवढ्या संख्यांना अनेक चकारांमुळे अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित इत्यादी संख्या यथायोग्य पद्धतीने समजून घ्याव्यात. या भूलोकावर जशा संख्या आहेत तशा अन्य गोलांवरही आहेत. या संख्यांची गणना करूनच चांगले कारागीर विटांनी घरे बांधतात व त्यामुळे थंडी, गरमी, पाऊस व वारा यांच्यापासून माणसांचे रक्षण होते व ते आनंदी बनतात. तसे अग्नीत टाकलेल्या आहुती जल, वायू, वृक्ष यांच्यात मिसळून सर्वांना आनंदी करतात.

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    विषय

    पुढील मंत्रात इष्टिका (वीट) आदीचे उदाहरण देऊन त्याद्वारे गणित विद्येविषयी कथन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (याज्ञिकजन विद्वान पुरुषाला प्रार्थना करीत आहे) हे (अग्ने) विद्वान महोदय, (मे) माझी (वा मी यज्ञासाठी सिद्ध केलेली) (इमा:) ही (वा या) (इष्टिका:) इच्छित सुख प्रदान करणारी यज्ञ-सामग्री (विटा, हवन-साहित्य आदी वस्तू) माझ्याकरिता (धेनव:) दूध देणाऱ्या गायीप्रमाणे सुखदायक आहेत, त्याप्रमाणे तुमच्यासाठी देखील त्या सुखकारी (सन्तु व्हाव्यात. (यज्ञात उपयुक्त होणाऱ्या या विटा, वनस्पती, घृत आदी वस्तू तु अनेक संख्याने गुणित, द्विगुणित, शतगुणित आदी होऊन सर्वांकरिता लाभकारी व्हाव्यात) ते अशा प्रकारे की - (एका) एक वस्तू (च) दहापट- पुढे तीच वस्तू (दश) दहाच्या (च) दहापट व्हावी. ते दहाच्या दहापट झालेली वस्तू (शतम्‌) शंभर (च) व शंभराची (शतम्‌) शंभरपट व्हावी. पुढे तीच वस्तू (सहस्रम्‌) हजार होऊन (च) पुढे (सहस्रम्‌) हजाराचे (च) दशपट व्हावी, पुढे (अयुतम्‌) ते दहा हजार (च) होऊन (अयुतम्‌) दहा हजाराचे (च) दसपट व्हावी. (त्यापुढे यज्ञ-होमात आहुत केलेल्या त्या वस्तू (नियुतम्‌) लाख (च) आणि (नियुतम्‌) लाखाचे (च) दसपट व्हाव्यात. पुढे (प्रत्युतम्‌) दहा लाखाचे (च) दहापट होऊन एक कोटि व त्याचे दहापट (अर्बुधम्‌) दहा कोटी, पुन्हा त्याचे दसपट (न्युर्बुदम्‌) एक अब्ज (च) त्याचे दसपट (खर्व त्याचे दहापट निखर्व , त्याचे दहापट महापद्म, त्याचे दहापट शंकु, त्याचे त्या वस्तू दसपट (समुद्र:) समुद्र व्हाव्यात (च) पुन्हा त्याचे दसपट (मध्य) मध्य (च) त्याचे दसपट (अन्त:) म्हणजे अन्य (च) त्याचे दसपट (पदार्द्धच) परार्द्ध व्हाव्यात. (यज्ञात आहुत पदार्थ, दसपट, शतपट, सहस्रपट होत अशाप्रकारे समुद्र संख्येमध्ये प्रसारित व्हावेत. या लोकात व परलोकापर्यंत (गृह उप ग्रहापर्यंत) देखील त्या वस्तूंचा प्रभाव निर्माण व्हावा) (एता:) या यज्ञात प्रयुक्त (वेदी, समिधा आदी वस्तू) आणि (इष्टिका:) या वेदी निर्माण करण्यासाठी प्रयुक्त विटा (धेनव:) गायीप्रमाणे कल्याणकारी असून त्या (यज्ञ-याग सामग्री सुविधा) हे (अग्ने) विद्वान महोदय, (मे) मला (याज्ञिकाला)(अमुष्मिन्‌) अप्रत्यक्ष वा (लोके) प्रत्यक्ष रुपाने प्राप्त व्हाव्यात आणि (अमुत्र) पुढत्या जन्मीदेखील या यज्ञीय वस्तू (व यज्ञ करण्याची संधी) मला (सन्तु) मिळाव्यात, आपण असे यत्न करा. ॥2॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जसे एक गाय सेवा-पालनादी कार्यामुळे आनंदित होऊन दुग्ध आदी पदार्थ देऊन सर्वांना सुखी करते, त्याप्रमाणे यज्ञवेदीमध्ये चयन केलेल्या विटा वृष्टीचे कारण होतात आणि वर्षा याद्वारे सर्वांना सुखी करतात. मनुष्यांसाठी योग्य आहे की, (गवंडी, श्रमिक आदी उत्तम कारागिरांद्वारा विटांची घरें तयार करावीत व सर्वांना सुखी करावे) (या उद्देशासाठी मनुष्यांनी) (1) एक या संख्येचा 10 संख्येशी गुणाकार करावा, पुन्हा दहाचा दहाशी गुणाकार करून त्या संख्येस शंभर (100) करावे. त्या संख्येचा दहाने गुणाकार करून एक हजार (1000) त्यास दहाने गुणल्यास दहा हजार (10,000), त्यास दहाने गुणिल्यास एक लाख(10,0000), त्याचा दहाने गुणाकार केल्या (1000000) त्यास दहाने गुणिल्यास एक कोटि (10000000) त्यांचे दहाने गुणन केल्यास दहा कोटि (100000000) त्यास दहाने गुणिल्यास एक अब्ज (1000000000) त्याचा दहाने गुणाकार केल्यास खर्व (10000000000) त्यास दहाने गुणल्यास दहा खर्व (1000000000000) त्यास दहाने गुणल्यास (नील) निखर्व (10000000000000) त्यास दहाने गुणिल्यास दहा निखर्व (निल) (100000000000000) त्यास दहाने गुणिल्यास एक पद्म (100000000000000) त्यास दहाने गणिल्यास दश पद्म (10000000000000000) त्यास दहाने गुणिल्यास एक शंख (100000000000000000) त्यास दहाने गुणिल्यास दहा शंख (शंकु) (1000000000000000000) या अशा प्रकारे संख्या तयार होतात. या इतक्या संख्या तर इथे वर्णित केल्या आहेत, पण मंत्रात अनेक ‘चकार’ आले आहेत (म्हणजे या गुणाकाराच्या अधिकाधिक संख्या ‘च’=(आणि, आणखी) या शब्दांद्वारे दाखविल्या आहेत. तसेच अंकगणित, बीजगणित व देखागणित आदी गणितिविद्यांमध्ये येणाऱ्या अधिक संख्यांचा या वर्णनात अंतर्भाव मानावा. या संख्या ज्याप्रमाणे या भूलोकात आहेत, तसेच या अन्य लोकात (ग्रह, नक्षत्रादीत) देखील आहेत. ज्याप्रमाणे या संख्यांचा योग्य विचार करून (निष्णात कारागीर, गवंडी आदी विटा चिणून घराचे निर्माण करतात आणि त्या घरांद्वारे मनुष्यादी प्राण्यांचे थंडी, उन, पाऊस, वावटळ आदी त्रासापासून रक्षण करतात, तद्वत यज्ञाग्नीत टाकलेल्या आहुती जल, वायू, आणि औषधींसह एकजीव होतात व सर्वांना सुखी, नीरोग करतात ॥2॥

    टिप्पणी

    टीप : शंख म्हणजे शंकू त्या (पुढे संख्यांची गणना समुद्र = 14 शून्यें, अन्त=15 शुन्ये, मध्य= 16, शून्ये आणि (परार्ध 17 शून्ये अशाप्रकारे केली जाते) ^संदर्भ- मराठी शुद्धलेखन प्रदीप-लेखन-श्री. मो. रा वाळंबे)

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person, may the materials of my yajna, like milch kine, be the givers of happiness to me. They may be one, and ten, and ten tens, a hundred, and ten hundred, a thousand and ten thousand and a hundred thousand, a lac and ten lacs, a million, and ten millions, a crore, ten crores, hundred crores, thousand crores, its ten times Maha Padma, its ten times Shankh, its ten times Samudra, its ten times Madhya, its ten times Prardh. May these bricks of my altar be a source of happiness to me, like milch-kine in this world and the next world.

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    Meaning

    Agni, fire-lord of yajna, may these bricks of my altar (vedi), wanted values of life, one and all, be generous and productive and grow ten times in geometrical progression : May one grow to ten, and ten to one hundred (shatam), and one hundred to one thousand (sahasram), and one thousand to ten thousand (ayutam), and ten thousand to hundred thousand (one lac, niyutam), and hundred thousand to a million (prayutam), and one million to hundred million (arbudam), and hundred million to a billion (arba, nyarbudam), and one billion to ten billion (one kharba), and ten billion to a hundred billion (one nikharba), and hundred billion to a trillion (mahapadma), and one trillion to ten trillion (one shanku), and ten trillion to hundred trillion (one samudra), and hundred trillion to quadrillion (one madhyam), and one madhyam to ten madhyam (anta, ten quadrillion), and one anta to ten anta (hundred quadrillion), parardha. And these bricks, wanted values, be, like cows, the givers of fulfilment to me in this life and beyond, in this world and beyond.

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    Translation

    O adorable Lord, these are my coveted milch cows; may, these become ten (dasa) from one (eka); from ten these may become hundred (sata); from hundred a thousand (sahasra); from a thousnd ten thousand (ayuta); from ten thousand a hundred thousand (niyuta); from a hundred thousand a million (prayuta); and ten millions (arbuda) and hundred millions (nyarbuda) and a billion (samudra) and ten billions (madhya); and a hundred billions (anta), anda trillion (parardha); these may be my coveted milchcows in the next world as well as in the present one, O adorable Lord. (1)

    Notes

    This verse shows that istakā does not mean bricks, but is an adjective meaning, desired, desirable, or coveted. Its translation as bricks is unreasonable. Most natural meaning of this mantra will be: May my these coveted cows go on multiply ing from one to ten, from ten to hundred and so on. But the com mentators as referring to bricks: "May my these bricks give me, like cows, my desired fruit (things). Let these bricks be my cows. ' We think it is too much maninpulation. Amutra, परजन्मनि, in the next life. Amuşmin loke, in the yonder world. Or, in this world. The counting of numbers is notable. Each following num ber is ten times ofthe preceding one. Eka, Daśa, Satam, Sahasram, Ayutam, (ten thousand), Niyutam (लक्षं) Prayutam, Kotih, Arbudam (dasa kotiḥ), Nyarbudam, Abjam, Kharvam, Nikharvam, Mahapadmam, Sankuḥ, Samudraḥ, Madhyam. , Antaḥ, Parārdhaḥ. In the mantra, arbudam is followed by nyarbudam, but the commentators say, that this word denotes the abja numbers, which lie between abja and samudram, and these are kharva,, nikharva, mahapadma, and sanku. Decimal system is also here.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথেষ্টকাদিচয়নদৃষ্টান্তেন গণিতবিদ্যোপদিশ্যতে ॥
    এখন ইষ্টকাদির দৃষ্টান্ত দ্বারা গণিত বিদ্যার উপদেশ করা হইতেছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে অগ্নে বিদ্বন্! যেমন (মে) আমার (ইমাঃ) এই সব (ইষ্টকাঃ) ইষ্ট সুখকে সিদ্ধ কারক যজ্ঞের সামগ্রী (ধেনবঃ) দুগ্ধদাত্রী গাভিদের সমান (সন্তু) হউক, আপনার জন্যও সেইরকমই হউক যাহা (একা) এক (চ) দশগুণ (দশ) দশ (চ) এবং (দশ) দশ (চ) দশগুণ (শতম্) শত (চ) এবং (শতম্) শত (চ) দশগুণ (সহস্রম্) সহস্র (চ) এবং (সহস্রম্) সহস্র (চ) দশগুণ (অয়ুতম্) দশ হাজার (চ) এবং (অয়ুতম্) দশ হাজার (চ) দশ গুণ (নিয়ুতম্) লক্ষ (চ) এবং (নিয়ুতম্) লক্ষ (চ) দশ গুণ (প্রয়ুতম্) দশ লক্ষ (চ) ইহার দশ গুণ কোটি ইহার দশ গুণ (অর্বুদম্) দশ কোটি ইহার দশ গুণ (ন্যর্বুদম) অর্বুদ (চ) ইহার দশগুণ খর্বুদ ইহার দশ গুণ নিখর্ব ইহার দশগুণ মহাপদ্ম, ইহার দশগুণ শঙ্কু ইহার দশ গুণ (সমুদ্রঃ) সমুদ্র (চ) ইহার দশ গুণ (মধ্যম্) মধ্য (চ) ইহার দশ গুণ (অন্তঃ) অন্ত এবং (চ) ইহার দশ গুণ (পরার্দ্ধশ্চ) পরার্দ্ধ (এতাঃ) এই সব (মে) আমার (অগ্নে) হে বিদ্বন্! (ইষ্টকাঃ) বেদীর ইটগুলি (ধেনবঃ) গাভির তুল্য (অমুষ্মিন্) পরোক্ষ (লোকে) দেখিবার যোগ্য (অমুত্র) পরবর্ত্তী জন্মে (সন্তু) হউক এমন প্রচেষ্টা করুন ॥ ২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যেমন উত্তম প্রকার সেবিত গোদুগ্ধ আদির দানে সকলেই প্রসন্ন হয় সেইরূপ বেদীতে চয়নিত ইট বর্ষার হেতু হইয়া বর্ষাদি দ্বারা সকলকে সুখী করে । মনুষ্যদিগের উচিত যে এক (১) সংখ্যাকে দশবার গুণ করিলে দশ (১০), দশকে দশ বার গুণ করিলে শত (১০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে সহস্র (১০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে দশ সহস্র (১০,০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে লক্ষ (১০০,০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে দশ লক্ষ (১০,০০,০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে কোটি (১০০,০০,০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে দশ কোটি (১০,০০,০০,০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে অর্বুদ (১,০০,০০,০০,০০০), উহাকে দশ দিয়া গুণ করিলে দশ অর্বুদ (১০,০০,০০,০০,০০০), উহাকে দশ বার দিয়া গুণ করিলে দশ খর্বুদ (১,০০,০০,০০,০০,০০০), উহাকে দশ দিয়া গুণ করিলে নীল (১,০০,০০,০০,০০,০০,০০০), উহাকে দশ দিয়া গুণ করিলে দশ নীল (১০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে পদ্ম (১,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে দশ পদ্ম (১০,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে শঙ্খ (১,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০), উহাকে দশ বার গুণ করিলে দশ শঙ্খ (১০,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০) এই সব সংখ্যাগুলির সংজ্ঞা আইসে । এইসব এত সংখ্যা তো বলা হইল কিন্তু বহু চকার হওয়ায় আরও অঙ্কগণিত, বীজগণিত এবং রেখাগণিত ইত্যাদির সংখ্যাগুলিকে যথাবৎ বুঝিবে । যেমন ভূলোকে এই সংখ্যাগুলি সেইরূপ অন্য লোকেও আছে, যেমন এখানে এই সব সংখ্যাগুলি দিয়া গণনা করা হইল এবং কারীগর সকল চয়নিত ইট, গৃহের আকারের হউক শীত, উষ্ণ, বর্ষা এবং বায়ু আদি হইতে মনুষ্যাদির রক্ষা করিয়া আনন্দিত করে সেইরূপ অগ্নিতে নিক্ষিপ্ত আহুতিসকল জল, বায়ু এবং ওষধিসকলের সঙ্গে মিশিয়া সবাইকে আনন্দিত করে ॥ ২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ই॒মা মে॑ऽঅগ্ন॒ऽইষ্ট॑কা ধে॒নবঃ॑ স॒ন্ত্বেকা॑ চ॒ দশ॑ চ॒ দশ॑ চ শ॒তং চ॑ শ॒তং চ॑ স॒হস্রং॑ চ স॒হস্রং॑ চা॒য়ুতং॑ চা॒য়ুতং॑ চ নি॒য়ুতং॑ চ নি॒য়ুতং॑ চ প্র॒য়ুতং॒ চার্বু॑দং চ॒ ন্য᳖র্বুদং চ সমু॒দ্রশ্চ॒ মধ্যং॒ চান্ত॑শ্চ পরা॒র্দ্ধশ্চৈ॒তা মে॑ऽঅগ্ন॒ऽইষ্ট॑কা ধে॒নবঃ॑ সন্ত্ব॒মুত্রা॒মুষ্মিঁ॑ল্লো॒কে ॥ ২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ইমা ম ইত্যস্য মেধাতিথির্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদ্বিকৃতিশ্ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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