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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 73
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    67

    आ॒जुह्वा॑नः सु॒प्रती॑कः पु॒रस्ता॒दग्ने॒ स्वं योनि॒मासी॑द साधु॒या। अ॒स्मिन्त्स॒धस्थे॒ऽअध्युत्त॑रस्मि॒न् विश्वे॑ देवा॒ यज॑मानश्च सीदत॥७३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒जुह्वा॑न॒ इत्या॒जुऽह्वा॑नः। सु॒प्रती॑क॒ इति॑ सु॒ऽप्रती॑कः। पु॒रस्ता॑त्। अग्ने॑। स्वम्। योनि॑म्। आ। सी॒द॒। सा॒धु॒येति॑ साधु॒ऽया। अ॒स्मिन्। स॒धस्थे॑। अधि॑। उत्त॑रस्मिन्। विश्वे॑। दे॒वाः॒। यज॑मानः। च॒। सी॒द॒त॒ ॥७३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आजुह्वानः सुप्रतीकः पुरस्तादग्ने स्वँयोनिमा सीद साधुया । अस्मिन्त्सस्हस्थेऽअध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आजुह्वान इत्याजुऽह्वानः। सुप्रतीक इति सुऽप्रतीकः। पुरस्तात्। अग्ने। स्वम्। योनिम्। आ। सीद। साधुयेति साधुऽया। अस्मिन्। सधस्थे। अधि। उत्तरस्मिन्। विश्वे। देवाः। यजमानः। च। सीदत॥७३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 73
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वांसः कीदृशाः स्युरित्याह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने! पुरस्तादाजुह्वानः सुप्रतीको यजमानस्त्वं साधुयास्मिन् सधस्थे स्वं योनिमासीद। हे विश्वे देवाः! यूयं साधुयोत्तरस्मिन् सधस्थे चाधि सीदत॥७३॥

    पदार्थः

    (आजुह्वानः) सत्कारेणाहूतः (सुप्रतीकः) प्राप्तशुभगुणः (पुरस्तात्) प्रथमतः (अग्ने) योगाभ्यासेन प्रकाशितात्मन् (स्वम्) स्वकीयम् (योनिम्) परमात्माख्यं गृहम् (आ) (सीद) समन्तात् स्थिरो भव (साधुया) श्रेष्ठैः कर्मभिः (अस्मिन्) (सधस्थे) सहस्थाने (अधि) उपरिभावे (उत्तरस्मिन्) (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यात्मानो योगिनः (यजमानः) योगप्रद आचार्यः (च) (सीदत)॥७३॥

    भावार्थः

    ये साधूनि कर्माणि कृत्वा कृतयोगाभ्यासस्य विदुषः सङ्गप्रीतिभ्यां परस्परं संवादं कुर्वन्ति, ते सर्वाधिष्ठानमीशं प्राप्य सिद्धा जायन्ते॥७३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान्, गुणी जन कैसे हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) योगाभ्यास से प्रकाशित आत्मा युक्त (पुरस्तात्) प्रथम से (आजुह्वानः) सत्कार के साथ बुलाये (सुप्रतीकः) शुभगुणों को प्राप्त हुए (यजमानः) योगविद्या के देने वाले आचार्य्य! आप (साधुया) श्रेष्ठ कर्मों से (अस्मिन्) इस (सधस्थे) एक साथ के स्थान में (स्वम्) अपने (योनिम्) परमात्मा रूप घर में (आ, सीद) स्थिर हो (च) और हे (विश्वे) सब (देवाः) दिव्य आत्मा वाले योगीजनो! आप लोग श्रेष्ठ कामों से (उत्तरस्मिन्) उत्तर समय एक साथ सत्य सिद्धान्त पर (अधि, सीदत) अधिक स्थित होओ॥७३॥

    भावार्थ

    जो अच्छे कामों को करके योगाभ्यास करने वाले विद्वान् के संग और प्रीति से परस्पर संवाद करते हैं, वे सब के अधिष्ठान परमात्मा को प्राप्त होकर सिद्ध होते हैं॥७३॥

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    विषय

    राजसभा का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) अग्ने सूर्य के समान तेजस्विन् ! राजन् ! तू ( आजु ह्वानः ) आदर सत्कार से सम्बोधन किया जाकर ( सुप्रतीकः ) शुभ लक्षण और रूप बनाकर, सौम्य होकर ( पुरस्तात् ) आगे सबसे मुख्य, पूर्व की ओर ( साधुया ) उत्तम रीति से ( स्वं योनिम् ) अपने स्थान, मुख्य आसन पर ( आसीद ) विराज । ( अस्मिन् सधस्थ ) इस एकत्र होकर बैठने के ( उत्तरस्मिन् ) उत्कृष्ट सभाभवन में तू ( अधि ) सबसे ऊपर विराज और ( विश्वे देवा: ) समस्त विद्वान्, ज्ञानी पुरुष और ( यजमान च ) सबका सत्कार करने में कुशल राजा महामात्य और राजसभासद् गण भी ( सीदत ) विराजें । शत० ९ । २ । ३ । ३५ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निर्देवता | आर्षी त्रिष्टुप् | धैवतः ॥

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    विषय

    आजुह्वान- सुप्रतीक

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र की ही प्रेरणा इस मन्त्र में इन शब्दों से दी जा रही है-(आजुह्वान:) = तू सदा दानपूर्वक अदन करनेवाला बन [हु दान - अदन] । आचार्य के शब्दों में 'सत्कारेण आहूतः' तू इस प्रकार से शोभन आचरणवाला हो कि तुझे सब सत्कार से बुलाएँ । २. (सुप्रतीकः) = तू शोभन मुखवाला हो। तेरा चेहरा तेजस्वी हो । ३. (पुरस्तात्) = तू निरन्तर आगे बढ़नेवाला बन। (अग्ने) = प्रगतिशील जीव ! (स्वं योनिम्) = अपने घर में (साधुया) = श्रेष्ठ कर्मों से (आसीद) = आसीन हो । गृहप्रवेश के समय तूने व्रत लिया था कि 'शिवं प्रपद्ये' में कल्याणकर कर्मों को ही करूंगा, अतः तूने घर में कभी अशुभ व्यवहार नहीं करना। ५. (अस्मिन् सधस्थे) = यह घर तुम्हारा मिलकर [सह] रहने का स्थान हो, यहाँ कभी कलह न हों (अधि उत्तरस्मिन्) = इस उत्कृष्ट गृह में (विश्वे देवा:) = घर के सब लोग देव=विद्वान् व उत्तम गुणोंवाले बनकर (सीदत) = बैठो (च) = तथा (यजमानः) = प्रत्येक व्यक्ति यज्ञ के शीलवाला होकर यहाँ निवास करे । 'यजमानः' यह एकवचन इस बात का सूचक है कि सभी अपने-अपने को यज्ञशील बनाने का प्रयत्न करें-दूसरों के सुधार में ही न लगे रहें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम आजुह्वान व सुप्रतीक बनकर उन्नति करते हुए घरों में उत्तम कर्मों में आसीन हों। मिलकर चलें, देव बनें, यज्ञशील हों। यज्ञ ही तो हमें बुराइयों से बचाकर 'कुत्स' बनाएगा। यज्ञ से हम बुराइयों को भी भस्म कर देंगें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे श्रेष्ठ कर्म करतात व योगाभ्यास करणाऱ्या विद्वानांच्या संगतीत राहून परस्पर प्रेमाने संवाद करतात व सर्वांचा आधार असलेल्या परमेश्वराला प्राप्त करून घेतात ते कृतकृत्य होतात.

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    विषय

    योगज्ञ विद्वज्जनांनी कसे असावे (वागावे), याविषयी –

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (अग्ने योगाभ्यासाद्वारे ज्याचा आत्मा प्रकाशित आहे, असे हे योगी विद्वान, आपण (पुरस्तात्‌) सर्वांआधी (आजुह्वान:) सत्कारासाठी निमंत्रित करण्यास पात्र आहात (सुप्रतीक:) शुभ गुण अंगी धारण करणारे असून (यजमान:) योगविद्या शिकणारे आहात आपण (साधुया) श्रेष्ठ कर्म करीत (श्रेष्ठ आचरणद्वारे) (अस्मिन्‌) या (सधस्थे) एकत्र बसण्याच्या स्थानात (सभेमध्ये) बसून (स्वम्‌) आपल्या (योनिम्‌) (परमात्मरूप घरात) (आ, सीद) स्थित व्हा. (आपल्या आत्म्यास परमात्म्याच्या ध्यानात निमग्न करा.) (च) आणि (विश्‍वे (देवा:) दिव्य आला असणारे हे सर्व योगीजन हो, आपण आपल्या श्रेष्ठ उपचरणाद्वारे (उत्तरस्मिन्‌) उचित समयावर (योग्य वेळी) एकाच सत्य सिद्धांतावर (अधि, सीदत) स्थित व्हा. (आपल्या मतभेद होऊ नये. आपण सर्व एकविचारी असा) ॥73॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे योगाभ्यासी विद्वान लोक श्रेष्ठकर्म करीत आपसात प्रेमाने वागतात, परस्पराशी मधुर भाषण करतात, तसेच सर्वांचे जे अधिष्ठान परमेश्‍वर, त्यास प्राप्त करून सिद्ध योगी होतात. ॥73॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Thou, whose soul is enlightened with yoga, who invitest respect from those who contact thee, the master of good traits, the teacher of the science of yoga, through thy virtuous deeds, seat thyself firmly in God thy nearest home. Ye all yogis, with laudable acts, stick fast to truth after discussion.

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    Meaning

    Agni, lord of light and life, invoked and invited in yajna, splendid and gracious in form, come and settle in your own seat in front, in the east. The yajamana and all the noble souls may sit and grace this home now as well as later. May Agni shower divine grace upon us, the yajamana, and all the noble souls in this life and hereafter.

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    Translation

    O adorable leader, having been invited, may you be seated comfortably on your seat in the forefront. May in this place of sacrifice, and in higher realms all the enlightened ones and the sacrificer occupy good positions. (1)

    Notes

    Ājuhvanaḥ, अभिहूयमान:, being invited or invoked. Supratikaḥ,शोभनं मुखं यस्य, beautiful in appearance. Svam yonim, स्थानं, your place; abode; seat.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনর্বিদ্বাংসঃ কীদৃশাঃ স্যুরিত্যাহ ॥
    পুনঃ বিদ্বান্ গুণী ব্যক্তি কেমন হইবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (অগ্নে) যোগাভ্যাস দ্বারা প্রকাশিত আত্মা যুক্ত (পুরস্তাৎ) প্রথম হইতে (আজুহ্বানঃ) সৎকার সহ আহূত (সুপ্রতীকঃ) শুভগুণ প্রাপ্ত (য়জমানঃ) যোগবিদ্যা দাতা আচার্য্য! আপনি (সাধুয়া) শ্রেষ্ঠ কর্ম্ম দ্বারা (অস্মিন্) এই (সধস্থে) একই স্থানে (স্বম্) স্বীয় (য়োনিম্) পরমাত্মা রূপ গৃহে (আ, সীদ) স্থির হউন (চ) এবং হে (বিশ্বে) সকল (দেবাঃ) দিব্য আত্মযুক্ত যোগীগণ! আপনারা শ্রেষ্ঠ কর্ম্ম দ্বারা (উত্তরস্মিন্) উত্তর সময় এক সঙ্গে সত্য সিদ্ধান্তোপরি (অধি, সদীত) অধিক স্থিত হউন ॥ ৭৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যাহারা উত্তম কর্ম্ম করিয়া যোগাভ্যাসকারী বিদ্বানের সঙ্গ ও প্রীতি দ্বারা পরস্পর সংবাদ করেন, তাঁহারা সকলের অধিষ্ঠান পরমাত্মাকে প্রাপ্ত হইয়া সিদ্ধ হইয়া থাকেন ॥ ৭৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    আ॒জুহ্বা॑নঃ সু॒প্রতী॑কঃ পু॒রস্তা॒দগ্নে॒ স্বং য়োনি॒মা সী॑দ সাধু॒য়া ।
    অ॒স্মিন্ৎস॒ধস্থে॒ऽঅধ্যুত্ত॑রস্মি॒ন্ বিশ্বে॑ দেবা॒ য়জ॑মানশ্চ সীদত ॥ ৭৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    আজুহ্বান ইত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । আর্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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