यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 24
ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः
देवता - विश्वकर्मा देवता
छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
88
विश्व॑कर्मन् ह॒विषा॒ वर्द्ध॑नेन त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मकृणोरव॒ध्यम्। तस्मै॒ विशः॒ सम॑नमन्त पू॒र्वीर॒यमु॒ग्रो वि॒हव्यो॒ यथास॑त्॥२४॥
स्वर सहित पद पाठविश्व॑कर्म॒न्निति॒ विश्व॑ऽकर्मन्। ह॒विषा॑। वर्द्ध॑नेन। त्रा॒तार॑म्। इन्द्र॑म्। अ॒कृ॒णोः॒। अ॒व॒ध्यम्। तस्मै॑। विशः॑। सम्। अ॒न॒म॒न्त॒। पू॒र्वीः। अ॒यम्। उ॒ग्रः। वि॒हव्य॒ इति॑ वि॒ऽहव्यः॑। यथा॑। अस॑त् ॥२४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वकर्मन्हविषा वर्धनेन त्रातारमिन्द्रमकृणोरवध्यम् । तस्मै विशः समनमन्त पूर्वीरयमुग्रो विहव्यो यथासत् ॥
स्वर रहित पद पाठ
विश्वकर्मन्निति विश्वऽकर्मन्। हविषा। वर्द्धनेन। त्रातारम्। इन्द्रम्। अकृणोः। अवध्यम्। तस्मै। विशः। सम्। अनमन्त। पूर्वीः। अयम्। उग्रः। विहव्य इति विऽहव्यः। यथा। असत्॥२४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्यैः कीदृशो राजा मन्तव्य इत्याह॥
अन्वयः
हे विश्वकर्मन् सर्वसभेश! त्वं हविषा वर्द्धनेन यमवध्यं त्रातारमिन्द्रं राजकार्ये सम्मतिप्रदं मन्त्रिणमकृणोस्तस्मै पूर्वीर्विशः समनमन्त यथाऽयमुग्रो विहव्योऽसत् तथा विधेहि॥२४॥
पदार्थः
(विश्वकर्मन्) अखिलशुभकर्मसेविन् (हविषा) आदातव्येन (वर्द्धनेन) (त्रातारम्) रक्षकम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं (अकृणोः) कुरु (अवध्यम्) हन्तुमयोग्यम् (तस्मै) (विशः) प्रजाः (सम्) एकीभावे (अनमन्त) नमन्तु (पूर्वीः) पूर्वैर्न्यायाधीशैः प्रापिताः (अयम्) (उग्रः) हिंसने तीव्रः (विहव्यः) विविधैः साधनैरादातुमर्हः (यथा) (असत्) भवेत्॥२४॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। सर्वसभाधिष्ठात्रा सहिताः सभासदस्तस्मै राज्याधिकारं दद्युर्यः पक्षपाती न स्यात्। पितृवत् प्रजा न पालयेयुस्ते प्रजाभिर्नो मन्तव्या, ये च पुत्रमिव न्यायेन प्रजा पालयेयुस्तदनुकूलास्सततं स्युः॥२४॥
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्यों को कैसा पुरुष राजा मानना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (विश्वकर्मन्) सम्पूर्ण शुभकर्मों के सेवन करनेहारे सब सभाओं के पति राजा! आप (हविषा) ग्रहण करने योग्य (वर्द्धनेन) वृद्धि से जिस (अवध्यम्) मारने के अयोग्य (त्रातारम्) रक्षक (इन्द्रम्) उत्तम सम्पत्ति वाले पुरुष को राजकार्य में सम्मतिदाता मन्त्री (अकृणोः) करो, (तस्मै) उसके लिये (पूर्वीः) पहिले न्यायाधीशों ने प्राप्त कराई (विशः) प्रजाओं को (समनमन्त) अच्छे प्रकार नम्र करो, (यथा) जैसे (अयम्) यह मन्त्री (उग्रः) मारने में तीक्ष्ण (विहव्यः) विविध प्रकार के साधनों से स्वीकार करने योग्य (असत्) होवे, वैसा कीजिये॥२४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। सब सभाओं के अधिष्ठाता के सहित सब सभासद् उस पुरुष को राज्य का अधिकार देवें कि जो पक्षपाती न हो। जो पिता के समान प्रजाओं की रक्षा न करें, उनको प्रजा लोग भी कभी न मानें और जो पुत्र के तुल्य प्रजा की न्याय से रक्षा करें, उनके अनुकूल प्रजा निरन्तर हों॥२४॥
विषय
उग्र- विहव्य- अधृष्य, अभिगम्य
पदार्थ
१. हे (विश्वकर्मन्) = सम्पूर्ण सृष्टिरूप कर्म करनेवाले प्रभो! आप (हविषा) = दानपूर्वक अदन - त्यागपूर्वक भोग की वृत्ति से तथा (वर्द्धनेन) = सब शक्तियों के वर्धन से [वर्धते] या काम-क्रोधादि शत्रुओं के छेदन से [ वर्धयति= 1=to cut, shear] (इन्द्रम्) = इन्द्रियों के अधिष्ठाता जीव को (त्रातारम्) = अपना रक्षक, शरीर व मन को व्याधि व आधियों से बचानेवाला तथा (अवध्यम्) = वृत्रादि शत्रुओं से वध के अयोग्य (अकृणोः) = बना दीजिए । २. उत्तम जीवन के लिए आवश्यक है कि हम [क] दानपूर्वक अदनवाले हों [हविषा] । [ख] काम-क्रोधादि का छेदन करें [वर्धनेन] । [ग] इन्द्रियों के अधिष्ठाता हों [इन्द्रम्] । [घ] अपने को रोगाक्रान्त न होने दें [त्रातारम्] । [ङ] वासनाओं से वध योग्य न हो जाएँ [अवध्यम्] । ३. (तस्मै) = उल्लिखित जीवनवाले व्यक्ति के लिए (पूर्वीः विशः) = उत्कृष्ट प्रजाएँ (समनमन्त) = झुकती हैं, अर्थात् उसका आदर करती हैं। ४. हे प्रभो! आप ऐसी कृपा कीजिए कि (यथा) = जिससे (अयम्) = यह (उग्रः) = तेजस्वी तथा (विहव्यः) = विविध कार्यों में आह्वान के योग्य हो । यह सबका आदरणीय हो ।
भावार्थ
भावार्थ- हमारा जीवन तेजस्वी और विहव्य हो। हम तेजस्वी हों, परन्तु भयंकर न हों। लोगों की दृष्टि में हम आदरणीय हों। तेजस्विता के कारण हम 'अधृष्य' हों, परन्तु क्रोधादि से ऊपर उठे होने के कारण 'अभिगम्य' हों।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. सभेचे सर्व अधिष्ठाते व सभासद यांनी अशा पुरुषाला राज्याधिकार द्यावा जो पक्षपात न करता पित्याप्रमाणे प्रजेचे न्यायाने रक्षण करतो. अशा राजाला प्रजेने सदैव अनुकूल असावे. याविरुद्ध जो पित्याप्रमाणे प्रजेचे रक्षण करणारा नसेल तर प्रजेने त्याला कधीही राजा मानू नये.
विषय
लोकांनी (वा नागरिकांनी) कोणत्या व कशा व्यक्तीस राजा म्हणून मानावे (वा निवडून द्यावे) याविषयी-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (विश्वकर्मन्) सर्व शुभकर्म करणारे, सर्व सभांचे पती (राज्यसभा, धर्मार्थ सभा, विद्यार्थी सभा आदी सभांचे अध्यक्ष) हे राजा, आपण (हविषा) स्वीकार करण्यास योग्य (सर्वथा पात्र) आणि (वर्द्धनेन) सतत वृद्धी वा उन्नती करणाऱ्या (अवध्यम्) हिंसा करण्यास योग्य (ज्याचा वध करू नये) आणि (त्रातारम्) सर्वांचे रक्षण करणाऱ्या (इन्द्रम्) श्रेष्ठ संपत्तिशाली व्यक्तीला तसेच राज्यकार्यासाठी तुम्हाला (सल्ला देणाऱ्या मनुष्याला आपला मंत्री (अकृणो:) नेमा. (तस्मै) त्याच्याकरिता (पूर्वी:) पूर्वी झालेल्या न्यायाधीशांनी (विश:) ज्या प्रजेला (समनमन्त) चांगल्याप्रकारे नम्र व सुजाण केले आहे (तशा प्रकारे तुम्हीही प्रजाजनांना सदाचारी व परिश्रमी बनवा) (यथा) (याशिवाय असे कार्य साधनें करा की) ज्यायोगे (अयम्) ह तुमचा मंत्री (उग्र:) (दंडित करण्याच्या कामी कठोर) वा उग्र होईल (तसेच ही) (विहव्य:) विविध साधनांनी संपन्न (असत्) होईल, असे करा. ॥24॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. राज्यार्थसभा, विद्यार्थसभा आदी सर्व सभांचे सभाध्यक्ष तसेच सर्व सभासद, यांचे कर्तव्य आहे की त्यानी अशाच व्यक्तीला राज्याधिकार द्यावा (वा राजा म्हणून नेमावे) की जो पक्षपाती नसावा. पिता जसा पुत्राशी त्याप्रमाणे जो मनुष्य प्रजेशी वागत नसले व तिचे रक्षण करीत नसेल, त्या व्यक्तीस प्रजेने मुळीच मान्यता देऊ नये. जो मनुष्य आपल्या पुत्राप्रमाणे प्रजेचे न्याय मार्गाने रक्षण करणारा असेल, प्रजेने त्याच्याशी अनुकूलतेने वागावे ॥24॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O King, the lover of noble actions, the head of all Assemblies, select him as thy minister for advice in state affairs, who is highly serviceable, dignified, unworthy of harm, protector, and wealthy. Let the good subjects bow unto him ; so that this minister be quick to hurt, and fit to be respected in various ways.
Meaning
Vishvakarma, lord President of the total activity of humanity/the nation, with the growth and advancement arising from the developmental activities of the people working with yajnic dedication in unison, we pray, appoint Indra, a man of power and glory as minister for defence who should be an inviolable defender of the world/the land, so that all the people bow to him in acceptance and reverence and (with that universal support) he becomes mighty and formidable in action.
Translation
O Universa! Architect, with strengthening libation you have made the resplendent one (indra) protector of people and inviolable. The people from the earliest bow to him so tha the may become strong and worthy of adoration. (1)
बंगाली (1)
विषय
মনুষ্যৈঃ কীদৃশো রাজা মন্তব্য ইত্যাহ ॥
মনুষ্যদিগকে কেমন পুরুষকে রাজা স্বীকার করা কর্ত্তব্য, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (বিশ্বকর্মন্) সম্পূর্ণ শুভ কর্মগুলির সেবনকারী সকল সভার পতি রাজা! আপনি (হবিষা) গ্রহণীয় (বর্দ্ধনেন) বৃদ্ধি পূর্বক (অবধ্যম্) বধ করিবার অযোগ্য (ত্রাতারম্) রক্ষক (ইন্দ্রম্) উত্তম সম্পত্তিসম্পন্ন পুরুষকে রাজ কার্য্যে সম্মতিদাতা মন্ত্রী (অকৃণোঃ) করুন । (তস্মৈ) তাহার জন্য (পূর্বীঃ) প্রথম ন্যায়াধীশগণ প্রাপ্ত করাইয়াছেন যে (বিশঃ) প্রজাদিগকে (সমনমন্ত) উত্তম প্রকার নম্র করুন (যথা) যেমন (অয়ম্) এই মন্ত্রী, (উগ্রঃ) বধ করিতে তীক্ষ্ন (বিহব্যঃ) বিবিধ প্রকারের সাধন দ্বারা স্বীকার করিবার যোগ্য (অসৎ) হউন সেইরূপ করুন ॥ ২৪ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । সব সভার অধিষ্ঠাতা সহ সব সভাসদ সেই পুরুষকে রাজ্যাধিকার প্রদান করিবেন যিনি পক্ষপাতী নহেন । যিনি পিতার ন্যায় প্রজাদিগের রক্ষা করেন না, তাঁহাকে প্রজাগণ কখনও স্বীকার করিবেন না এবং যিনি পুত্রতুল্য প্রজাকে ন্যায়পূর্বক রক্ষা করিবেন তাঁহার অনুকূলে প্রজা নিরন্তর হইবে ॥ ২৪ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বিশ্ব॑কর্মন্ হ॒বিষা॒ বর্দ্ধ॑নেন ত্রা॒তার॒মিন্দ্র॑মকৃণোরব॒ধ্যম্ ।
তস্মৈ॒ বিশঃ॒ সম॑নমন্ত পূ॒র্বীর॒য়মু॒গ্রো বি॒হব্যো॒ য়থাস॑ৎ ॥ ২৪ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বিশ্বকর্মন্নিত্যস্য ভুবনপুত্রো বিশ্বকর্মা ঋষিঃ । বিশ্বকর্মা দেবতা । নিচৃদার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বর ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal