यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 81
ऋषिः - सप्तऋषय ऋषयः
देवता - मरुतो देवताः
छन्दः - आर्षी गायत्री
स्वरः - षड्जः
95
ई॒दृङ् चा॑न्या॒दृङ् च॑ स॒दृङ् च॒ प्रति॑सदृङ् च। मि॒तश्च॒ सम्मि॑तश्च॒ सभ॑राः॥८१॥
स्वर सहित पद पाठई॒दृङ्। च॒। अ॒न्या॒दृङ्। च॒। स॒दृङ्। स॒दृङिति॑ स॒ऽदृङ्। च॒। प्रति॑सदृ॒ङ्ङिति॒ प्रति॑ऽसदृङ्। च॒। मि॒तः। च॒। सम्मि॑त॒ इति॒ सम्ऽमि॑तः। च॒। सभ॑रा॒ इति॒ सऽभ॑राः ॥८१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ईदृङ्चान्यदृङ्च सदृङ्च प्रतिसदृङ्च । मितश्च सम्मितश्च सभराः ॥
स्वर रहित पद पाठ
ईदृङ्। च। अन्यादृङ्। च। सदृङ्। सदृङिति सऽदृङ्। च। प्रतिसदृङ्ङिति प्रतिऽसदृङ्। च। मितः। च। सम्मित इति सम्ऽमितः। च। सभरा इति सऽभराः॥८१॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वान् कीदृशो भवेदित्याह॥
अन्वयः
ये पुरुषा ईदृङ् चान्यादृङ् च सदृङ् च प्रतिसदृङ् च मितश्च सम्मितश्च सभराश्च वर्त्तन्ते, ते व्यावहारिकीं कार्यसिद्धिं कर्त्तुं शक्नुवन्ति॥८१॥
पदार्थः
(ईदृङ्) अनेन तुल्यः (च) (अन्यादृङ्) अन्येन समानः (च) (सदृङ्) समानं पश्यति स सदृङ् (च) (प्रतिसदृङ्) तं तं प्रति सदृशं पश्यति (च) (मितः) मानं प्राप्तः (च) (सम्मितः) सम्यक् परिमितः (च) (सभराः) समानं बिभ्रतीति सभराः॥८१॥
भावार्थः
यो मनुष्य ईश्वरतुल्य उत्तमस्तदनुकरणं कृत्वा सत्यं धरत्यसत्यं त्यजति, स एव योग्योऽस्ति॥८१॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
जो पुरुष (ईदृङ्) इसके तुल्य (च) भी (अन्यादृङ्) और के समान (च) भी (सदृङ्) समान देखने वाला (च) भी (प्रतिसदृङ्) उस उसके प्रति सदृश देखने वाला (च) भी (मितः) मान को प्राप्त (च) भी (सम्मितः) अच्छे प्रकार परिणाम किया गया (च) और जो (सभराः) समान धारणा को करने वाले वर्त्तमान हैं, वे व्यवहारसम्बन्धी कार्य्यसिद्धि कर सकते हैं॥८१॥
भावार्थ
जो मनुष्य ईश्वर के तुल्य उत्तम और ईश्वर के समान काम को करके सत्य को धारण करता और असत्य का त्याग करता है, वही योग्य है॥८१॥
विषय
ऋत आदि सात प्रकार की विवेचना।
भावार्थ
( इदृङ् ) यह ऐसा है, ( अन्यादृङ् च ) यह अन्य के समान है अर्थात् इसके समान और भी हैं, ( सदृङ् च ) यह और यह समान है । ( प्रतिसदृङ् च ) प्रत्येक पदार्थ इस अंश में समान है ( मित: च ) यह इतने परिमाण का है, ( समितः च) अच्छी प्रकार यह अमुक पदार्थ के बराबर ही परिमाण वाला है। ( सभराः ) ये सब पदार्थ समान भार वाले या समान वस्तु को धारण करते हैं। इस प्रकार सातों प्रकार से देखने वाले विद्वान् राजा के राज्य विभागों में कार्य करें। और उनके 'इर्दृङ्' आदि ही नाम हों । इसी प्रकार सात प्रकार से विवेचना करने वाला होने से उनका मुख्य पुरुष और परमेश्वर भी इन सात नामों से कहाता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मरुतो देवताः । आर्षी गायत्री | षड्जः ॥
विषय
प्राणसाधना से युक्ताहारविहार
पदार्थ
१. गत मन्त्र का प्राणसाधक संसार के स्वरूप को भी ठीक-ठीक समझता है। वह यह जान लेता है कि यह संसार [क] (ईदृङ च) = [अनेन तुल्यः] ऐसा ही है। संसार के अन्दर मुझे कृतघ्नता व पिशुनता लगती है। कई बार मैं इस संसार से घृणा करने लगता हूँ, परन्तु प्राणसाधना करने पर मुझे ये सब कुछ स्वाभाविक-सी दिखती हैं और मैं संसार को उसके ठीक रूप में देखने लगता हूँ और कह उठता हूँ कि (ईदृङ् च) = यह तो ऐसा है ही [ख] (अन्यादृङ् च) = [अन्येन समान:] दूसरे जैसा भी तो है ही। इसमें कुछ 'दुर्हृद्' हैं तो 'सुहृद्' भी हैं ही। दुर्जन हैं तो सज्जन भी हैं। [ग] (सदृङ् च) = [समानं पश्यति] बहुत-से व्यक्ति ठीक मेरे जैसे भी यहाँ दिखते हैं। [घ] और (प्रतिसदृङ् च) = [तं तं प्रतिसदृशं पश्यति] ऐसे भी लोग हैं जोकि उस उस व्यक्ति के अनुकूल अपने को बना लेते हैं। संसार में मेधावी पुरुष अपने सम्पर्क में आनेवाले पुरुषों के साथ अपने को अनुकूल बनाने का प्रयत्न करता ही है। २. इस प्रकार संसार के स्वरूप को ठीक-ठीक देखता हुआ, लोगों की मनोवृत्तियों को समझता हुआ यह अपने निजू व्यवहार में (मितः च) = [मितं अस्य अस्ति ] प्रत्येक वस्तु को मितरूप से, अर्थात् माप-तोलकर करनेवाला होता है। (संमितश्च) = खानपान में तो पूर्णतया मित होता है। सम्यक्तया मित आहार-विहार के कारण यह पूर्ण स्वस्थ रहता है। ३. सब कर्मों में युक्त चेष्ट तथा मित आहार-विहारवाला होने के साथ यह (सभराः) = [सह बिभर्ति] मिलकर भरण-पोषण करनेवाला होता है, कभी अकेला खानेवाला नहीं बनता।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से १. यह संसार को ठीक रूप में देखता है। २. मपी-तुली क्रियाओंवाला होता है। ३. सबके साथ मिलकर खाता है, 'केवलादी' नहीं बनता। दूसरे शब्दों में यज्ञशेष खानेवाला होता है।
मराठी (2)
भावार्थ
जो माणूस (ईश्वराप्रमाणे) उत्तम असून तसेच काम करतो व सत्याला धारण करून असत्याचा त्याग करतो तोच श्रेष्ठ असतो.
विषय
विद्वानाने कसे असावे, याविषयी-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - जो माणूस (ईहड्) या माणसाला (च) आणि (अन्यादृड्) त्या माणसाला (च) आणि (सदृड्) सर्वांना समान पाहणारा आहे (च) आणखी जो (प्रतिसदृड्) याला त्याला एकसमान (स्नेहदृष्टीने) पाहणारा आहे (च) तसेच जो (मित:) सम्मानित वा सर्वांद्वारा प्रतिष्ठा प्राप्त (सर्वप्रिय व सर्वमान्य) आहे, (च) आणखी जो (संमित:) चांगला संयमशील (च) व (सभरा:) सर्वांना समानपणे धारण करणारा (सर्वांचा आधार असलेला, सर्वांना साहाय्य करणारा आहे, तोच माणूस किंवा तीच माणसें आचरणाद्वारे कार्यसिद्धी करू शकतात ॥81॥
भावार्थ
भावार्थ - जो माणूस ईश्वराप्रमाणे उत्तम होण्याचा प्रयत्न करतो, ईश्वराप्रमाणेच सत्य व्यवहार करीत नेहमी सत्याचे ग्रहण आणि असत्याचा त्याग करतो, तोच श्रेष्ठ माणूस आहे. त्यास श्रेष्ठ माणूस म्हणावे ॥181॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Persons, who are excellent like God, noble like other good people, equal towards all, affectionate towards all, respectable, well-balanced, and possessors of worldly objects, succeed in life.
Meaning
Men of single vision, men of others’ (objective) vision, men of comprehensive vision, men of discreet vision, men of measure, men measured around by all, and men who support and sustain all — they are the men, they are the Maruts who succeed at top speed.
Translation
Of this type (idrn), of the other type (anyadrn), of the same type (sadrn), of the anti-type (prati-sadrn), measured (mitah), symmetrical (sammitah), and of equal weight (sabharah); (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনর্বিদ্বান্ কীদৃশো ভবেদিত্যাহ ॥
পুনঃ বিদ্বান্ কেমন হইবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–যে পুরুষ (ঈদৃঙ্) ইহার তুল্য (চ) ও (অন্যাদৃঙ্) অপরের সমান (চ) ও (সদৃঙ্) সমান দর্শনকারী (চ) ও (প্রতিসদৃঙ্) তাহার তাহার প্রতি সদৃশ দর্শনকারী (চ) ও (মিতঃ) মান প্রাপ্ত (চ) ও (সংমিতঃ) উত্তম প্রকার পরিণাম করা হইয়াছে (চ) এবং যে (সভরাঃ) সমান ধারণাকারী বর্ত্তমান, তাহারা ব্যবহার সম্বন্ধীয় কার্য্যসিদ্ধি করিতে পারে ॥ ৮১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যে মনুষ্য ঈশ্বরতুল্য উত্তম এবং ঈশ্বরের সমান কর্ম্মকে করিয়া সত্যের ধারণ করে এবং অসত্য ত্যাগ করে, সেই যোগ্য ॥ ৮১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ঈ॒দৃঙ্ চা॑ন্যা॒দৃঙ্ চ॑ স॒দৃঙ্ চ॒ প্রতি॑সদৃঙ্ চ ।
মি॒তশ্চ॒ সম্মি॑তশ্চ॒ সভ॑রাঃ ॥ ৮১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ঈদৃঙ্ চেত্যস্য সপ্তঋষয় ঋষয়ঃ । মরুতো দেবতাঃ । আর্ষী গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal