यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 19
ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः
देवता - विश्वकर्मा देवता
छन्दः - भुरिगार्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
259
वि॒श्वत॑श्चक्षुरु॒त वि॒श्वतो॑मुखो वि॒श्वतो॑बाहुरु॒त वि॒श्वत॑स्पात्। सं बा॒हुभ्यां॒ धम॑ति॒ सं पत॑त्रै॒र्द्यावा॒भूमी॑ ज॒नय॑न् दे॒वऽएकः॑॥१९॥
स्वर सहित पद पाठवि॒श्वत॑श्चक्षु॒रिति॑ वि॒श्वतः॑ऽचक्षुः। उ॒त। वि॒श्वतो॑मुख॒ इति॑ वि॒श्वतः॑ऽमुखः। वि॒श्वतो॑बाहु॒रिति॑ वि॒श्वतः॑ऽबाहुः। उ॒त। वि॒श्वत॑स्पात्। वि॒श्वतः॑ऽपा॒दिति॑ वि॒श्वतः॑ऽपात्। सम्। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। धम॑ति। सम्। पत॑त्रैः। द्यावा॒भूमी॒ इति॒ द्यावा॒भूमी॑। ज॒नय॑न्। दे॒वः। एकः॑ ॥१९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् । सम्बाहुभ्यान्धमति सम्पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देवऽएकः ॥
स्वर रहित पद पाठ
विश्वतश्चक्षुरिति विश्वतःऽचक्षुः। उत। विश्वतोमुख इति विश्वतःऽमुखः। विश्वतोबाहुरिति विश्वतःऽबाहुः। उत। विश्वतस्पात्। विश्वतःऽपादिति विश्वतःऽपात्। सम्। बाहुभ्यामिति बाहुऽभ्याम्। धमति। सम्। पतत्रैः। द्यावाभूमी इति द्यावाभूमी। जनयन्। देवः। एकः॥१९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तदेवाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यूयं यो विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पादेको देवः पतत्रैर्द्यावाभूमी संजनयन् सन् बाहुभ्यां सर्वं जगत् संधमति, तमेवेष्टमुपास्यमभिरक्षकं परमेश्वरं जानीत॥१९॥
पदार्थः
(विश्वतश्चक्षुः) विश्वतः सर्वस्मिञ्जगति चक्षुर्दर्शनं यस्य सः (उत) अपि (विश्वतोमुखः) विश्वतः सर्वतो मुखमुपदेशनमस्य सः (विश्वतोबाहुः) सर्वतो बाहुर्बलं वीर्यं वा यस्य सः (उत) अपि (विश्वतस्पात्) विश्वतः सर्वत्र पात् गतिर्व्याप्तिर्यस्य सः (सम्) सम्यक् (बाहुभ्याम्) अनन्ताभ्यां बलवीर्य्याभ्याम् (धमति) प्राप्नोति। धमतीति गतिकर्मा॥ (निघं॰२.१४) (सम्) (पतत्रैः) पतनशीलैः परमाण्वादिभिः (द्यावाभूमी) सूर्य्यपृथिवीलोकौ (जनयन्) कार्यरूपेण प्रकटयन् सन् (देवः) स्वप्रकाशः (एकः) अद्वितीयोऽसहायः॥१९॥
भावार्थः
यस्सूक्ष्मात् सूक्ष्मो महतो महान् निराकारोऽनन्तसामर्थ्यः सर्वत्राभिव्याप्तो देवोऽद्वितीयः परमात्माऽस्ति, स एवातिसूक्ष्मात् कारणात् स्थूलं कार्यं रचयितुं विनाशयितुं वा समर्थो वर्त्तते। य एतस्योपासनं विहायान्यमुपास्ते कस्तस्मादन्यो जगति दुर्भगोऽस्ति॥१९॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! तुम लोग जो (विश्वतश्चक्षुः) सब संसार को देखने (उत) और (विश्वतोमुखः) सब ओर से सब का उपदेश करनेहारा (विश्वतोबाहुः) सब प्रकार से अनन्त बल तथा पराक्रम से युक्त (उत) और (विश्वतस्पात्) सर्वत्र व्याप्ति वाला (एकः) अद्वितीय सहायरहित (देवः) अपने आप प्रकाशस्वरूप (पतत्रैः) क्रियाशील परमाणु आदि से (द्यावाभूमी) सूर्य्य और पृथिवी लोक को (सम्, जनयन्) कार्य्यरूप प्रकट करता हुआ (बाहुभ्याम्) अनन्त बल पराक्रम से सब जगत् को (सम्, धमति) सम्यक् प्राप्त हो रहा है, उसी परमेश्वर को अपना सब ओर से रक्षक उपास्यदेव जानो॥१९॥
भावार्थ
जो सूक्ष्म से सूक्ष्म, बड़े से बड़ा, निराकार, अनन्त सामर्थ्य वाला, सर्वत्र अभिव्याप्त, प्रकाशस्वरूप, अद्वितीय परमात्मा है, वही अति सूक्ष्म कारण से स्थूल कार्यरूप जगत् के रचने और विनाश करने को समर्थ है। जो पुरुष इसको छोड़ अन्य की उपासना करता है, उससे अन्य जगत् में भाग्यहीन कौन पुरुष है?॥१९॥
विषय
स्तुतिविषयः
व्याखान
(विश्वतः चक्षुः) विश्व [सब जगत् में] जिसका चक्षु [दृष्टि] है, जिससे अदृष्ट कोई वस्तु नहीं है तथा जिसके (विश्वतोमुखः विश्वतः बाहुः उत विश्वतः पात्) सर्वत्र मुख, बाहु, पग तथा अन्य श्रोत्रादि भी हैं, अर्थात् वही सर्वदृक्, सर्ववक्ता, सर्वाधारक और सर्वगत, व्यापक ईश्वर है। उसी से जो डरेगा वही धर्मात्मा होगा, अन्यथा कभी नहीं । वही विश्वकर्मा परमात्मा एक ही और अद्वितीय है। (द्यावाभूमी संजनयन्) पृथिवी से लेके स्वर्गपर्यन्त जगत् का कर्त्ता है, जिस-जिसने जैसा- जैसा पाप वा पुण्य किया है, उस-उसको न्यायकारी, दयालु जगत्पिता पक्षपात छोड़के (बाहुभ्याम्) अनन्त बल और पराक्रम- इन दोनों बाहुओं से सम्यक् (पतत्रैः) प्राप्त होनेवाले सुख-दुःख फल दान से सब जीवों को (धमति) [धमन-कम्पन] यथायोग्य जन्ममरणादि को प्राप्त करा रहा है। उसी निराकार, अज, अनन्त, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयामय, ईश्वर से अन्य को कभी न मानना चाहिए । वही याचनीय, पूजनीय, हमारा प्रभु स्वामी और इष्टदेव है, उसी से हमको सुख होगा, अन्य से कभी नहीं ॥ ३४ ॥
विषय
विराटस्वरूप सम्राट् । पक्षान्तर में परमेश्वर का विराट् रूप ।
भावार्थ
राजा के पक्ष में - वह राजा विजिगीषु स्वयं ( विश्वतः चक्षु: ) चरों और मन्त्रियों द्वारा सब ओर अपनी आंख रखता है। वह ( विश्वतो मुखः ) सब ओर अपना मुख रखता है । ( विश्वतो बाहुः ) वह सब ओर अपने शत्रुओं को पीड़न करने वाली बाहुएं रखता है। और ( विश्वतः पात् ) सब ओर शत्रु पर आक्रमण करने के कदम बढ़ाता रहता है | वह ( बाहुभ्याम् ) बाहु के समान सेना के दोनों पक्षों से संग्रामभूमि में ( संघमति ) आगे बढ़ता है और ( पतत्रैः ) अपने सेना दल रूप पक्षों या आगे बढ़ने वाले दस्तों सहित ( संघमति । शत्रु पर जा चढ़ता है। ( द्यावाभूमी ) योग्य भूमि और भूमिस्थ प्रजाओं और द्यो = सूर्य के समान भोक्ता राजा दोनों को ( जनयन् ) स्वयं पैदा करता हुआ ( एकः देवः ) एकमात्र विजयी होकर विराजता है । ईश्वर के पक्ष में - वह परमेश्वर ( विश्वतः चक्षुः ) सर्वत्र आँख वाला, सर्वत्र द्रष्टा, ( विश्वतः मुखः ) सर्वत्र ज्ञानोपदेशक मुख वाला, ( विश्वतो बाहुः ) सर्वत्र वीर्यरूप बाहुमान् और ( विश्वतः पात् ) सर्वत्र चरण वाला है । अर्थात् वह सब प्रकार की शक्तियों से सर्वत्र व्याप्त है। वह ( बहुभ्याम् ) अनन्त बल वीर्यों द्वारा ( एकः देवः ) अकेला देव ( द्यावाभूमी जनयन् ) आकाशस्थ और भूमि और भूमिस्थ पदार्थों को रचता हुआ ( पतत्रैः व्यापनशील या प्रगतिशील प्रकृति के परमाणुओं से ( सं धमति ) संसार को सुव्यवस्थित करता और रचता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रिष्टुभः । धैवतः ॥
विषय
विश्वतश्चक्षुः पतत्रै
पदार्थ
१. गत मन्त्र के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहते हैं कि वह (विश्वकर्मा विश्वतश्चक्षुः) = सब ओर चक्षु शक्तिवाला है, (उत विश्वतोमुखः) = और सब ओर वे प्रभु मुख की शक्तिवाले हैं। (विश्वतोबाहुः) = उनमें सब ओर बाहुओं की ग्रहणशक्ति है (उत) = और (विश्वतस्पात्) = सब ओर पाँवों की शक्ति है। वस्तुतः उस-उस इन्द्रिय से रहित होते हुए भी वे प्रभु उस-उस इन्द्रिय की शक्तिवाले हैं। वे सर्वव्यापक हैं। अव्यापक व एकदेशी को ही आधार की आवश्यकता होती है। सर्वव्यापक प्रभु के लिए किसी ऐसे आधार की आवश्यकता नहीं है। २. ये प्रभु इस सृष्टि का निर्माण क्यों करते हैं? इस प्रश्न का भी प्रसङ्ग-वश उत्तर देते हुए कहते हैं कि (बाहुभ्याम्) = [बाहुस्थानीयाभ्यां धर्माधर्माभ्याम्] जीवों के धर्माधर्म के कारण संधमति [धमतिर्गत्यर्थः] इस सृष्टि निर्माण की क्रिया को सम्यक्तया करते हैं। यदि जीव का धर्माधर्म न हो तो इस सृष्टि के बनाने का प्रयोजन ही न रह जाए। प्रभु कोई अपनी क्रीड़ा के लिए इस संसार को नहीं बना देते । ३. उपादान क्या है? इसका उत्तर देते हुए कहते हैं वह (एकः देवः) = चक्र, सूत्र आदि उपकरणों से रहित अकेला देव ही (पतत्रैः) = [पतनशीलैः परमाण्वादिभि:- द०] निरन्तर गति में वर्त्तमान अथवा गति स्वभाववाले परमाणुओं से (द्यावाभूमी) = द्युलोक व पृथिवीलोक को (सं जनयन्) = सम्यक् आविर्भूत करता है। ४. एवं गत मन्त्र के प्रश्नों का उत्तर यह हुआ कि (क) सर्वव्यापक होने के कारण उस प्रभु का कोई अधिष्ठान नहीं है। (ख) निरन्तर गतिशील परमाणु ही वे उपादान हैं जिनसे प्रभु सृष्टि को बनाते हैं। (ग) सर्वशक्तिमान् व सर्वव्यापक होने के कारण प्रभु को चक्र, सूत्रादि उपकरणों की आवश्यकता नहीं है। केवल जीवों के धर्माधर्म, इष्टानिष्ट प्रयत्न (बाह्र = प्रयत्न) ही अपेक्षित हैं। इनके न होने पर तो यह सृष्टि प्रभु की एक वैषम्य व नैर्घृण्य (पक्षपात व क्रूरता) से भरी क्रूर-क्रीड़ा ही प्रतीत होने लगती ।
भावार्थ
भावार्थ- वे सर्वव्यापक प्रभु, अपने स्वरूप में ही स्थित हुए, जीवों के धर्माधर्म की अपेक्षा से निरन्तर क्रियाशील परमाणुओं से सृष्टि का निर्माण कर देते हैं। उन्हें किन्हीं उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती ।
मराठी (3)
भावार्थ
जो सूक्ष्माहून सूक्ष्म, मोठ्यात मोठा, निराकार, अनंत सामर्थ्यवान, सर्वत्र व्याप्त, प्रकाशस्वरूप, अद्वितीय असा परमेश्वरच अत्यंत सूक्ष्म कारणाने स्थूल कार्यरूप जग उत्पन्न करतो व त्याचा विनाश करण्यचे सामर्थ्यही त्याच्यामध्ये असते. जो मनुष्य त्याला सोडून इतरांची उपासना करतो त्याच्यापेक्षा दुर्दैवी या जगात कोण असू शकेल?
विषय
पुनश्च, तोच विषय (ईश्वराचे स्वरूप)
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (तुम्ही या परमात्म्याचीच उपासना करीत जा की जो) (विश्वतश्चक्षु:) सर्व जगाला पाहणारा (सर्वत्र व्यापक असल्यामुळे सर्व पदार्थांचे ज्ञान असणारा) आहे, (उत) आणखीही जो (विश्वतोमुख:) सर्वांना सर्व प्रकारे उपदेश देणारा (प्रत्येकाच्या हृदयात कर्तव्य-अकर्तव्याचा विवेक ) आहे, जो (विश्वतोबाहु:) सर्वप्रकारे अनंत अपार शक्ती आणि पराक्रमाने युक्त आहे (उत) आणि जो परमेश्वर (विश्वतस्पात्) सर्वत्र व्यापक, अद्वितीय आणि पूर्णत्वाने आत्मनिर्भर असा (एक:) केवळ एकच (देव:) प्रकाशरुप परमेश्वर आहे. तोच (पतत्रै:) परमाणू आदीपासून (द्यावाभूमी) सूर्यलोक आणि पृथ्वीलोकाला (सं, जस्यन्) कार्य रुपाने प्रकट करतो आणि (कारणरूप प्रकृती परमाणूंपासून कार्य रुप जगाची उत्पत्ती करतो आणि आपल्या (बाहुभ्याम्) अनंत भक्ती-सामर्थ्याद्वारे साऱ्या विश्वाला (सं. धमति) सम्यकरीत्या व्यापून आहे. मनुष्यांनो, तुम्ही त्याच परमेश्वराला आपला रक्षककर्ता आणि उपास्यदेव माना. ॥19॥
भावार्थ
भावार्थ- जो सूक्ष्माहून सूक्ष्म आहे, निराकार, अपार सामर्थ्यशाली, सर्वव्यापी, प्रकाशस्वरूप आणि अद्वितीय आहे, तोच परमेश्वर अतिसूक्ष्म कारण रुप (प्रकृति) पासून स्थूल कार्यरूप (व्यक्त) जगाची रचना करणारा आणि विनाश करणारा आहे. (केवळ तोच जगाची उत्पत्ती, पालन, विनाश आदी कार्ये करण्यात समर्थ आहे.) जो माणूस अशा गुणयुक्त परमेश्वराला सोडून अन्य कोणाची तरी उपासना करतो, त्याच्याहून अधिक दुर्देवी असा जगात कोण असेल, बरे? ॥19॥
विषय
स्तुती
व्याखान
ज्याच्या दृष्टीपासून जगातील कोणतीही गोष्ट लपू शकत नाही. ज्याचे मुख वाटू, पाय, व श्रोत्रादि अवयव सर्वत्र पसरलेले आहेत. अर्थात ईश्वर सर्वडक, सर्ववक्ता, सर्वधारक, सर्वगत आणि सर्वव्यापक आहे. जो त्या ईश्वराला भितो तोच धर्मात्मा बनतो. अन्यथा कुणीही कधीही धर्मात्मा बनू शकत नाही. तो विश्वकर्मा परमेश्वर अद्वितीय आहे. पृथ्वीपासून स्वर्गापर्यंत जगाचा कर्ता तोच आहे. ज्याने असे पाप किंवा पुण्य कर्म केले त्याला न्यायकारी, दयाळू, जगतपिता भेदभाव न करता आपल्या अनंत बळ व पराक्रम या दोन बाहूंनी (पतत्रैः) सुखदुःखाचे सम्यक फळ [जन्म करण इत्यादी] (धमति) यथायोग्यरित्या सर्व जीवांना देत आहे. त्याच निराकार, अज, अनन्त, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयाळू, ईश्वराखेरीज कधीही कूणालाही मानता कामा नये, तोच पूजनीय प्रभू आमचा स्वामी आणि इष्टदेव आहे. त्याच्यामुळेच आम्हाला सुखाचा लाम होईल दुसऱ्याकडून नाही.॥३४॥
इंग्लिश (4)
Meaning
God keeps an eye on the whole world, preaches morality to humanity, is full of immense strength, is present everywhere. The Incomparable One Effulgent Lord, with mobile atoms, producing the Earth and Heaven, with His mighty force puts the universe in motion.
Meaning
Vishvakarma, the one absolute self-effulgent lord of the universe, with universal eye to watch, and universal mouth to reveal the Word, and universal arms for action, and universal feet for omnipresence, having created the heaven and earth from dynamic particles of Prakriti, keeps the universe in constant motion with his mighty arms of omnipotence.
Purport
Whose eyes are over the whole world, nothing is hidden from whose sight, whose mouth, arms, feet and ears etc. are everywhere i.e., He is the Seer of all. He speaks in the hearts of all. He is Upholder-Sustainer and Lord of all. He is Omnipresent and pervades all. The person who is afraid of Him, will be a righteous man, otherwise he cannot be a man of of high charactor.
That Greatest Architect the Creator of the world is matchless one without a second. From the earth to the heaven He is the Creator of the whole world. The man, who has commited sins or he who has performed good actions, to him the Just and Merciful Lord without favour or partiality with his two arms of Infinite Strength and Valour, gives the reward of his actions in the form of happiness and misery, birth and death in the world.
We should not put our trust in anyone else except Him, who is formless, Unborn, Infinite, Omnipotent, Just and Merciful. He is only to be prayed-solicited or requested. He is adorable, our Lord, Master and cherished-loving Deity. Only from Him alone we can attain happiness and prosperity and through none else.
Translation
Having eyes all around, mouths all around, arms all around and feet all around, that Lord alone, while creating this heaven and earth, forges them in proper order with His both the arms and with numerous wings. (1)
Notes
Viśvataḥ, on all sides; all around. Patatraih, पतत्रै: पद्भि:, with feet. Also, with wings. 7 Mahīdhara interprets बाहुभ्यां as बाहुस्थानीयाभ्यां धर्माधर्माभ्यां, with virtue and vice representing two arms, and पतत्रैः पतनशीलैः अनित्यैः पञ्चभूतैश्च, with five elements, which are transient. as Sam dhamati, धमतिर्गत्यर्थ:, Vdhama means to move. संगमयति,संयोजयति , combines; mixes. Also, welds.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তদেবাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! তোমরা (বিশ্বতশ্চক্ষুঃ) সকল সংসারকে লক্ষ্যকারী (উত) এবং (বিশ্বতোমুখঃ) সকল দিক দিয়া সকলকে উপদেশকারী (বিশ্বতোবাহুঃ) সর্ব প্রকারে অনন্ত বল তথা পরাক্রম যুক্ত (উত) এবং (বিশ্বতস্পাৎ) সর্বত্র ব্যাপ্তিবিশিষ্ট (একঃ) অদ্বিতীয় সহায়রহিত (দেবঃ) স্বয়ং প্রকাশস্বরূপ (পতত্রৈঃ) ক্রিয়াশীল পরমাণু আদি দ্বারা (দ্যাবাভূমী) সূর্য্য ও পৃথিবী লোককে (সং, জনয়ন্) কার্য্যরূপ প্রকট করিয়া (বাহুভ্যাম্) অত্যন্ত বল পরাক্রম দ্বারা সকল জগৎকে (সং, ধমতি) সম্যক্ প্রাপ্ত হইতেছেন সেই পরমেশ্বরকে নিজের সকল দিক দিয়া নিজের রক্ষক উপাস্যদেব জান ॥ ১ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যিনি সূক্ষ্ম হইতে সূক্ষ্ম, বৃহৎ হইতে বৃহৎ, নিরাকার, অনন্ত সামর্থ্যযুক্ত, সর্বত্র অভিব্যাপ্ত, প্রকাশস্বরূপ, অদ্বিতীয় পরমাত্মা, তিনি অত্যন্ত সূক্ষ্ম কার্য্যরূপ জগৎ রচনা ও বিনাশ করিতে সক্ষম । যে পুরুষ তাঁহাকে ত্যাগ করিয়া অন্যের উপাসনা করে তাহার অপেক্ষা অন্য জগতে ভাগ্যহীন পুরুষ কে? ॥ ১ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বি॒শ্বত॑শ্চক্ষুরু॒ত বি॒শ্বতো॑মুখো বি॒শ্বতো॑বাহুরু॒ত বি॒শ্বত॑স্পাৎ ।
সং বা॒হুভ্যাং॒ ধম॑তি॒ সং পত॑ত্রৈ॒র্দ্যাবা॒ভূমী॑ জ॒নয়॑ন্ দে॒বऽএকঃ॑ ॥ ১ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বিশ্বত ইত্যস্য ভুবনপুত্রো বিশ্বকর্মা ঋষিঃ । বিশ্বকর্মা দেবতা । ভুরিগার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
नेपाली (1)
विषय
स्तुतिविषयः
व्याखान
विश्वतः चक्षुः - विश्व अर्थात् सकल जगत् मा जसका चक्षु अर्थात् आँखा छन्, जसबाट अदृष्ट कुनै वस्तु छैन तथा जसका विश्वतोमुखः विश्वतः बाहुः उत विश्वतः पात्-सर्वत्र मुख, सर्वत्र बाहु, सर्वत्र पाद तथा अन्य श्रोत्रादि पनि छन् । अर्थात् उही सर्वदृक् सर्ववक्ता, सर्वाधारक र सर्वगत, व्यापक ईश्वर छ । उसै संग जो व्यक्ति डराउँछ उही धर्मात्मा हो । तेही विश्वकर्मा परमात्मा -एकमात्र र अद्वितीय छ। द्यावाभूमी संजनयन् = पृथिवी देखि लिएर स्वर्गपर्यन्त जगत् को कर्त्ता हो । ज-जसले ज-जस्तो पाप वा पुण्य गरेको छ, तेस-तेस लाई न्यायकारी दयालु जगत्पिता ले पक्षपात नगरी बाहुभ्याम्= अनन्त बल र पराक्रम-ई दुवै बाहु हरु ले सम्यक्तया पतत्रैः= प्राप्त हुने सुख दुःख रूप फलदान द्वारा समस्त जीव हरु लाई धमति= [धमन=कम्पन] यथायोग्य जन्म मरणादि फल प्राप्त गराई रहेको छ । तेसै निराकार, अजन्मा, अनन्त, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी र दयामय प्रभु भन्दा अन्य कसैलाई कहिल्यै पनि मान्नु हुदैन । उही याचनीय, पूजनीय, हाम्रो प्रभु, स्वामी र इष्टदेव हो । उसैबाट हामीलाई सुख हुने छ, अर्कोबाट कहिल्यै पनि हुनेछैन ॥ ३४॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal