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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 15
    ऋषिः - लोपामुद्रा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    120

    प्रा॒ण॒दाऽअ॑पान॒दा व्या॑न॒दा व॑र्चो॒दा व॑रिवो॒दाः। अन्याँ॒स्ते॑ऽअ॒स्मत्त॑पन्तु हे॒तयः॑ पाव॒कोऽअ॒स्मभ्य॑ꣳ शि॒वो भ॑व॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒ण॒दा इति॑ प्राण॒ऽदाः। अ॒पा॒न॒दा इत्य॑पान॒ऽदाः। व्या॒न॒दा इति॑ व्यान॒ऽदाः। व॒र्चो॒दा इति॑ वर्चः॒ऽदाः। व॒रि॒वो॒दा इति॑ वरिवः॒ऽदाः। अ॒न्यान्। ते॒। अ॒स्मत्। त॒प॒न्तु॒। हे॒तयः॑। पा॒व॒कः। अ॒स्मभ्य॑म्। शि॒वः। भ॒व॒ ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राणदाऽअपानदा व्यानदा वर्चादा वरिवोदाः । अन्याँस्तेऽअस्मत्तपन्तु हेतयः पावकोऽअस्मभ्यँ शिवो भव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्राणदा इति प्राणऽदाः। अपानदा इत्यपानऽदाः। व्यानदा इति व्यानऽदाः। वर्चोदा इति वर्चःऽदाः। वरिवोदा इति वरिवःऽदाः। अन्यान्। ते। अस्मत्। तपन्तु। हेतयः। पावकः। अस्मभ्यम्। शिवः। भव॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    विद्वद्राजानौ कीदृशौ स्यातामित्याह॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् राजन्! ते तव या अस्मभ्यं प्राणदा अपानदा व्यानदा वर्चोदा वरिवोदा हेतयो भूत्वाऽस्मदन्यांस्तपन्तु ताभिः पावकः संस्त्वमस्मभ्यं शिवो भव॥१५॥

    पदार्थः

    (प्राणदाः) याः प्राणं जीवनं बलं च ददति ताः (अपानदाः) या अपानं दुःखदूरीकरणसाधनं प्रयच्छन्ति ताः (व्यानदाः) या व्याप्तिविज्ञानं ददति (वर्चोदाः) सकलविद्याध्ययनप्रदाः (वरिवोदाः) सत्यधर्मविद्वत्सेवाप्रापिकाः (अन्यान्) (ते) तव (अस्मत्) (तपन्तु) (हेतयः) वज्रवद्वर्त्तमाना शस्त्रास्त्रोन्नतयः (पावकः) शुद्धिप्रचारकः (अस्मभ्यम्) (शिवः) (भव)॥१५॥

    भावार्थः

    स एव राजा यो न्यायस्य वर्द्धकः स्यात्, स एव विद्वान् यो विद्यया न्यायस्य विज्ञापको भवेत्, न स राजा यः प्रजा पीडयेत्, न स विद्वान् योऽन्यान् विदुषो न कुर्यात्, न ताः प्रजा या नीतिज्ञं न सेवेरन्॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वान् और राजा कैसे हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् राजन्! (ते) आपकी जो उन्नति वा शस्त्रादि (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (प्राणदाः) जीवन तथा बल को देने वा (अपानदाः) दुःख दूर करने के साधन को देने वा (व्यानदाः) व्याप्ति और विज्ञान को देने (वर्चोदाः) सब विद्याओं के पढ़ने का हेतु को देने और (वरिवोदाः) सत्य धर्म्म और विद्वानों की सेवा को व्याप्त कराने वाली (हेतयः) वज्रादि शस्त्रों की उन्नतियां (अस्मत्) हमसे (अन्यान्) अन्य दुष्ट शत्रुओं को (तपन्तु) दुःखी करें, उनके सहित (पावकः) शुद्धि का प्रचार करते हुए आप हम लोगों के लिये (शिवः) मङ्गलकारी (भव) हूजिये॥१५॥

    भावार्थ

    वही राजा है जो न्याय को बढ़ाने वाला हो, और वही विद्वान् है जो विद्या से न्याय को जानने वाला हो, और वह राजा नहीं जो कि प्रजा को पीड़ा दे, और वह विद्वान् भी नहीं जो दूसरों को विद्वान् न करे, और वे प्रजाजन भी नहीं जो नीतियुक्त राजा की सेवा न करें॥१५॥

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    विषय

    पवित्र राजा और विद्वान् ।

    भावार्थ

    हे अग्ने ! राजन् ! जिस प्रकार शरीर में जाठर अग्नि प्राण, अपान, व्यान, वर्चस और जीवन धन को देने वाला होता है उसी प्रकार तू राष्ट्र में ( प्राणदा: ) प्राणों को देने वाला ( अपानदाः ) राष्ट्र में अपान, मल आदि को और हानिकर पदार्थों को दूर करने वाला ( व्यानदाः ) व्यान के समान व्यापक बल रखने वाला ( वर्चोदाः ) वर्चस् या त्याज के समान पराक्रम को स्थिर रखने हारा और ( वरिवोदाः ) प्रजा को धन ऐश्वर्य का देने हारा है । ( अस्मत् अन्यान् ) हमसे अन्य शत्रुओं को तेरे ( हेतय ) शस्त्रास्त्र ( तपन्तु ) पीड़ित करें । राजन् तू ( पावकः ) राष्ट्र को पवित्राचारवान् करने हारा होकर ( अस्मभ्यं शिवः भव ) हमारे लिये शुभ कल्याणकर हो । शत० ९ । २ । १ । १७ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आर्षी पंक्तिः । पञ्चमः ॥

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    विषय

    व्याख्यानों के विषय

    पदार्थ

    १. लोगों में रहकर तू (प्राणदाः) = उन्हें प्राणशक्ति का ज्ञान देनेवाला हो। तेरे व्याख्यान प्राणशक्ति की वृद्धि के साधनों पर हों । प्राणशक्ति के बढ़ाने के लिए समुचित आहार-विहार का तू प्रतिपादन करनेवाला बन। २. इसी प्रकार (अपानदाः) = तू उनको दोषों के दूर करनेवाली अपानशक्ति का ज्ञान दे। 'किन-किन वस्तुओं के सेवन करने से यह शक्ति ठीक बनी रहती है' इसका तू प्रतिपादन कर। 'कौन से भोजन किस रूप में किये गये इसके लिए हानिकर हैं' इस बात को तू लोगों को समझानेवाला हो। ३. (व्यानदाः) = व्यानशक्ति के ज्ञान का तू उन्हें देनेवाला बन। 'वह सर्वशरीर-सञ्चारी-वायु सारे नाड़ी संस्थान को स्वस्थ रखनेवाला वायु कैसे ठीक रहता है' इस बात को तू लोगों को समझानेवाला हो। ४. इन विषयों के प्रतिपादन के द्वारा तू लोगों के लिए (वर्चोदाः) = शक्ति को देनेवाला हो। 'शरीर में किस प्रकार वर्चस् का संयम किया जा सकता है' इस विषय को तू लोगों को समझानेवाला हो । ५. इन सब बातों के साथ (वरिवोदाः) = तू धन को भी देनेवाला बन [वरिवः=wealth]।'धन-प्राप्ति के क्या उचित उपाय है' इसका प्रतिपादन करनेवाला बन। 'वरिवः' शब्द का अर्थ worshipping=पूजा भी है, अतः तू लोगों को प्रभु की पूजा का ठीक प्रकार समझानेवाला हो और इस प्रकार उनके जीवनों में [वरिवः = Happiness] आनन्द का सञ्चार करनेवाला बन। ६. प्रभु कहते हैं कि (अस्मत्) = हमसे (ते) = तुझे प्राप्त (हेतयः) = ये प्रेरणाएँ (अन्यान्) = औरों को भी तपन्तु दीप्त करनेवाली हों । तू इन प्रेरणाओं को आगे पहुँचानेवाला बन। ७. (पावकः) = अपने जीवन को निरन्तर पवित्र बनानेवाला तू (अस्मभ्यम्) = हमारी प्राप्ति के लिए (शिवः भव) = सबका कल्याण करनेवाला हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - विद्वान् संन्यासियों के व्याख्यान के विषय निम्न होने चाहिएँ। १. प्राण, अपान व व्यान की शक्तियों की वृद्धि । २. शरीर को कैसे वर्चस्वी बनाना? ३. धन प्राप्ति के उचित उपाय क्या हैं?' ४. प्रभु-उपासना का प्रकार क्या है? ५. आनन्द प्राप्ति का मार्ग क्या है ? इस प्रकार विद्वान् लोग वैदिक प्रेरणाओं से औरों के जीवनों को दीप्त करें। प्रभु-प्राप्ति उन्हें तभी होगी जब वे पवित्र बनकर सभी के कल्याण में प्रवृत्त होंगे। 'लोपा - मुद्रा ' बनने का यही मार्ग है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जो न्यायी असतो तोच खरा राजा होय. जो विद्या जाणून घेऊन न्यायनिवाडा करतो तोच खरा विद्वान होय. जो प्रजेला त्रास देतो तो राजा नव्हे व जो इतरांना विद्वान करीत नाही तो विद्वान नव्हे आणि जे नीतिमान राजाला सहकार्य करत नाहीत ते प्रजानन नव्हेत.

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    विषय

    विद्वान आणि राजा, यांनी कसे असावे, पुढील मंत्रात याविषयी प्रतिपादन केले आहे –

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (प्रजाजन म्हणतात) हे विद्वान राजा, (ते) आपला जो उत्कर्ष, प्रगती अथवा शस्त्रसामर्थ्य आहे ते (अस्मभ्यम्‌) आमच्यासाठी (प्राणदा:) आयुष्य व शक्ती (देणारे ठरो.) आपले सामर्थ्य आम्हा प्रजाजनांकरिता (अपानदा:) दु:खनिवारक साधने देणारे आणि (न्यानदा:) विकास आणि विज्ञान देणारे होवो. आपले सामर्थ्य आम्हास (वरिवोदा:) सत्याचरण आणि विद्वज्जनसेवा (शिकविणारे होवो.) आपले (हेतय:) वज्र आदी अस्त्र-शस्त्रांचा, शक्तीचा वापर (आमच्यावर होऊ नये, तर) (अस्मत्‌) आमच्याहून वेगळे वा भिन्न जे (अन्यान्‌) अन्य दुष्ट-दुर्जन आहेत, त्यांना तुमचे ते शस्त्र (तुपन्तु) भीतिदायक वा विनाशकारी ठरो. (पावक:) शुद्धता आणि पावित्र्य यांचा विस्तार करणारे आणि आमच्यासाठी (शिव:) मंगलकारी (भव) व्हा. ॥15॥

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा तोच म्हणावा की जो न्यायाने वागणारा आणि न्यायाची वृद्धी करणारा आहे. तसेच विद्वानदेखील तोच की जो आपल्या ज्ञानाद्वारे न्यायाची नीट माहिती सांगणारा (न्याय काय आणि अन्याय काय? हे जाणणारा) आहे. (याशिवाय त्या जो याविरूद्ध वागतो त्यास राजा व विद्वान म्हणू नये.) जो प्रजेस पीडित करतो तो राजा नाही आणि जो इतरांना ज्ञान देऊन त्याना ज्ञानी विद्वान करीत नाही, त्यास विद्वान म्हणून नये. तसे प्रजाजन देखील त्यासच म्हणावे की जो नीतिमान राजाची सेवा करतो. ॥15॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O King, thy powers are the givers of life and strength unto us, the givers of resources for the removal of affliction, the givers of knowledge, the helpers for studying all sciences, the preachers of true religion and service of the learned. May thy weapons trouble others than us. Be thou our purifier and propitious unto us.

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    Meaning

    Agni, Lord of light and power, you are the giver of vital energy, means of the removal of impurity and waste, universal knowledge, lustre of life and the light of truth and Dharma. Be good and gracious to us, lord purifier and sanctifier of life and soul, and let your displeasure and punishment befall somewhere else far away from us.

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    Translation

    You are bestower of in-breath, bestower of out-breath, bestower of diffused breath, bestower of lustre, bestower of riches; may your flames torment others than us. May you be purifier and gracious to us. (1)

    Notes

    Vyanada, bestower of diffused breath. व्यानं सर्वसंचारिवायुं, the breath that moves throughout the body. Varivoda, वरिव: धनं, bestower of riches.

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    बंगाली (1)

    विषय

    বিদ্বদ্রাজানৌ কীদৃশৌ স্যাতামিত্যাহ ॥
    বিদ্বান্ ও রাজা কেমন হইবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে বিদ্বন্ রাজন্! (তে) আপনার যে উন্নতি বা শস্ত্রাদি (অস্মভ্যম্) আমাদিগের জন্য (প্রাণদাঃ) জীবন তথা বল প্রদান করিবার অথবা (অপানদাঃ) দুঃখ দূর করিবার সাধন প্রদান করিবার অথবা (ব্যানদাঃ) ব্যাপ্তি ও বিজ্ঞান প্রদান করিবার (বর্চোদাঃ) সকল বিদ্যার পড়িবার হেতু প্রদান করিবার এবং (বরিবোদাঃ) সত্য ধর্ম্ম এবং বিদ্বান্দিগের সেবাকে ব্যাপ্ত করাইবার জন্য (হেতয়ঃ) বজ্রাদি শস্ত্রসমূহের উন্নতি (অস্মৎ) আমাদের হইতে অন্য দুষ্ট শত্রুদিগকে (তপন্তু) দুঃখী করুক, তাহাদের সহিত (পাবকঃ) শুদ্ধির প্রচার করিয়া আপনি আমাদের জন্য (শিবঃ) কল্যাণকারী (ভব( হউন ॥ ১৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–তিনিই রাজা যিনি ন্যায় বৃদ্ধিকারী এবং তিনিই বিদ্বান্ যিনি বিদ্যা দ্বারা ন্যায়কে জানিয়া থাকেন এবং তিনি রাজা নন্ যিনি প্রজাদিগকে পীড়া দিয়া থাকেন এবং তিনি বিদ্বান্ও নন্ যিনি অন্যান্যকে বিদ্বান্ করে না এবং তাহারা প্রজাগণও নয় যাহারা নীতিযুক্ত রাজার সেবা না করে ॥ ১৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    প্রা॒ণ॒দাऽঅ॑পান॒দা ব্যা॑ন॒দা ব॑র্চো॒দা ব॑রিবো॒দাঃ ।
    অ॒ন্যাঁস্তে॑ऽঅ॒স্মত্ত॑পন্তু হে॒তয়ঃ॑ পাব॒কোऽঅ॒স্মভ্য॑ꣳ শি॒বো ভ॑ব ॥ ১৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    প্রাণদা ইত্যস্য লোপামুদ্রা ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । বিরাডার্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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