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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 18
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    98

    किस्वि॑दासीदधि॒ष्ठान॑मा॒रम्भ॑णं कत॒मत् स्वि॑त् क॒थासी॑त्। यतो॒ भूमिं॑ ज॒नय॑न् वि॒श्वक॑र्मा॒ वि द्यामौर्णोन्महि॒ना वि॒श्वच॑क्षाः॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    किम्। स्वि॒त्। आ॒सी॒त्। अ॒धि॒ष्ठान॑म्। अ॒धि॒स्थान॒मित्य॑धि॒ऽस्थान॑म्। आ॒रम्भ॑ण॒मित्या॒ऽरम्भ॑णम्। क॒त॒मत्। स्वि॒त्। क॒था। आ॒सी॒त्। यतः॑। भूमि॑म्। ज॒नय॑न्। वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। वि। द्याम्। और्णो॑त्। म॒हि॒ना। वि॒श्वच॑क्षा॒ इति॑ वि॒श्वऽच॑क्षाः ॥१८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    किँ स्विदासीदधिष्ठानमारम्भणङ्कतमत्स्वित्कथासीत् । यतो भूमिञ्जनयन्विश्वकर्मा वि द्याऔर्णान्महिना विश्वचक्षाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    किम्। स्वित्। आसीत्। अधिष्ठानम्। अधिस्थानमित्यधिऽस्थानम्। आरम्भणमित्याऽरम्भणम्। कतमत्। स्वित्। कथा। आसीत्। यतः। भूमिम्। जनयन्। विश्वकर्मेति विश्वऽकर्मा। वि। द्याम्। और्णोत्। महिना। विश्वचक्षा इति विश्वऽचक्षाः॥१८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 18
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तदेवाह॥

    अन्वयः

    हे विद्वन्नस्य जगतोऽधिष्ठानं किं स्विदासीत्? आरम्भणं कतमत्? कथा स्विदासीत्? यतो विश्वकर्मा विश्वचक्षा जगदीश्वरो भूमिं द्यां च जनयन् महिना व्यौर्णोत्॥१८॥

    पदार्थः

    (किम्) प्रश्ने (स्वित्) वितर्के (आसीत्) (अधिष्ठानम्) अधितिष्ठन्ति यस्मिंस्तत् (आरम्भणम्) आरभते यस्मात् तत् (कतमत्) बहूनामुपादानानां मध्ये किमिति प्रश्ने (स्वित्) (कथा) केन प्रकारेण (आसीत्) अस्ति (यतः) (भूमिम्) (जनयन्) उत्पादयन् (विश्वकर्मा) विश्वान्यखिलानि कर्माणि यस्य परमेश्वरस्य सः (वि) विविधतया (द्याम्) सूर्यादिलोकम् (और्णोत्) ऊर्णुत आच्छादयति (महिना) स्वस्य महिम्ना। अत्र छान्दसो वर्णलोप इति मकारलोपः (विश्वचक्षाः) यो विश्वं सर्वं जगच्चष्टे पश्यति सः॥१८॥

    भावार्थः

    हे जनाः! युष्माभिरिदं जगत् क्व वसति? किमारम्भणं चास्य? किमर्थं जायते? इत्यादि-प्रश्नानामिदमुत्तरम्। यो जगदीश्वरः कार्य्याख्यं जगदुत्पाद्य स्वव्याप्त्या सर्वमाच्छाद्य सर्वज्ञतया सर्वं पश्यति, सोऽधिष्ठानमारम्भणं चास्ति, सर्वशक्तिमान् रचनादिसामर्थ्ययुक्तोऽस्ति, जीवेभ्यः पापपुण्यफलदानाय भोजयितुं सर्वं रचितवानिति वेद्यम्॥१८॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् पुरुष! इस जगत् का (अधिष्ठानम्) आधार (किं, स्वित्) क्या आश्चर्यरूप (आसीत्) है, तथा (आरम्भणम्) इस कार्य-जगत् की रचना का आरम्भ कारण (कतमत्) बहुत उपादानों में क्या और वह (कथा) किस प्रकार से (स्वित्) तर्क के साथ (आसीत्) है कि (यतः) जिससे (विश्वकर्मा) सब सत्कर्मों वाला (विश्वचक्षाः) सब जगत् का द्रष्टा जगदीश्वर (भूमिम्) पृथिवी और (द्याम्) सूर्यादि लोक को (जनयन्) उत्पन्न करता हुआ (महिना) अपनी महिमा से (व्यौर्णोत्) विविध प्रकार से आच्छादित करता है॥१८॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! तुम को यह जगत् कहां वसता? क्या इसका कारण? और किसलिये उत्पन्न होता है? इन प्रश्नों का उत्तर यह है कि जो जगदीश्वर कार्य-जगत् को उत्पन्न तथा अपनी व्याप्ति से सब का आच्छादन करके सर्वज्ञता से सबको देखता है, वह इस जगत् का आधार और निमित्तकारण है। वह सर्वशक्तिमान् रचना आदि के सामर्थ्य से युक्त है, जीवों को पाप-पुण्य का फल देने भोगवाने के लिये इस संसार को रचा है, ऐसा जानना चाहिये॥१८॥

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    विषय

    स्तुतिविषयः

    व्याखान

    [प्रश्नोत्तरविद्या से -]  इस संसार का (अधिष्ठानं किं स्वित्) अधिष्ठान क्या है ? (आरम्भणम्) कारण और उत्पादक कौन है ? (कतमत्स्वित्कथा आसीत् ) किस प्रकार से है तथा रचना करनेवाले ईश्वर का अधिष्ठानादि क्या है तथा निमित्तकारण और साधन- जगत् वा ईश्वर के क्या हैं? 
    [उत्तर] (यतः) जिसका विश्व [जगत् कर्म] किया हुआ है, उस (विश्वकर्मा) परमात्मा ने अनन्त स्वसामर्थ्य से (भूमिं जनयन्) इस जगत् को रचा है। वही इस सब जगत् का अधिष्ठान, निमित्त और साधनादि है, उसने (महिना) अपने अनन्त स्वसामर्थ्य से इस सब जीवादि जगत् को यथायोग्य रचा और भूमि से लेके (द्याम्)  स्वर्गपर्यन्त रचके स्वमहिमा से उसे (और्णोत्) आच्छादित कर रक्खा है और परमात्मा का अधिष्ठानादि परमात्मा ही है, अन्य कोई नहीं, सबका उत्पादन, रक्षण, धारणादि भी वही करता है तथा आनन्दमय है और वह ईश्वर कैसा है ? 
    [ उत्तर यह है ] कि (विश्वचक्षाः) वह सब संसार का द्रष्टा है, उसको छोड़के जो अन्य का आश्रय करता है, वह दुःखसागर में क्यों न डूबेगा ? ॥ ३२ ॥

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    विषय

    राष्ट्र या साम्राज्य की उत्पत्ति विषयक विवेचना । पक्षान्तर में सृष्टि-उत्पत्ति विषयक मीमांसा ।

    भावार्थ

    राजा के पक्ष में -- जब राजा प्रथम महान् राज्य की स्थापना करना प्रारम्भ करता है उसके विषय में प्रश्न करते हैं - [ प्र० १ उस समय उसका ( अधिष्ठानम् ) आश्रयस्थान ( किं स्वित्) भला क्या ( आसीत् ) होता है । और ( प्र० २ ) ( कतमस्वित् ) कौनसा पदार्थ ( आरम्भणम् ) महान् साम्राज्य को आरम्भ करने के लिये मूल रूप से है । और (कथा आसीत् ) वह किस प्रकार होता है | ( यतः ) जिससे ( विश्वकर्मा ) राज्य के समस्त कर्मों को सम्पादन करने में कुशल राजा ( भूमिं जनयन् ) अपने आश्रय भूमि को पैदा करके, अपनी बनाकर,( महिना ) अपने महान् पराक्रम से ( विश्वचक्षाः ) समस्त राष्ट्र का स्वयंद्रष्टा होकर ( द्याम् ) सूर्य के समान तेजस्वी पद को ( वि और्णोत् ) विशेष रूप से या विविध प्रकार से आच्छादित करता या प्राप्त करता है । परमेश्वर के पक्ष में - सृष्टि के उत्पन्न करने के पूर्व [ १ ] ( किं स्वित् ) कौनसा ( अधिष्ठानम् ) आश्रय ( आसीत् ) था । और [ २ ] जगत् को ( आरम्भणम्) बनाने के लिये प्रारम्भक मूल द्रव्य ( कतमत् स्वित् ) दृश्यमाण आकाशादि तत्वों में कौनसा था ? और [ ३ ] वह ( कथा आसीत् ) किस दशा में था ? ( यतः ) जिससे वह ( विश्वकर्मा ) समस्त संसार का कर्त्ता ( भूमिम् ) सबको उत्पन्न करने वाली भूमि या प्रकृति को ( जनयन् ) अव्यक्त से व्यक्त रूप में प्रकट करता हुआ ( महिना ) अपने महान् सामर्थ्य से ( विश्वचक्षाः ) विश्व भर को साक्षात् करने हारा हाकेर ( द्याम् ) समस्त आकाश को (वि और्णोत् ) विविध प्रकार के लोकों, ब्रह्माण्डों से आच्छादित कर देता है ।

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    विषय

    अधिष्ठान-आरम्भणम्

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र में कहा है कि विश्वकर्मा ने सृष्टि का निर्माण किया। संसार में अधिष्ठानरहित लोग किसी वस्तु को करते हुए नहीं देखे जाते, अतः प्रश्न करते हैं कि (अधिष्ठानं किं स्वित् आसीत्) = [अधितिष्ठत्यस्मिन् इति] अधिकरण क्या था ? कहाँ स्थित होकर प्रभु ने इस सृष्टि का निर्माण किया। २. फिर जैसे घटादि के निर्माण के लिए मिट्टी उपादान होती है इसी प्रकार इस सृष्टि के निर्माण के लिए [आरभ्यते अस्मात् इति] (आरम्भणं कतमत् स्वित्) = उपादानकारण कौन सा था ? ३. जैसे चक्र, मृत्तिका, सलिल आदि से घट का निर्माण होता है, इसी प्रकार यहाँ सृष्टि निर्माण में (कथा आसीत्) = (कथंभूता क्रिया आसीत्) क्रिया किस प्रकार हुई ? ४. एवं अधिष्ठान, आरम्भण व क्रिया के विषय में प्रश्न करके कहते हैं कि (यतः) = जिनके होने पर, अर्थात् जिनसे (विश्वकर्मा) = उस संसार के निर्माता प्रभु ने भूमिं द्यां च जनयन् पृथिवी और द्युलोक का उत्पादन करते हुए (महिना) = अपनी महिमा से (वि और्णोत्) = इनको विशिष्ट रूप से आच्छादित किया, इस प्रकार जैसे माता बच्चे को गोद में लेकर सुरक्षित करती है, उसी प्रकार वे प्रभु (विश्वचक्षाः) = इस संसार का ध्यान कर रहे हैं [चक्ष् to look after] ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु अपनी महिमा से प्रकृति को इस विकृति व विसृष्टि का रूप देते हैं। इस सृष्टि का धारण भी वे प्रभु ही कर रहे हैं। वे सारे ब्रह्माण्ड का ध्यान करते हैं।

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    मराठी (3)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! हे जग कुठे वसलेले आहे हे तुम्हाला माहीत आहे काय? हे कशासाठी उत्पन्न झालेले आहे? त्याचे कारण काय? या प्रश्नांची उत्तरे अशी की, जो जगदीश्वर सृष्टी उत्पन्न करतो, सर्वत्र व्याप्त असतो व सगळीकडे त्याचे आच्छादन असते. तो सर्वज्ञ असून सर्वांना पाहतो. तो सर्व जगाचा आधार आणि निमित्त कारण आहे. तो सर्वशक्तिमान असून, त्याच्यात सृष्टी रचना करण्याचे सामर्थ्य आहे. जीवांच्या पापपुण्याचे फळ देण्यासाठी त्याने या जगाची निर्मिती केलेली आहे. या जगाला त्यानेच उत्पन्न केलेले आहे. हे जाणले पाहिजे.

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    विषय

    पुनश्‍च, पुढील मंत्रात तोच विषय (ईश्‍वराचे स्वरूप) कथित आहे कि –

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - 18 वा मंत्र - (एक जिज्ञासू मनुष्य विद्वानासमोर जिज्ञासा व्यक्त करीत आहे) हे विद्वान महोदय, (मला हे सांगा की) या जगाचा (अधिष्ठानम्‌) आधार (किं, स्वित्‌) काय (आसीत्‌) आहे (हे आश्‍चर्य काय आहे?) तसेच (आरम्भणम्‌) या जगाचा आरंभ वा या कार्यरुप जगताचे आरंभीत कारण (कतमत्‌) काय आहे (वा होतो?) अर्थात अनेक उपादान कारणांमधे ते कोणते कारण होते? (तसेच ते कारण) (कथा) कोणत्या रुपात (स्वित्‌) कोणत्या तर्कयुक्त स्थितीत (आसीत्‌) आहे (वा होते?) (तसेच हे ही सांगा की) (यत:) ते काय आहे की ज्यामुळे (विश्‍वकर्मा) सर्व कारण करणारा (मुख्य कारण) (विश्‍चक्षा:) सर्व जगाचा द्रष्टा जगदीश्‍वर (भूमिम्‌) पृथ्वी आणि (द्याम्‌) सूर्य आदी लोकांची (जनथन्‌) उत्पत्ती करीत (महिम्ना) आपल्या महिमेमुळे (सामर्थ्य व शक्तीमुळे) (व्यौर्णोत्‌) विविध प्रकारे कसा व्यापून राहिला आहे? (प्रकृति उपादान कारण आणि परमेश्‍वर निमित्त कारण होते व आहे. तोच सर्व लोक, ग्रह, उपग्रह आदींचा आधार आहे) ॥18॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यांनो, (तुम्हाला हे जाणून घ्यायची इच्छा असेल) की हे जग कुठे व कसे आह? या जगाचे कारण काय? आणि हे जग का उत्पन्न झाले? तर या प्रश्‍नांचे उत्तर असे की जो जगदीश्‍वर (मूळ कारण असून) या कार्यरुप जगाला तोच उत्पन्न करतो आणि सर्वव्यापी असल्यामुळे आपल्या व्याप्तित्वाद्वारे तो सर्व (पदार्थ, लोक, सूर्यादींना) आच्छादित करीत आहे. सर्वज्ञ असल्यामुळे तो सर्व काही पाहतो. तोच जगदाधार आणि निमित्त कारण आहे. तो सर्वाशक्तीमान असून आपल्या रचना आदी सामर्थ्यांमुळे पूर्ण सामर्थ्यवान आहे. (त्याने हे जग का उत्पन्न केले, त्याचे उत्तर असे की (सर्व जीवात्मांना त्यांच्या पाप-पुण्याचे फळ देण्यासाठी आणि ते फळ भोगण्यासाठी त्याने या जगाची रचना केली आहे. हे सर्व नीट समजून व जाणून घ्या. ॥18॥

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    विषय

    स्तुती

    व्याखान

    [प्रश्नोत्तर] प्रश्न — या संसाराचा आधार कोणता? संसाराचे कारण कोणते? व निर्माता कोण आहे? तो कसा आहे? निर्मिती करणाऱ्या ईश्वराचे अणिष्ठान कोणते? ईश्वराचे व जगाचे निमित्त कोणते? त्यांची साधने कोणती? उत्तर — (यतः) ज्याने विश्व निर्माण केलेले आहे अशा (विश्वकर्मा) परमेश्वराने अनंत सामध्यनि या जगाची रचना केलेली आह. तोच या जगाचा आधार, निमित्त व साधन आहे. त्याने आपल्या अफाट सामथ्यनि जीवसष्टि निर्माण केली व पृथ्वीपासून स्वर्गापर्यंत सर्व गोष्टींची निर्मिती करून स्वतःच्या प्रभावाने (और्णोत्) सर्वांना व्यापलेले आहे. परमेश्वर स्वतःच आधार आहे. त्याचा दुसरा कोणता आधार नाही. सर्वांचा निर्माणकर्ता तोच आहे. रक्षक तोच असून सर्वांचे धारणही तोच करतो. तो आनंदमयही आहे. तो ईश्वर कसा आहे? (विश्वचक्षाः) तो सर्व जगाला पाहणारा द्रष्टा आहे. जो त्याला सोडून दुसऱ्याचा आश्रय घेतो तो मनुष्य दुःखसागरात बुडतो.॥३२॥

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    इंग्लिश (4)

    Meaning

    What is the support of this universe? What is the material cause of the world in the beginning ? What was its nature ? Whence God, the Doer of myriad deeds, the Seer of all, producing the earth and the heavens, covers them with His mighty power.

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    Meaning

    What is the ultimate stay of the universe? What is the original cause of the creation? What sort? From which Vishvakarma, omnipresent seer who pervades the universe, created the earth and then heaven with His mighty potential?

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    Purport

    Knowledge by question and answer

    Question-What is the basis-support of the universe? What is its cause and who is its Creater. In what manner He is the cause and Creater of the world? What is the base of God, who Creates the world? What is the primitive cause with which the world is made and what is the efficient cause of God who has created this world? Barl TTO T

    Answer-He who has accomplished-created this world that Almighty God-the Greatest Architect has fashioned it out of His own infinite Omnipotence. He Himself is the support, efficient or instrumental cause of its making. He has created this universe including the bodies of the living beings with His own infinite power in proper manner. After creating this world from earth to heaven, He has pervaded it by His own glory. the support of God is He Himself, none else. He creates, protects 156.15 and supports all. He is all bliss by nature.

    What sort [kind] of God is? He is the seer-looks after the whole world. Ignoring Him he who takes 'refuge under anyone else, shall undoubtedly plung into the ocean of miseries and sufferings. 

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    Translation

    What was the place to stand uроn; what was the material with which to work; and what was the process, by which the Universal Architect, seeing all, created the earth and covered the heaven with His might? (1)

    Notes

    Adhisthanam, अधितिष्ठंति अस्मिन् इति अधिष्ठानं अधिकरणं, the support or base on which other things stand. Arambhanam, आरभ्यते अस्मात् इति आरम्भणं प्रकृतिद्रव्यं, the material, with which a thing is made or built, such as clay for making pots. Viśvakarmā, skilled in all jobs. Or, Architect of the uni verse. Viśvacakṣāḥ, सर्वतोदर्शन:, one who sees everything. Dyāin prthivim aurpot, आच्चादितवान्, covered the sky and the earth (with stars and with flora and fauna).

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তদেবাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে বিদ্বন্ পুরুষ! এই জগতের (অধিষ্ঠানম্) আধার (কিং, স্বিৎ) কী আশ্চর্য্যরূপ (আসীৎ) আছে তথা (আরম্ভণম্) এই কার্য্য-জগতের রচনার আরম্ভিক কারণ (কতমৎ) বহু উপাদানসমূহে কী এবং উহা (কথা) কী প্রকারে (স্বিৎ) তর্ক সহ (আসীৎ) আছে যে (য়তঃ) যদ্দ্বারা (বিশ্বকর্মা) সকল সৎকর্ম্ম যুক্ত (বিশ্বচক্ষাঃ) সকল জগতের দ্রষ্টা জগদীশ্বর (ভূমিম্) পৃথিবী এবং (দ্যাম্) সূর্য্যাদি লোককে (জনয়ন্) উৎপন্ন করিয়া (মহিনা) স্বীয় মহিমা দ্বারা (বৌণðর্ৎ) বিবিধ প্রকারে আচ্ছাদিত করে ॥ ১৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! এই জগৎ কোথায় থাকে, কী ইহার কারণ এবং কীজন্য উৎপন্ন হয়, এই সব প্রশ্নের উত্তর এই যে, যে জগদীশ্বর কার্য্য জগৎকে উৎপন্ন তথা স্বীয় ব্যাপ্তি দ্বারা সকলের আচ্ছাদন করিয়া সর্বজ্ঞতাপূর্বক সকলকে দেখেন, তিনি এই জগতের আধার এবং নিমিত্ত কারণ, তিনি সর্বশক্তিমান্ রচনাদির সামর্থ্য যুক্ত । জীবদিগকে পাপ পুণ্যের ফল প্রদাতা, ভোগ প্রদান করিবার জন্য এই সব সংসারের রচনা করিয়াছেন–এমন জানা উচিত ॥ ১৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    কিᳬंস্বি॑দাসীদধি॒ষ্ঠান॑মা॒রম্ভ॑ণং কত॒মৎ স্বি॑ৎ ক॒থাসী॑ৎ ।
    য়তো॒ ভূমিং॑ জ॒নয়॑ন্ বি॒শ্বক॑র্মা॒ বি দ্যামৌর্ণো॑ন্মহি॒না বি॒শ্বচ॑ক্ষাঃ ॥ ১৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    কিংᳬंস্বিদিত্যস্য ভুবনপুত্রো বিশ্বকর্মা ঋষিঃ । বিশ্বকর্মা দেবতা ।
    ভুরিগার্ষী পংক্তিশ্ছন্দঃ । পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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    नेपाली (1)

    विषय

    स्तुतिविषयः

    व्याखान

    [प्रनोत्तरविद्या बाट] प्रश्न - यस संसार को अधिष्ठानं किंस्वित् = अधिष्ठान के हो ? आरम्भणम्= कारण र उत्पादक को हो ? कतमत्स्वित्कथा आसीत् = कुन प्रकार को छ तथा रचना गर्ने ईश्वर को अधिष्ठानादि के हो ? तथा निमित्तकारण र साधन -जगत् वा ईश्वर का के हुन् ? ऊत्तर - यतः = जसबाट विश्व अर्थात् जगत् कर्म गरीएको छ, तेस विश्वकर्मा=परमात्मा ले अनन्त स्वसामर्थ्य द्वारा भूमिं जनयन्= एस जगत् लाई रचे को हो, उही यो सम्पूर्ण जगत् को अधिष्ठान, निमित्त र साधनादि हो, उसले महिना आफ्नो अनन्त स्वसामर्थ्य ले यो सबै जीवादि जगत् को यथायोग्य रचना गर्यो र भूमि देखि लिएर द्याम् = स्वर्गपर्यन्त रचना गरी स्वमहिमा ले तेसलाई और्णोत्=आच्छादित गरेर राखेको छ, र परमात्मा को अधिष्ठानादि परमात्मा नै हो, अर्को कोही छैन । सबैको उत्पादन रक्षण र धारणादि पनि उही गर्द छ तथा आनन्दमय छ, अरू त्यो कस्तो छ ? एसको उत्तर यो हो कि विश्वचक्षाः= ऊ सकल संसारको द्रष्टा हो, तेसलाई छोडेर जो अरूको आश्रय गर्दछ, भने त्यो दुःख सागर मा किन डुब्दैनथ्यो ? ॥ ३२ ॥ 

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