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यजुर्वेद अध्याय - 17

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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 11
    ऋषिः - लोपामुद्रा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगार्षी बृहती स्वरः - मध्यमः
    105

    नम॑स्ते॒ हर॑से शो॒चिषे॒ नम॑स्तेऽअस्त्व॒र्चिषे॑। अ॒न्याँस्ते॑ अ॒स्मत्त॑पन्तु हे॒तयः॑ पाव॒कोऽअ॒स्मभ्य॑ꣳ शि॒वो भ॑व॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। ते॒। हर॑से। शो॒चिषे॑। नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। अ॒र्चिषे॑। अ॒न्यान्। ते॒। अ॒स्मत्। त॒प॒न्तु॒। हे॒तयः॑। पा॒व॒कः। अ॒स्मभ्य॑म्। शि॒वः। भ॒व॒ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमस्ते हरसे शोचिषे नमस्तेऽअस्त्वर्चिषे । अन्याँस्तेऽअस्मत्तपन्तु हेतयः पावकोऽअस्मभ्यँ शिवो भव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। ते। हरसे। शोचिषे। नमः। ते। अस्तु। अर्चिषे। अन्यान्। ते। अस्मत्। तपन्तु। हेतयः। पावकः। अस्मभ्यम्। शिवः। भव॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 11
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    न्यायाधीशेन कथं भवितव्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे सभापते! ते हरसेऽस्मत्कृतं नमोऽस्तु, शोचिषेऽर्चिषे तेऽस्मत्प्रयुक्तं नमोऽस्तु, यस्ते हेतयस्ता अस्मदन्याँस्तपन्तु, पावकस्त्वमस्मभ्यं शिवो भव॥११॥

    पदार्थः

    (नमः) सत्करणम् (ते) तुभ्यम् (हरसे) यो दुःखं हरति तस्मै (शोचिषे) पवित्राय (नमः) (ते) (अस्तु) (अर्चिषे) पूज्याय (अन्यान्) भिन्नान् शत्रून् (ते) तव (अस्मत्) (तपन्तु) सन्तापयन्तु (हेतयः) वज्रादिशस्त्रास्त्रयुक्ताः सेनाः (पावकः) शोधकः (अस्मभ्यम्) (शिवः) न्यायकारी (भव)॥११॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः पवित्रान् जनान् न्यायाधीशान् कृत्वा दुष्टान् निवार्य्य सत्यो न्यायः प्रकाशयित्व्यः॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    न्यायाधीश को कैसा होना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हे सभापते! (हरसे) दुःख हरने वाले (ते) तेरे लिये हमारा किया (नमः) सत्कार हो तथा (शोचिषे) पवित्र (अर्चिषे) सत्कार के योग्य (ते) तेरे लिये हमारा कहा (नमः) नमस्कार (अस्तु) हो जो (ते) तेरी (हेतयः) वज्रादि शस्त्रों से युक्त सेना हैं वे (अस्मत्) हम लोगों से भिन्न (अन्यान्) अन्य शत्रुओं को (तपन्तु) दुःखी करें (पावकः) शुद्धि करनेहारे आप (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (शिवः) न्यायकारी (भव) हूजिये॥११॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि अन्तःकरण के शुद्ध मनुष्यों को न्यायधीश बनाकर और दुष्टों की निवृत्ति करके सत्य न्याय का प्रकाश करें॥११॥

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    विषय

    राजा के तेज, बल और प्रभाव का आदर । उच्च मान, आदर प्रदान ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! ( ते हरसे नमः ) जलाहरण करनेवाले, प्रखर तेज वाले सूर्य के समान तेरे शत्रुओं की राज्यलक्ष्मी को पाकर, हरण करने वाले क्रोध, या प्रजा के दुःखहारी बल के लिये हम आदर करते हैं। ( ते शोचिषे ) तेरे पवित्र तेजस्वरूप और (अर्चिषे ) सत्कार योग्य शस्त्र ज्वाला का भी ( नमः ) आदर करते हैं । ( ते हेतयः ) तेरी शस्त्र ज्वालाएं ( अस्मत् अन्यान् ) हमारे से दूसरे शत्रुओं को ( तपन्तु ) पीड़ित करें । तू ( पावकः ) पावक अग्नि के समान ( अस्मभ्यं शिवः भव ) हमारे लिये कल्याणकारी हो । शत० ९ । २ । १ । २ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भुरिगार्षी बृहती । मध्यमः ॥

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    विषय

    हरस्-शोचिस्-अर्चिस्

    पदार्थ

    १. पिछले मन्त्र का 'भारद्वाज' अपने जीवन को शक्तिसम्पन्न, पवित्र व ज्ञानमय बनाकर सब वासनाओं का विलोप करने लगता है, इन्द्रिय-संग्राम में जीतता है। वासनाओं का विलोप करने के कारण यह 'लोपा' कहलाता है और वासना-विनाश से ही सदा प्रसन्न रहने के कारण 'मुद्रा' नामवाला होता है, अतः इसका पूरा नाम 'लोपामुद्रा' हो जाता है। इसके जीवन के लिए प्रभु कहते हैं कि २. (ते हरसे) = तेरी इस बुराइयों के हरण की शक्ति के लिए (नमः) = तेरा आदर करते हैं। ३. (शोचिषे) = तेरी इस मानस शुचिता के लिए आदर करते हैं। ४. (ते अर्चिषे नमः अस्तु) = तेरी इस प्रदीप्त ज्ञानाग्नि की ज्वाला के लिए आदर हो । (अस्मत्) = हमसे प्राप्त (ते) = तेरी ये (हेतयः) = प्रेरणाएँ (अन्यान्) = औरों को भी तपन्तु दीप्त करनेवाली हों, अर्थात् तू मुझसे ज्ञान प्राप्त करके इस ज्ञान को औरों तक पहुँचानेवाला बन । ५. (पावक:) = अपने जीवन को पवित्र करनेवाला तू ६. (अस्मभ्यम्) = हमारी प्राप्ति के लिए (शिवः भव) = कल्याण करनेवाला हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- 'लोपा - मुद्रा' के जीवनवाला व्यक्ति अवश्य प्रभु को प्राप्त होता है। यह बुराइयों का हरण करता है, मन को शुचि बनाता है, मस्तिष्क को दीप्त ज्ञानाग्नि की ज्वाला । औरों को ज्ञान प्राप्त कराता हुआ यह अपने जीवन को पवित्र करता है, सभी का कल्याण करता है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    सर्व लोकांनी अंतःकरण शुद्ध असलेल्या माणसांना न्यायाधीश बनवावे व त्यांनी दुष्टांचे निवारण करून सत्य न्याय द्यावा.

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    विषय

    न्यायाधीश कसा असावा, याविषयी -

    शब्दार्थ

    missing

    भावार्थ

    missing

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O ruler, our obeisance to thee, the remover of afflictions. Our obeisance to thee pure and worthy of respect. May thy armed forces trouble others than us. Be thou our purifier, and propitious unto us.

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    Meaning

    Salutations to Agni, lord of light and justice, radiant and pure, divine and adorable, and saviour from pain and suffering. Lord sanctifier of life and nature, be good and gracious to us. And may the heat of your passion and punishment for sin and injustice fall upon others far from us, i. e. different from real human nature and character.

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    Translation

    Our homage be to your desiccation and to your glow. Our obeisance be to your illuminating light. May your weapons torment others than us. May you be purifier and gracious to us. (1)

    Notes

    Harase, हरति सर्वरसान् इति हर: , तस्मै, that which takes away all the saps; power of desiccation. Socişe,कांत्यै , दीप्त्यै, to the glow. Arcise, प्रकाशकं तेजः अर्चिः, to your illuminating power.

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    बंगाली (1)

    विषय

    ন্যায়াধীশেন কথং ভবিতব্যমিত্যাহ ॥
    ন্যায়াধীশকে কেমন হওয়া উচিত, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে সভাপতে! (হরসে) দুঃখ হরণকারী (তে) তোমার জন্য আমাদের কৃত (নমঃ) সৎকার হউক তথা (শোচিষে) পবিত্র (অর্চিষে) সৎকারের যোগ্য (তে) তোমার জন্য আমাদের কথিত (নঃ) নমস্কার (অস্তু) হউক, যে (তে) তোমার (হেতয়ঃ) বজ্রাদি শস্ত্র যুক্ত সেনা আছে সেগুলি (অস্মৎ) আমাদিগের হইতে ভিন্ন (অন্যান্) অন্য শত্রুদিগকে (তপন্তু) দুঃখী করুক, (পাবকঃ) শুদ্ধকারী তুমি (অস্মভ্যম্) আমাদের জন্য (শিবঃ) ন্যায়কারী (ভব) হও ॥ ১১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, অন্তঃকরণে শুদ্ধ মনুষ্যদিগকে ন্যায়াধীশ করিয়া এবং দুষ্টদিগের নিবৃত্তি করিয়া সত্য ন্যায়ের প্রকাশ করুক ॥ ১১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    নম॑স্তে॒ হর॑সে শো॒চিষে॒ নম॑স্তেऽঅস্ত্ব॒র্চিষে॑ ।
    অ॒ন্যাঁস্তে॑ অ॒স্মত্ত॑পন্তু হে॒তয়ঃ॑ পাব॒কোऽঅ॒স্মভ্য॑ꣳ শি॒বো ভ॑ব ॥ ১১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    নমস্তে হরস ইত্যস্য লোপামুদ্রা ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিগার্ষী বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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