यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 27
ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः
देवता - विश्वकर्मा देवता
छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
192
यो नः॑ पि॒ता ज॑नि॒ता यो वि॑धा॒ता धामा॑नि॒ वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑। यो दे॒वानां॑ नाम॒धाऽएक॑ऽए॒व तꣳ स॑म्प्र॒श्नं भुव॑ना यन्त्य॒न्या॥२७॥
स्वर सहित पद पाठयः। नः॒। पि॒ता। ज॒नि॒ता। यः। वि॒धा॒तेति॑ विऽधा॒ता। धामा॑नि। वेद॑। भुव॑नानि। विश्वा॑। यः। दे॒वाना॑म्। ना॒म॒धा इति॑ नाम॒ऽधाः। एकः॑। ए॒व। तम्। स॒म्प्र॒श्नमिति॑ सम्ऽप्र॒श्नम्। भुव॑ना। य॒न्ति॒। अ॒न्या ॥२७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो नः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा । यो देवानान्नामधाऽएक एव तँ सम्प्रश्नम्भुवना यन्त्यन्या ॥
स्वर रहित पद पाठ
यः। नः। पिता। जनिता। यः। विधातेति विऽधाता। धामानि। वेद। भुवनानि। विश्वा। यः। देवानाम्। नामधा इति नामऽधाः। एकः। एव। तम्। सम्प्रश्नमिति सम्ऽप्रश्नम्। भुवना। यन्ति। अन्या॥२७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यो नः पिता जनिता यो विधाता विश्वा भुवनानि धामानि वेद। यो देवानां नामधा एक एवास्ति, यमन्या भुवना यन्ति, सम्प्रश्नं तं यूयं जानीत॥२७॥
पदार्थः
(यः) (नः) अस्माकम् (पिता) पालकः (जनिता) सर्वेषां पदार्थानां प्रादुर्भावयिता (यः) (विधाता) कर्मानुसारेण फलप्रदाता जगन्निर्माता (धामानि) जन्मस्थाननामानि (वेद) जानाति (भुवनानि) सर्वपदार्थाधिकरणानि (विश्वा) सर्वाणि (यः) (देवानाम्) विदुषां पृथिव्यादीनां वा (नामधाः) य स्वविद्यया नामानि दधाति (एकः) अद्वितीयोऽसहायः (एव) (तम्) (सम्प्रश्नम्) सम्यक् पृच्छति यस्मिँस्तम् (भुवना) लोकस्थपदार्थान् (यन्ति) प्राप्नुवन्ति गच्छन्ति वा (अन्या) अन्यानि भुवनस्थानि॥२७॥
भावार्थः
यः सर्वस्य विश्वस्य पितृवत् पालकः सर्वज्ञोऽद्वितीयः परमेश्वरो वर्त्तते, तस्य तत्सृष्टेश्च विज्ञानेनैव सर्वे मनुष्याः परस्परं मिलित्वा प्रश्नोत्तराणि कुर्वन्तु॥२७॥
हिन्दी (5)
विषय
फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! (यः) जो (नः) हमारा (पिता) पालन और (जनिता) सब पदार्थों का उत्पादन करनेहारा तथा (यः) जो (विधाता) कर्मों के अनुसार फल देने तथा जगत् का निर्माण करने वाला (विश्वा) समस्त (भुवनानि) लोकों और (धामानि) जन्म, स्थान वा नाम को (वेद) जानता (यः) जो (देवानाम्) विद्वानों वा पृथिवी आदि पदार्थों का (नामधाः) अपनी विद्या से नाम धरने वाला (एकः) एक अर्थात् असहाय (एव) ही है, जिसको (अन्या) और (भुवना) लोकस्थ पदार्थ (यन्ति) प्राप्त होते जाते हैं, (सम्प्रश्नम्) जिसके निमित्त अच्छे प्रकार पूछना हो, (तम्) उसको तुम लोग जानो॥२७॥
भावार्थ
जो पिता के तुल्य समस्त विश्व का पालने और सब को जाननेहारा एक परमेश्वर है, उसके और उसकी सृष्टि के विज्ञान से ही सब मनुष्य परस्पर मिल के प्रश्न और उत्तर करें॥२७॥
पदार्थ
पदार्थ = ( यः ) = जो परमेश्वर ( नः पिता ) = हम सबका पालन करनेवाला ( जनिता ) = जनक ( यः विधाता ) = जो सब सुख और मुक्ति सुख का भी सिद्ध करनेवाना है ( विश्वा भुवनानि ) = सब लोक लोकान्तरों तथा ( धामानि ) = स्थिति के स्थानों का ( वेद ) = जानता है। ( य: देवानाम् ) = जो भगवान् दिव्य शक्तिवाले सूर्य, चन्द्र, अग्नि आदि देवों के ( नामधा ) = नामों का धारण कर रहा है वह ( एकः एव ) = एक ही अद्वितीय परमात्मा है। ( तम् सम्प्रश्नम् ) = उसी जानने योग्य परमेश्वर को आश्रय करके ( अन्या भुवना यन्ति ) = अन्य सब लोक लोकान्तर गति कर रहे हैं।
भावार्थ
भावार्थ = जो परमेश्वर, हम सबका रक्षक, जनक और हमारे सब कर्मों का फलप्रदाता है, वही भगवान्, सब लोक लोकान्तरों का ज्ञाता और अग्रि, वायु, सूर्य, चन्द्र, वरुण, मित्र, वसु, यम, विष्णु, बृहस्पति, प्रजापति आदि दिव्य, देवों के नामों को धारण करनेवाला एक ही अद्वितीय अनुपम परमात्मा है, उसी परमात्मा के आश्रित होकर, अन्य सब लोक गतिशील हो रहे हैं । दुर्लभ मानवदेह को प्राप्त हो कर, इसी परमात्मा की जिज्ञासा करनी चाहिए । इसी के ज्ञान से मनुष्य देह सफल होगी अन्यथा नहीं।
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे मनुष्यो ! (यः) जो (नः) अपना (पिता) नित्य पालन करनेवाला (जनिता) जनक, उत्पादक, (विधाता) मोक्षसुखादि सब कामों का विधायक [सिद्धकर्ता] (विश्वा) सब भुवन, लोक-लोकान्तर की (धामानि वेद) स्थिति के स्थानों को यथावत् जाननेवाला है और (भुवनानि विश्वा) सब जातमात्र भूतों में विद्यमान है, (यः ) जो (देवानाम्) दिव्य सूर्यादिलोक तथा इन्द्रियादि और विद्वानों का (नामधा) नाम, व्यवस्थादि करनेवाला (एकः, एव) एक, अद्वितीय वही है, अन्य कोई नहीं, वही स्वामी और पितादि हम लोगों का है, इसमें शंका नहीं रखनी, तथा (तम् संप्रश्नं भुवना यन्त्यन्या) उसी परमात्मा के सम्बन्ध में सम्यक् प्रश्नोत्तर करने में विद्वान्, वेदादि शास्त्र और प्राणिमात्र प्राप्त हो रहे हैं, क्योंकि सब पुरुषार्थ यही है कि परमात्मा, उसकी आज्ञा और उसके रचे जगत् का यथार्थ से निश्चय [ज्ञान] करना । उसी से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चार प्रकार के पुरुषार्थ के फलों की सिद्धि होती है, अन्यथा नहीं। इस हेतु से तन, मन, धन और आत्मा प्रयत्नपूर्वक इनसे और ईश्वर के सहाय से सब मनुष्यों को धर्मादि पदार्थों की यथावत् सिद्धि अवश्य करनी चाहिए ॥ ४२ ॥
विषय
पिता आदि पदपर एवं शासकों का एक व्यापक नामधारक राजा, पक्षान्तर में समस्त देवों का एक नामधा परमेश्वर, अध्यात्म में आत्मा ।
भावार्थ
राजा के पक्ष में - ( यः ) जो राजा ( नः पिता ) हमारा पालक है ( जनिता ) सब राष्ट्र के कार्यों का प्रकट करने वाला, या उत्पादक पिता के समान हमारी स्थिति का कारण, ( यः विधाता ) जो विशेष नियम व्यवस्थाओं का कर्त्ता धर्त्ता होकर ( विश्वा भुवनानि ) समस्त लोकों को और ( धामानि ) धारक सामर्थ्यों, तेजों और अधिकार पदों को ( वेद ) जनता और प्राप्त करता है । ( यः ) जो ( देवानाम् ) सब विद्वान् शासकों या अधीन विजिगीषु नायकों के ( नामधा ) नामों का स्वयं धारण करने वाला ( एकः एव ) एक ही है ( तम् ) उस ( सम्प्रश्नम् ) सब के प्रश्न करने योग्य अर्थात् आज्ञा प्राप्त करने योग्य को आश्रय करके ( अन्या भुवना यन्ति ) और सब लोग और राष्ट्र के अंग विभाग चल रहे हैं। सभी अधीन लोग राजा से पूछ कर ही काम करते हैं इस लिये राजा 'सम्प्रश्न' है । ईश्वर के पक्ष में - जो हमारा पालक, उत्पादक, विशेष धारक पोषक, है। जो समस्त भुवनों, लोकों और ( धामानि ) तेजों और विश्व के धारक सामथ्यों को प्राप्त कर रहा है । जो समस्त ( देवानां ) देवों, दिव्य पदार्थों के नामों को स्वयं धारण करता है । अर्थात् सूर्य, चन्द्र आदि भी जिस के नाम हैं वह ( एक एव ) द्वितीय ही है (तम् सम्प्रश्नं ) उस सम्यग् रीति से सभी से जिज्ञासा करने योग्य परमपद का आश्रय करके ( अन्या भुवना ) और सब लोक ( यन्ति ) गति करते हैं । सभी परमेश्वर के विषय में तर्क वितर्क जिज्ञासा करते हैं इसलिये वह 'सम्प्रश्न' हैं। अध्यात्म में - वह आत्मा ( नः ) हम प्राणों का पालक धारक हैं, वह सब के ( धामानि ) तेजों को धारण करता है। सब ( देवानां ) प्राणों का नाम या स्वरूप वह स्वयं धारण करता है। वह सर्व जिज्ञास्य है उसके आश्रय पर ( भुवना ) उससे उत्पन्न समस्त प्राण चेष्टा कर रहे हैं ।
विषय
संप्रश्न
पदार्थ
१. (यः) = जो परमात्मा (नः) = हम सबका पिता-पालक, रक्षक है २. (जनिता) = सबका प्रादुर्भाव करनेवाला है। ३. (यः) = जो (विधाता) = कर्मानुसार विविध शरीरों का देनेवाला है। ४. जो (धामानि) = सब तेजों को तथा (विश्वा भुवनानि) = सब पदार्थों के अधिकरणभूत इन सब लोकों को (वेद) = जानता है अथवा [विद् लाभे] प्राप्त कराता है। ५. (यः) = जो (देवानाम्) = सब देवों के (नामधाः) = नाम का धारण करनेवाला है, परन्तु है (एकः एव) = एक ही । 'सूर्य, चन्द्र, वायु, विद्युत्' आदि सब देवों के नाम परमात्मा के भी हैं, इतना ही नहीं मुख्यरूप से ये नाम परमात्मा के ही हैं। वे प्रभु सरति = सारे संसार को गति देते हैं, अत: सूर्य हैं। चन्दति 'आह्लादयति' सबको प्रसन्न करने के कारण, सदा आनन्दमय रहने के कारण प्रभु चन्द्र नामवाले हैं। गति के द्वारा सब बुराइयों का हिंसन करनेवाले ये प्रभु वायु हैं और ज्ञान से विशिष्ट रूप में चमकनेवाले ये प्रभु विद्युत् हैं। ६. (तम्) = उस (संप्रश्नम्) = [ सम्यक् प्रश्न: यस्मिन्] जिज्ञास्य प्रभु को (विश्वा) = सब (अन्या) = दूसरे (भुवना) = लोक-लोकों में रहनेवाले प्राणी (यन्ति) = जाते हैं, सज्जन सर्वदा उसका स्मरण करते हैं, परन्तु दुर्जन भी मुसीबत आने पर उसी के नाम का स्मरण करते हैं। .
भावार्थ
भावार्थ- वे प्रभु सब तेजों व लोकों के देनेवाले हैं। वे प्रभु ही (संप्रश्न) = सम्यग् जिज्ञास्य हैं।
मराठी (3)
भावार्थ
जो पित्याप्रमाणे सर्व विश्वाचा पालनकर्ता व सर्वांचा ज्ञाता आहे अशा परमेश्वराला त्याने निर्माण केलेल्या सृष्टिविज्ञानाच्या आधारेच सर्व माणसांनी परस्परांशी संवाद (प्रश्नोत्तर) करून जाणून घ्यावे.
विषय
पुनश्च, तोच विषय (ईश्वराचे स्वरूप) पुढील मंत्रात –
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (विद्वान सर्व लोकांस सांगत आहे) हे मनुष्यांनो, (य:) जो परमेश्वर (न:) आम्हा सर्वांचा (पिता पालनकर्ता आणि (जनिता) सर्व पदार्थ उत्पन्न करणारा (जगनिर्माता) आहेत, (य:) जो (विधाता) कर्माप्रमाणे फळ देणारा आणि सृष्टी उत्पत्ती करणारा असून जो (विश्वा) सर्व (भुवननि) लोक-लोकांतराचे (धामानि) स्थान, (ग्रह-उपग्रह, लोक-लोकांतराची उत्पत्ती कशी झाली, त्यांची स्थिती-गती-कार्य आदी कसे आहेत, त्यांची संख्या आणि नाम, हे सर्व जो) (वेद) जाणतो, (य:) जो (देवानाम्) विद्वानांना अथवा पृथ्वी आदी पदार्थांना (नामचा:) आपल्या विद्येद्वारे नाम देणारा आहे आणि (एक:) जो एकमेव असून कोणाच्या साहाय्याची ज्याला आवश्यकता नाही, त्याच परमेश्वराला (अन्या) (त्याच्याहून वेगळे) असे जे इतर (भुवना) लोक आणि पदार्थ आहेत, ते (यन्ति) प्राप्त होतात, (प्रलयकाळात सर्व लोक-लोकांतर व पदार्थ त्याच परमेश्वरात लय होतात) (संप्रश्नम्) अशा त्या परमेश्वराविषयी, हे मनुष्यांनो, तुम्ही मला (विद्वानाला) स्पष्टपणे विचारा आणि (तम्) त्याला (त्याच्या सत्य, सधिदान्द रुपाला) यथावत जाणा ॥27॥
भावार्थ
भावार्थ - तो परमेश्वर पित्याप्रमाणे समग्र विश्वाचे पालन करीत असून तोच सर्वांना जाणणारा (सर्व सृष्टी आणि पदार्थांचे ज्ञान असणारा) आहे. सर्व मनुष्यांनी त्याच्या विषयी आणि त्याने निर्माण केलेल्या सृष्टीविषयी चर्चा करावी, आपसात प्रश्न-उत्तर करीत त्याच्या विषयी चर्चा करावी, आपसात, प्रश्न-उत्तर करीत त्याच्या विषयी अधिकाधिक जाणावे ॥27॥
विषय
प्रार्थना
व्याखान
हेमनुष्यांनो ! जो आपला (पिता) नित्य पालनकर्ता, (जनिता) सर्व उत्पत्तीकर्ता, (विधाता) सर्वसुखांचा सिद्धिकर्ता, (विश्वा धामानि) सर्व विश्वाला लोकलोकांतसला जाणतो व सर्व भूतमात्रात विद्यमान असतो. (देवानां नामधा) सूर्यादि दिव्य गोलात व विद्वानांना नाव देण्याची व्यवस्था करणारा तोच (एकः, एव) एक अद्वितीय व्यवस्थापक आहे. त्याच्याशिवाय दुसरा कोणी असू शकत नाही, तोच आमचा स्वामी व पिता आहे. यावद्दल संशय बाटता कामा नये, विद्वान लोक, बेदादी शास्त्र व प्राणीमात्रय परमेश्वरासंबंधी जिज्ञासू आहेत. परमेश्वराची आज्ञा पाळणे व त्याने निर्माण केलेल्या जगाचे यथार्य ज्ञान व्हावे हाच खरा पुल्यार्थ आहे. त्यामुळेच धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष या चार पुरूषार्थाची सिद्धी होते. अन्यथा नाही. या हेतूने ईश्वराचे साहा घेऊन तन, मन, धन व आत्मा यांनी प्रयत्नपूर्वक धर्माची सिद्धी अवश्य केली पाहिजे. ॥४२॥
इंग्लिश (4)
Meaning
God is the Father, Who made us. Who rewards our acts, and creates the universe. Who knoweth all worlds and all things existing. He is the name-giver of all the forces of nature. He is One. Him do all created beings seek for information.
Meaning
Vishvakarma is the lord who is our father and creator, law-giver and sustainer, who knows all the regions of the universe, who is one and absolute yet holds the names of all the powers of nature and His own potential. In Him enter all the worlds, and He is the eternal question and mystery for all the conscientious souls.
Purport
O Men! He-Our father who always sustains and protects us, He who is our Creator, He who is Bestower of supreme bliss of final emancipation etc., He who liberates from the bondage of the world, He who fully knows about the heaven and the earth-the whole universe, their spheres of existence and also their respective positions, who abides in every particle and in each individual being, He who is the assignor of the names and functions of virtuous [divine] sun and other celestial bodies and sense-organs, He is the ordainer of the name and future prospects of the scholars. He is the matchless God and none else. He is one without a second. He is our Lord and our Father. There should be no doubt in this respect.
The learned scholars [wisemen], the Vedas and all other beings are putting questions and answeres to get a decisive knowledge of God, His nature, attributes and efforts of man is to realise God, deeds. The aim of all the efforts of to obey His Commands, and to have a true and real knowledge of the world created by Him. The four objects of life i.e. Dharma-discharge of duty and practise of righteous deeds, Artha-acquirement of weatlh, Kamagratification of desires, Moksha-liberation form the bondage of accomplished only by realising God, not otherwise. Therefore, all the humanbeings with their bodies, minds, wealth and with the help of God should try carefully to achieve these ends.
Translation
He, who is our father, our begetter, our creator, and who knows all the places and all the beings thoroughly, is the one only, though He is known by names of various divinities; all other beings seek Him for answering their queries. (1)
Notes
Dhāmāni,स्थानानि , places; worlds; stations. Bhuvanāni, भूतजातानि, all the beings, विश्वा धामानि विश्वा भूतानि । Nāmadhā, bearer of the names of; called by the names of. यः एकोऽपि सन् बहूनां देवानां नामानि धारयति; who, though being one only, is known by the names of many gods (divinities). Sampraśnam,, to ask for clarifications of doubts; for their queries.
बंगाली (2)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! (য়ঃ) যিনি (নঃ) আমাদের (পিতা) পালক (জনিতা) সকল পদার্থের উৎপাদনকারী তথা (য়ঃ) যিনি (বিধাতা) কর্মানুসার ফলদাতা তথা জগতের নির্মাণকারী (বিশ্বা) সমস্ত (ভুবনানি) লোকসমূহ এবং (ধামানি) জন্ম, স্থান বা নামকে (বেদ) জানেন (য়ঃ) যিনি (দেবানাম্) বিদ্বান্দিগের বা পৃথিবী আদি পদার্থের (নামধাঃ) নিজ বিদ্যা দ্বারা নামধারণকারী (একঃ) এক অর্থাৎ সহায়রহিত (এব) ই আছেন যাহাকে (অন্য) অন্যান্য (ভুবনা) লোকস্থ পদার্থ (য়ন্তি) প্রাপ্ত হইতে থাকে (সংপ্রশ্নম্) যাহার নিমিত্ত উত্তম প্রকার জিজ্ঞাসা করা হয় (তম্) তাহাকে তোমরা জান ॥ ২৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যিনি পিতৃতুল্য সমস্ত বিশ্বের পালক এবং সকলের জ্ঞাতা এক পরমেশ্বর তাহার এবং তাহার সৃষ্টির বিজ্ঞান দ্বারাই সকল মনুষ্য পরস্পর মিলিয়া প্রশ্ন ও উত্তর করিবে ॥ ২৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়ো নঃ॑ পি॒তা জ॑নি॒তা য়ো বি॑ধা॒তা ধামা॑নি॒ বেদ॒ ভুব॑নানি॒ বিশ্বা॑ ।
য়ো দে॒বানাং॑ নাম॒ধাऽএক॑ऽএ॒ব তꣳ সং॑প্র॒শ্নং ভুব॑না য়ন্ত্য॒ন্যা ॥ ২৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়ো ন ইত্যস্য ভুবনপুত্রো বিশ্বকর্মর্ষিঃ । বিশ্বকর্মা দেবতা । নিচৃদার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
পদার্থ
যো নঃ পিতা জনিতা যো বিধাতা ধামানি বেদ ভুবনানি বিশ্বা।
যো দেবানাং নামধা এক এব তং সংপ্রশ্নং ভুবনা যন্ত্যন্যা।। ৯।।
(যজুর্বেদ ১৭।২৭)
পদার্থঃ (যঃ) যে পরমেশ্বর (নঃ পিতা) আমাদের সবার পালনকর্তা, (জনিতা) জনক, (যঃ বিধাতা) সকল সুখ, মুক্তি ও সুখের সিদ্ধকারী; (বিশ্বা ভুবনানি) সকল লোক লোকান্তর তথা তাঁর (ধামানি) স্থিতির স্থানকে (বেদ) জানি । (যঃ দেবানাম্) যিনি দিব্য শক্তিসম্পন্ন সূর্য, চন্দ্র, অগ্নি সহ সকল দেবের (নামধা) নামকে ধারণ করে থাকেন, তিনি (একঃ এব) এক অদ্বিতীয় পরমাত্মা। (তম্ সংপ্রশ্নম্) সেই জানার যোগ্য পরমেশ্বরকে আশ্রয় করে (অন্যা ভুবনা যন্তি) অন্য সকল লোক লোকান্তর গতি করে থাকে।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ যে পরমেশ্বর আমাদের সবার রক্ষক, জনক এবং আমাদের সকল কর্মের ফল প্রদাতা, যিনি সমস্ত লোক লোকান্তরের জ্ঞাতা এবং অগ্নি, বায়ু, সূর্য, চন্দ্র, ইন্দ্র, বরুণ, মিত্র, বসু, যম, বিষ্ণু, বৃহস্পতি, প্রজাপতি সহ সকল দেবের নামকে ধারণকারী, তিনি এক অদ্বিতীয় অনুপম পরমাত্মা। সেই পরমাত্মায় আশ্রিত হয়ে অন্য সকল লোক গতিশীল হয়ে থাকে। দুর্লভ মানব দেহকে প্রাপ্ত হয়ে এই পরমাত্মাকে জানা উচিত। এ জ্ঞান দ্বারা মনুষ্য জন্ম সফল হবে, অন্যথা নয়।।৯।।
नेपाली (1)
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे मनुष्य हो ! यः = जुन नः = आफ्ना पिता = नित्यपालन गर्ने जनिता = जनक, उत्पादक, विधाता= मोक्षसुखादि सबै कर्म हरु का विधायक [सिद्धकर्ता] विश्वा = समस्तभुवन, लोकलोकान्तर लाई छ । यः धामानि वेद-स्थान हरु को स्थिती लाई यथावत जानने र भुवनानि विश्वा = सम्पूर्ण जातमात्र [ उत्पन्न मात्र] प्राणी हरु मा विद्यमान जुन देवानाम् - दिव्य सूर्यादि लोक तथा ईन्द्रियादि र विद्वान् हरु को नामधा= नाम एवं व्यवस्थादि गर्ने एक एव = उही एक अद्वितीय हो, अर्को कोहि छैन । उही हाम्रो स्वामी र पिता आदि हो । यसमा शंका राख्नु हुँदैन । तथा तम् संप्रश्नं भुवना यन्त्यन्या=उसै परमात्मा का सम्बन्ध मा सम्यक् प्रश्नोत्तर गर्न मा विद्वान्, वेदादी शास्त्र र प्राणीमात्र उद्यत् भई रहेछन्, किन कि सम्पूर्ण पुरुषार्थ यही हो कि 'परमात्मा', उसको 'आज्ञा' र उसले रचेको 'जगत्' को यथार्थ रूप मा निश्चय गर्नु अर्थात् ज्ञान गर्नु हो । उसैबाट धर्म, अर्थ, काम र मोक्ष ई चार प्रकार का पुरुषार्थ को फल को सिद्धि हुन्छ, अन्यथा हुँदैन । यस हेतुले तन, मन, धन र आत्मा द्वारा प्रयत्न पूर्वक सम्पूर्ण मानिस हरु ले ईश्वर को सहारा लिई अवश्य धर्मादि पदार्थ हरु को यथावत् सिद्धि गर्नु पर्द छ ।
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